गोपाल झा.
‘पंजा’ वाली पार्टी में एक बुजुर्ग नेताजी हैं। कोटा से ताल्लुक रखते हैं। उनकी जुबान कैंची की तरह चलती है। सत्ता में थे तब भी संयम नहीं। अब वैसे भी विपक्ष में हैं। तो क्या सदन की मर्यादा तार-तार करते रहेंगे ? कोटा से ताल्लुक रखने वाले नेताजी नाम के विपरीत ‘अशांति’ पैदा करने में माहिर माने जाते हैं। विधानसभा में उन्होंने कार्यवाहक सभापति से ‘तू-तड़ाक’ में बात की। अपशब्दों का इस्तेमाल किया। जब मंत्री थे तो दुराचार के बढ़ते मामलों पर आपत्तिजनक बयान देकर सुर्खियां बटोरीं। माना जा रहा है कि उनके इस बयान से विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल गया। नेताजी के विवादित बयान को विपक्ष ने इतना तूल दिया कि ‘पंजा’ वाली पार्टी को लाखों वोटों का नुकसान हुआ। नेताजी की बार-बार जुबान फिसलने से पार्टी असहज मजसूस करने लगी है। बात आलाकमान तक पहुंची है। तो क्या, बार-बार ‘अशांति’ फैलाने वाले नेताजी पर पार्टी सख्त कदम उठाएगी या फिर वे सदन में सजा भुगतते हुए पांच साल ‘टाइमपास’ करते रहेंगे। वैसे कुछ भी हो। बात सौ फीसद सही है कि बुजुर्ग और बच्चे एक जैसे होते हैं। नेताजी भी बुजुर्ग होकर बच्चों जैसी हरकतें करने लगे हैं। सवाल मौजूं हैं कि आखिर पार्टियां 70 प्लस उम्र वालों को ‘रिटायर’ क्यों नहीं कर देतीं?
दिलावर का ‘माफीनामा’
‘फूल’ वाली पार्टी में संघनिष्ठ नेताजी के पास पढ़ने-लिखने वाला महकमा है। लेकिन वे जब बोलते हैं तो ‘अनपढ़’ भी सकुचा जाए। धर्म के नाम जब वे बोलते हैं तो उनकी जुबान से शब्द नहीं ‘आग’ का ताप महसूस होता है। वे किसी को ‘सर्टिफिकेट’ जारी करने में पल भर की देरी नहीं करते। एसटी वर्ग के लिए विवादित टिप्पणी कर वे सुर्खियों में रहे। वैसे भी चर्चा में रहना उनकी फितरत है और हर बार की तरह विवादित टिप्पणी ही उन्हें सुर्खियों में रखती हैं। लेकिन इस बार वे फंस गए। विपक्ष ने सदन में उनका तब तक बहिष्कार किया जब तक कि उन्होंने ‘माफी’ नहीं मांगी। इसे सदन में ‘दिलावर का माफीनामा’ के तौर पर याद किया जाएगा। पढ़ने-लिखने वाले महकमे का मंत्री होना बड़ी बात है लेकिन जब ‘बकलोली’ के लिए माफी मांगनी पड़े तो यह मंत्री के कद को छोटा करने जैसा है। वैसे मौजूदा सियासी दौर में ‘बड़प्पन’ दिखाने वाला कोई विरला ही होगा। यहां तो ‘निम्न से निम्नतर’ में जाने की प्रतिस्पर्धा है। नहीं क्या ?
किधर जाएंगे ‘खिलाड़ी’
राजस्थान में ‘सरप्राइज पॉलिटिक्स’ की परंपरा नहीं है। दल के लिए दिल बदलना सियासत का हिस्सा है लेकिन मरुप्रदेश में ऐसा कभी-कभार होता है। हां, गत विधानसभा चुनाव के दौरान इस तरह की खूब घटनाएं हुईं। ‘पंजा’ वाली पार्टी से निकलकर ‘फूल’ थामने वालों की लंबी फेहरिस्त थी। एक नाम करौली-धोलपुर इलाके से है। लेकिन हैरानी की बात है कि राजनीति के इस चतुर ‘खिलाड़ी’ ने महज 4 माह बाद ‘फूल’ वाली पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। कमाल की बात यह कि सियासत के इस ‘खिलाड़ी’ को ‘फूल’ वाली पार्टी से कोई गिला नहीं, शिकवा नहीं। उन्होंने साफगोई से कहाकि ‘फूल’ वाली पार्टी की विचारधारा में खुद को ढालना मुश्किल है क्योंकि लंबे अरसे से ‘पंजा’ वाली पार्टी का हिस्सा रहा। इसलिए त्यागपत्र देना उचित है। सियासी गलियारे में इसकी खूब चर्चा हुई। ‘खिलाड़ी’ ‘पंजा’ वाली पार्टी में ‘जादूगर’ खेमे से खफा हैं और ‘उड़ान’ भरने की इच्छा रखने वाले ‘नेताजी’ के कायल माने जाते हैं। लिहाजा, उन्होंने ‘जादूगर’ के खिलाफ जमकर शब्दों के तीर छोड़े। लेकिन खुले तौर पर यह नहीं बताया कि सियासी तौर पर उनका नया ठिकाना कहां है। जी हां। बड़ा सवाल यही है कि आखिर किधर जाएंगे ‘खिलाड़ी’ ?
राठौड़ याद रखेंगे राजे की सीख!
‘फूल’ वाली पार्टी में बदलाव की बयार बहने वाली है। ‘प्रधान’ की ताजपोशी हो गई। पदभार ग्रहण समारोह में ‘महारानी’ ने इशारे ही इशारे में सब कुछ कह दिया। पद, मद और कद। तीन शब्दों पर केंद्रित रहा ‘महारानी’ का भाषण। माना जा रहा है कि ‘महारानी’ ने इस तरह का ‘मैसेज’ देने के लिए जानबूझकर पार्टी मुख्यालय को चुना। जब ‘महारानी’ बोल रही थीं तो कार्यक्रम में मौजूद कई नेता नजरें घुमा रहे थे। ‘महारानी’ ऐसे नेताओं की तरफ देखकर मुस्कुरा रही थीं। कार्यक्रम में बड़े नेताओं ने अपनी बात रखी। सार यह कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। हां, नवनियुक्त ‘प्रधानजी’ ने ‘महारानी’ की सीख को याद रखने की बात कहकर पार्टी में विवादों का एक और बीजारोपण कर दिया है। वैसे कार्यक्रम के बाद कुछ पुराने कार्यकर्ता एक-दूसरे से पूछ रहे थे कि क्या सचमुच, राठौड़ याद रखेंगे राजे की सीख ? अब आप ही बताइए, भला इस सवाल का जवाब कोई कार्यकर्ता दे सकता है?
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