जैनेंद्र कुमार झाम्ब.
तमाम राजनीतिक दल हमारे लोकतंत्र के चौकस रखवाले हैं, कोई एक इंच भी हिल कर दिखा दे लोकतंत्र, अपने हिस्से के लोक से तंत्र की ऐसी तैसी फेर देंगे, पलक झपकते ही।
क्या कहा? दलों का आन्तरिक लोकतंत्र ? अब सारा लोकतंत्र खुद ही खपा लिया तो जनता को क्या मुँह दिखाएं ? लोकतंत्र सारा का सारा ‘शो विण्डो’ में। गोदाम में भी नहीं रखा जाता। देखा नहीं! गोदाम में सीलन, चूहे वगैरह-वगैरह, लोकतंत्र ही कुतर गये, पता चला ! या फिर बारिश की सीलन से लोकतंत्र सड़ गया और खाने लायक ही ना बचा।
इसलिए लोकतंत्र ‘शो विण्डो’ में, जितना है सारा, नियान लाईट, अलग अलग ऐंगल, जितना ढका उससे ज्यादा नुमायां! रोज साफ किया जाए, अलग अलग पोज़ हों। जनता को इल्म हो कि कांच के भीतर रखा लोकतंत्र कितना मनोरम है, वोट भी तो लेना है, पाँच साल में एक बार इस लोकतंत्र को ‘शो विण्डो’ से निकाल कर गली गली घुमाया जाता है। गंदी नज़र और गंदे हाथ लोकतंत्र को छूते, टटोलते हैं, कुछ तो हद ही पार कर जाते जी!
बस चुनाव हुआ, लोकतंत्र की सोनोग्राफी की और फिर ‘शो विण्डो’ में! कई बार तो सफाई भी करवानी पड़ती है, अप्रिय कर्तव्य!
कुल मिला कर हर एक चुनाव में नया नवेला लोकतंत्र परोसने की जिम्मेदारी उठाते हैं, हमारे नये पुराने राजनीतिक दल, अब अंदर का लोकतंत्र जरूरी है या बाहर का? दीपक स्वयं को जला कर आलम को रौशन करता है जनाब। उफ भी नहीं करते, चीख अंदर ही दबा कर अंदर के लोकतंत्र को मारते हैं जी।
आप भी कितने नासमझ हो जी! जैसा आपका लोकतंत्र वैसी आपकी समझ, चाटो जी दोनों को। चाटते रहो!
कभी कभी शरारती बच्चे आवारा कुत्ते की पूँछ पर पटाखों की लडी बांध कर आग लगा देते हैं, बेचारा कुत्ता चक्करघिन्नी हो जाता है, बस कुछ ऐसे ही लोक की दुम पर तंत्र का पटाखा बंधा है जी। लोक बौराया फिरता है, तंत्र धमाके कर रहा है और तांत्रिक माल कूट रहे हैं।
कभी कभी शरारती बच्चे आवारा कुत्ते की पूँछ पर पटाखों की लडी बांध कर आग लगा देते हैं, बेचारा कुत्ता चक्करघिन्नी हो जाता है, बस कुछ ऐसे ही लोक की दुम पर तंत्र का पटाखा बंधा है जी। लोक बौराया फिरता है, तंत्र धमाके कर रहा है और तांत्रिक माल कूट रहे हैं।
-लेखक राजनीतिक, सामाजिक व साहित्यिक मसलों पर कटाक्ष के लिए विख्यात हैं