गोपाल झा.
सत्ता की ताकत कायम रखना छोटी बात नहीं। सूबे की सरकार में नंबर तीन की हैसियत रखने वाले ‘वजीर ए खास’ लगातार सुर्खियों में हैं। कभी अपने बेटे की ‘करतूत’ तो कभी खुद ‘रशियन अप्सरा’ के साथ ‘नजदीकियों’ के कारण। बेटे का चालान कट गया, खुद भी ‘अप्सरा’ प्रकरण से एक बारगी मुक्त हो गए दिखते हैं। बावजूद इसके ‘दाग’ हैं कि धुलते ही नहीं। इन दिनों वे यात्राएं भी कर रहे हैं, कार्यक्रमों में खूब सक्रिय हैं लेकिन उनके चेहरे से ‘हवाइयां’ उड़ रही हैं। वे हंसते हैं लेकिन लोगों को यकीन नहीं होता। अंदर ही अंदर ‘अनहोनी की आशंका’ खाए जा रही है। हालांकि वे आश्वस्त हैं कि कुर्सी नहीं जाएगी। दल में कितने साफ दिल वाले हैं ? सबकी कुण्डली बनी हुई है। निकल गई तो अधिकांश की छुट्टी करनी पड़ जाएगी। इन ‘कुतर्कों’ से ही ‘वजीर ए खास’ को बेपरवाह बने रहने का ‘साहस’ मिल रहा है। वैसे इस पार्टी में ‘खास’ लोगों पर अनुशासन का ‘डंडा’ नहीं चलता। हरियाणा में पहलवान प्रकरण याद है न ? एक सियासतदान को बचाने के लिए पार्टी ने हरियाणा की सत्ता को दांव पर लगाने में कसर नहीं छोड़ी। पार्टी उसकी सजा भुगत रही है, भुगतती रहेगी। यही राजनीति है। फिर विवादों में आए ‘वजीर ए खास’ भी तो अरसे से राजनीति ही कर रहे हैं। नहीं क्या ?
मुश्किल में ‘जादूगर’
सियासत के ‘जादूगर’ हरियाणा में सरकार बनाने की जुगत में हैं तो दूसरी तरफ एक पूर्व सिपहसालार उनकी ‘लंका’ में ‘आग’ लगाने की कवायद में जुटे हैं। खबर है कि फोन टेपिंग मामले में दिल्ली पुलिस के सामने उन्होंने ‘जादूगर’ को ‘विलेन’ की तरह पेश कर दिया है। जाहिर है, दिल्ली पुलिस अब ‘जादूगर’ से भी पूछताछ कर सकती है। हालांकि ‘पंजे वाली पार्टी’ के अधिकांश कार्यकर्ताओं ने सिपहसालार को ‘आस्तीन का सांप’ करार दिया है। सोशल मीडिया पर वे इसी तरह की ‘उपाधियों’ से विभूषित हो रहे हैं। यूजर्स साफतौर पर कह रहे हैं कि जिस व्यक्ति ने उन्हें ‘लायक’ बनाया, उसी के साथ ‘नालायकी’ की सीमाएं लांघ रहे। वो भी एक टिकट न मिलने के कारण। ऐसे में, राजनीति में कौन किस पर भरोस कर पाएगा ? खैर। राजनीति में भरोसा करना पड़ता है, होता नहीं है। इस बात से ‘जादूगर’ भी अनजान नहीं है। समर्थकों को यकीन है कि ‘जादूगर’ इसका भी समाधान खोज लेंगे। लेकिन कुछ लोग इसमें ‘जादूगर’ का दांव ही ढूंढ रहे हैं। बावजूद इसके, इस बात से इनकार नहीं होना चाहिए कि इस वक्त मुश्किल में हैं जादूगर। है न?
‘खुशी और गम’ का महीना
मरुप्रदेश में ‘फूल वाली पार्टी’ के विधायकों के लिए अक्टूबर का महीना बेहद खास है। कुछ को ‘राजतिलक’ की उम्मीद है तो कुछ पर ‘वनवास’ का खतरा मंडराने लगा है। दरअसल, राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल की अटकलें परवान पर है। जातिगत समीकरण के मुताबिक ‘माननीय’ संभावित फेरबदल में खुद के लिए जगह तलाशने में जुटे हैं। जयपुर से ‘दिल्ली दरबार’ तक ‘एप्रोच’ कर रहे हैं ताकि किस्मत का ताला खुल सके। नहरी बेल्ट के तीन ‘माननीय’ ‘अच्छे दिन’ का इंतजार कर रहे हैं। इस बीच पुख्ता खबर यह है कि मंत्रिमंडल में कौन रहेगा, कौन हटेगा, इसका फैसला राजस्थान के नेता नहीं करेंगे बल्कि यह ‘दिल्ली दरबार’ के हाथों में है। मतलब अब ‘माननीयों’ का दल दिल्ली का रुख करेगा। कुल मिलाकर, ‘माननीयों’ के लिए ‘खुशी और गम’ देने वाला रहेगा यह महीना। जी हां। लगता तो यही है।
किसके भरोसे सरकार ?
सूबे में सरकार के गठन के 10 माह पूरे होने को हैं। लेकिन सरकार की बागडोर किसके हाथ में है, समझना किसी पहेली से कम नहीं। विपक्ष इसे ‘पर्ची सरकार’ बता रहा। वहीं, सत्तापक्ष के विविध पक्षों का कहना है कि ‘वजीर ए आला’ के हाथ खाली हैं। निर्णयों के लिए सीनियर्स की जिम्मेदारी तय की गई है। लेकिन सीनियर्स की अपनी पीड़ा है। उनकी कोई नहीं सुनता। इस बीच, ब्यूरोक्रेट्स से बात निकल कर आई कि कहने को ‘चीफ’ साब सब कुछ कर रहे हैं लेकिन वे भी फैसला करने के लिए स्वतंत्र नहीं। बहरहाल, हर जगह एक ही सवाल है कि सूबे में किसके भरोसे है सरकार ? जब हर कोई इस सवाल में उलझ रहा हो तो किसी को ‘दिल्ली दरबार’ क्यों नहीं दिखता? समझ रहे हैं न आप ?
सब समय का चक्कर है। राजनीति में कोई दुध का धुला नहीं, सबके दामन में दाग है