गोपाल झा.हमारा शहर अजीब है। शांत है, संयत है, लेकिन संजीदा नहीं। यह वह शहर है, जो बाहर से मुस्कराता है और भीतर से आहें […]
Category: दस्तक
ईएमआई की ज़ंजीरों में जकड़ा मध्यम वर्ग
गोपाल झा.कभी समाज की रीढ़ कहा जाने वाला ‘मध्यम वर्ग’ आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां न आगे कोई स्पष्ट रास्ता है और […]
‘स्वयंसेवकों’ के हाथों में बीजेपी की कमान!
गोपाल झा.भाजपा अब एक बार फिर अपनी वैचारिक जड़ों की ओर लौटती दिखाई दे रही है। जिस वैचारिक अनुशासन, संगठनात्मक प्रतिबद्धता और सादगीपूर्ण नेतृत्व की […]
267 लाशें और मौन लोकतंत्र!
गोपाल झा.22 अप्रैल और 12 जून की तपती दोपहर। एक आम-सी प्रतीत होती तारीख। दोनों अब कैलेंडर में नहीं, इतिहास की काली लकीरों में दर्ज […]
हिंदी पत्रकारिता: दो सदियों की यात्रा और वर्तमान की चुनौतियां
गोपाल झा.30 मई 1826 को जब कलकत्ता (अब कोलकाता) की गलियों में हिंदी भाषा का पहला समाचारपत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ प्रकाशित हुआ, तब शायद किसी ने […]
हम इतने ‘आत्ममुग्ध’ क्यों हैं ?
गोपाल झा.आज का समय, जिसे हम तकनीक और संचार क्रांति का युग कहते हैं, एक विचित्र विरोधाभास लेकर आया है, एक ओर मनुष्य चांद पर […]
साधु के भेष में सत्ता के एजेंट!
गोपाल झा.‘साधु’ शब्द सुनते ही मन में एक सौम्य, शांत, ओजस्वी छवि उभरती है। एक ऐसा व्यक्तित्व जो निष्पक्ष हो, समदर्शी हो, जो किसी संप्रदाय, […]
भारत मां है तो पूछिए, क्या चाहती है हमसे ?
गोपाल झा.‘भारत माता की जय!’ एक ऐसा उद्घोष जो रक्त में स्पंदन भर देता है, रग-रग में ओज उत्पन्न करता है। यह केवल शब्द नहीं, […]
ज़िंदा है पत्रकारिता, पर वेंटिलेटर पर है!
गोपाल झा.एक समय था, जब हम खबर लिखते थे, और खबर बनते नहीं थे। अब जमाना बदल गया है। आजकल जब सच्चाई लिखो तो खबर […]
युद्ध: भावनाओं की आँच में तपता विवेक
गोपाल झा.भारत और पाकिस्तान। दो देश लेकिन सवाल एक। क्या, दोनों देशों के सैनिक अब चौथी बार आमने-सामने होंगे? दरअसल, युद्ध की चर्चा सरेआम है। […]