भारत मां है तो पूछिए, क्या चाहती है हमसे ?

गोपाल झा.
‘भारत माता की जय!’ एक ऐसा उद्घोष जो रक्त में स्पंदन भर देता है, रग-रग में ओज उत्पन्न करता है। यह केवल शब्द नहीं, एक भाव है, एक आस्था है, जो हमारी सांस्कृतिक चेतना में रची-बसी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या मात्र इस उद्घोष से हमारा राष्ट्रधर्म पूर्ण हो जाता है? क्या इससे हम सच्चे देशभक्त बन जाते हैं? उत्तर है, नहीं। देशभक्ति केवल भावनाओं का ज्वार नहीं, यह कर्तव्यों की तपस्या है। यह अलंकरण नहीं, एक आचरण है। यह नारे से नहीं, व्यवहार से प्रमाणित होती है।
आज मदर्स डे है। वह दिन जब हम अपनी जन्मदात्री मां के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं, उन्हें स्नेह, आदर और समर्पण के भाव से प्रणाम करते हैं। यह दिन उन असंख्य बलिदानों की स्मृति में भी है जो मां अपने बच्चों के लिए देती है, चुपचाप, निरंतर। ठीक वैसे ही जैसे हमारी भारत मां, जिसने हमें भूमि दी, भाषा दी, पहचान दी, और एक ऐसी विरासत दी जो समूचे विश्व को रास्ता दिखा सकती है।
समय मिले तो कभी सोचिएगा, क्या हम सच में भारत मां के सच्चे सपूत हैं? क्या हमारी चेतना में मातृभूमि के प्रति वही श्रद्धा, वही जिम्मेदारी है, जो एक पुत्र को अपनी मां के प्रति होनी चाहिए? हमारे देश में आए दिन ‘भारत माता की जय’ के नारे गूंजते हैं। ये नारे, उत्सवों, सभाओं और राजनीतिक मंचों की शान बन चुके हैं। पर क्या यह जयघोष उस समय भी हमारे अंतर्मन से निकलता है जब हम नियम तोड़ते हैं? जब हम दूसरों के अधिकारों का हनन करते हैं? जब हम जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर देश को बाँटते हैं?
देशभक्ति का पहला मानदंड है, एक आदर्श नागरिक होना। एक ऐसा नागरिक जो अपनी जाति और धर्म की तुलना संविधान को सर्वाेच्च माने, जो विधि का पालन करे, जो अपने मताधिकार का प्रयोग समझदारी से करे, जो अपने दायित्वों से मुंह न मोड़े। जो देश की आलोचना भी प्रेम से करे, सुधार के लिए करे, न कि वैमनस्य से या किसी एजेंडे के तहत।
भारत मां हमसे यही अपेक्षा करती है, कि हम न केवल उसकी जय बोलें, बल्कि उसकी सेवा भी करें। देशप्रेम का अर्थ है, स्वच्छता में भागीदारी, पर्यावरण की चिंता, शिक्षा की गुणवत्ता, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज, और सबसे बढ़कर, सत्यनिष्ठा।
अफसोस, आज की राजनीति में जब देशहित गौण और व्यक्तिहित प्रमुख बन चुका है, तो यह समय आत्ममंथन का है। सत्ता और विपक्ष के समर्थक एक-दूसरे को दुश्मन की तरह देख रहे हैं। वेदना होती है कि भारत माता की संताने आपस में द्वेष की आग में झुलस रही हैं। क्या भारत मां इस दृश्य को देख कर प्रसन्न होती होगी? नहीं। निश्चित ही उसकी आत्मा तड़पती होगी।
जिस धरती की कोख से हम अन्न पाते हैं, जिस आकाश की छांव में हम पले-बढ़े, जिस जल से हमारी प्यास बुझती है, जिस हवा से हमारे फेफड़े जीवन पाते हैं, उस भारत माता का ऋण क्या हमने कभी महसूस किया? क्या हमने कभी पूछा कि वह हमसे क्या चाहती है?
भारत मां हमसे चाहती है, जिम्मेदार व्यवहार। वह चाहती है कि उसका हर नागरिक एक दीपक बने, जो अपने आसपास अज्ञानता का अंधकार मिटाए। वह चाहती है कि हम अपनी जाति, धर्म और क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर संपूर्ण भारत को अपना मानें।
मदर्स डे के दिन जब हम अपनी जन्मदात्री मां के चरण स्पर्श करते हैं, क्या यह उचित नहीं कि हम इस दिन अपनी मातृभूमि के प्रति भी कुछ क्षण नतमस्तक हों? क्या यह दिन केवल गुलदस्ते, केक और सोशल मीडिया पोस्ट का पर्व है? या यह एक अवसर है, आत्मचिंतन का, आत्मपरिवर्तन का? यह दिन हमें बताता है कि मां केवल जन्म देने वाली नहीं होती, वह जीवन गढ़ने वाली होती है। और भारत मां ने हमें एक संविधान दिया, जो विश्व के सबसे समावेशी दस्तावेजों में एक है। क्या हम उसे सर्वाेपरि मानते हैं? क्या हम उसके प्रति ईमानदार हैं?
मातृत्व का अर्थ है, पालन, पोषण और संबल। और मातृत्व का अपमान तब होता है जब उसकी संतानें आपस में लड़ती हैं, झूठ बोलती हैं, नफरत फैलाती हैं, और केवल अपने स्वार्थ को राष्ट्र से बड़ा मानती हैं। ‘देश प्रथम’ के नाम पर सत्ता सुख को प्राथमिकता देती हैं। हमारा राष्ट्र इस समय एक संक्रमण काल से गुजर रहा है, जहां तकनीक के चमत्कार हैं, लेकिन सामाजिक मूल्यों का पतन भी है। जहां युवा शक्ति है, लेकिन मार्गदर्शन की कमी भी है। जहां लोकतंत्र है, लेकिन संवाद का स्तर गिरता जा रहा है। ऐसे में, अगर हम सच्चे पुत्र हैं तो हमें इस धरा का अभिमान बनने की आवश्यकता है। हमें ऐसा व्यवहार करना होगा जिससे भारत मां की आत्मा प्रसन्न हो, उसका चेहरा गौरव से दमक उठे।
मदर्स डे एक प्रतीक है, उस असीम प्रेम और करुणा का, जो मां अपने बच्चों के लिए रखती है। और भारत मां की करुणा तो अनंत है, तभी तो वह बार-बार सहती है, अपने पुत्रों की मूढ़ता, स्वार्थ और भ्रम को। लेकिन क्या हम उसके धैर्य की परीक्षा लेते रहेंगे? या अब कुछ ऐसा करेंगे जिससे उसका मस्तक गर्व से ऊँचा हो सके?
संभव है, यह बातें कुछ लोगों की तकलीफ बढ़ाएंगी। कुछ को राहत पहुंचाएगी। सच तो यह है, आलेख किसी राजनीतिक कटाक्ष या भावुकता का ज्वार नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है, कि हमें सजग होना होगा, सतर्क होना होगा, और समर्पित होना होगा। सिर्फ जय बोलने से नहीं, भारत मां की सेवा करके ही सच्चे पुत्र कहलाएंगे।
इस मदर्स डे पर आइए, जन्मदात्री मां के साथ जन्मभूमि मां को भी प्रणाम करें, वाणी से नहीं, आचरण से। जय भारत मां।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं

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