खबरों की खबर: परिणाम को लेकर पसोपेश!

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गोपाल झा.
‘राइजिंग राजस्थान समिट’ को लेकर समूची सरकार फिक्रमंद है। तैयारियों को लेकर रोजाना बैठकों का अंतहीन दौर जारी है। जरा सी चूक न हो जाए, जिम्मेदारियों को अलर्ट किया जा रहा है। बेशक, आयोजन बड़ा है, तैयारियां भी बड़ी होनी चाहिए। लाख टके का सवाल यह है कि आयोजन का परिणाम क्या होगा ? यकीनन, आयोजन की तरह बेहतरीन की उम्मीद तो करनी ही चाहिए। सियासी गलियारे में चर्चा यह है कि पिछली सरकार ने भी निवेशकों को आकर्षित करने का कम प्रयास नहीं किया। खूब विदेश दौरे हुए। फिर भी हालात में ज्यादा सुधार तो नजर नहीं आया। तो क्या, इस बार सरकार निवेशकों को आकर्षित करने में सफल होगी ? क्या, सचमुच ‘राइजिंग राजस्थान’ का सपना साकार होगा ? आयोजन से पहले आशंका जताना निर्मूल बात है, इसलिए सकारात्मक रुख रखते हुए सफलता की कामना तो करनी ही चाहिए। नहीं क्या ?

चांद सितारों की औकात है क्या
‘बाबा’ सदमे में हैं। अनुज के पराजित होने की पीड़ा उन्हें परेशान कर रही है। सोशल मीडिया पर पोस्ट के जरिए उनका दर्द जाहिर हो रहा है। ताजा पोस्ट और भी मजेदार है। ‘बाबा’ ने लिखा-‘खेला हूं मैं सदा आग से, अंगारों के गांव में। मैं पलता फलता आया जहरीली फनकारों की छांव में। इतने कांटे चुभे कि तलवे मेरे छलनी हो गए, चलने का जोश भला फिर भी मेरे पांवों में।’ दौसा वाले ‘बाबा’ यहीं नहीं रूके। आगे लिखते हैं, ‘बहुत बढ़िया कि मुझे मार दे, नहीं मौत में दम इतना। कब्र-मजारों की औकात है क्या ? सूरज मुझसे अंाख मिलाते घबराता है, चांद सितारों की औकात है क्या ?’ खबर है कि इस पोस्ट के बाद ‘फूल वाली पार्टी’ में बवाल मच गया। पार्टी नेताओं को आने वाले दिनों में ‘खतरे’ की आहट सुनाई देने लगी है। ‘बाबा’ भी तो यही चाहते हैं। वे पार्टी नेतृत्व के साथ ‘टेबल टॉक’ करने के मूड में हैं। ‘माहौल’ क्रिएट कर बातचीत का वातावरण तैयार किया जा रहा है। इसके बाद प्रकरण का पटाक्षेप किया जाएगा। मतलब यह कि ‘बाबा’ कैबिनेट का हिस्सा बने रहेंगे। है न ?

कब होंगे चुनाव ?
उप चुनाव के बाद ‘राइजिंग राजस्थान’ और इसके बाद? निकाय व पंचायतीराज चुनाव को लेकर असमंजस को दूर करना सरकार का दायित्व है। दिक्कत यह है कि सरकार के मंत्री ‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ की बात कह चुके हैं। इसलिए उन निकाय संस्थाओं में प्रशासक नियुक्त किए गए हैं जिनका कार्यकाल पूरा हो चुका है। लेकिन चुनाव को लेकर सिर्फ कयास लगाए जा रहे हैं, सरकार ने चुप्पी साध रखी है। खबर है कि उप चुनाव परिणाम पक्ष में आने के बाद संगठन उत्साहित है। इसलिए अब निकाय व पंचायतीराज चुनाव करवाने का पक्षधर है। सरकार को भी इसमें फायदा दिखने लगा है। ऐसे में सरकार ‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ के वादे से मुकर सकती है। केंद्र सरकार भी ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के मसले पर बैकफुट पर आई है। संसद के शीतकालीन सत्र में इस आशय को लेकर बिल नहीं लाया जा रहा है। तो क्या, राजस्थान सरकार मई से पहले निकाय व पंचायतीराज चुनाव करवाने का एलान कर सकती है ? मौजूदा हालात में तो ऐसा लग रहा है। बाकी जब तक औपचारिक एलान नहीं होता, कोई कुछ कैसे कह सकता है। नहीं क्या ?

सरकार की सालगिरह
सरकार एक साल की हो रही है। सालगिरह मनाएगी। खूब कार्यक्रम होंगे। ‘वजीर ए खास’ एलान कर चुके हैं कि साल भर में 50 फीसद वादे पूरे कर दिए गए हैं। लोग पूछ रहे हैं, फिर तो सरकार आने वाले एक साल में 100 फीसद वादे पूरे कर देगी। फिर तीन साल क्या करेगी ? दरअसल, सरकार के भीतर भी एक सरकार है जो सरकार पर बराबर नजर रख रही है। उसे सरकार की खामियों पर नजर रखने का शौक है। कुछ तो ऐसे भी हैं जो मीडिया को ‘खबर’ देने का काम कर रहे हैं। यह अलग बात है कि बात फिर भी अंदर है यानी बाहर नहीं आ रही। लेकिन आने वाले समय में कुछ बातें ‘लीक’ होंगी, इसके पूरे आसार हैं। सरकार सालगिरह मनाने के बाद उन लोगों की सुध लेगी जो सरकार में शामिल होने के लिए छटपटा रहे हैं। मतलब, मंत्रीमंडल में फेरबदल तय है। कुछ मंत्रियों का बदलना भी तय लग रहा है। वहीं कुछ का ‘वजन’ कम किया जाएगा। मतलब इंतजार करने वालों को ‘फल’ मिलेगा? इसमें क्या शक। इंतजार का फल तो सदैव मीठा होता है। जाहिर सी बात है। कोई शक ?

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