खबरों की खबर: ‘मराठा मानुष’ और ‘दिल्ली दरबार’

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गोपाल झा.
‘दिल्ली दरबार’ का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा। एक तरफ विपक्ष टस से मस नहीं होने दे रहा और सरकार अपने निर्णयों को पलटने के लिए मजबूर हो रही है तो दूसरी तरफ सरकार में शामिल नागपुर वाले ‘मराठा मानुष’ अपने भाषणों से ‘वजीर ए आजम’ का करार छीनने में लगे हैं। कहा जाता है कि ‘वजीर ए आजम’ को नींद पहले से कम आती है, तभी तो 18 घंटे काम कर पाते हैं। अब चैन भी लुट रहा है। नागपुर वाले मंत्रीजी ने यह कहकर खलबली मचा दी कि राजा के पास अपनी आलोचना सहन करने की शक्ति होनी चाहिए। मौजूदा राजनीतिक माहौल पर उनका भाषण और भी ‘चुभने’ वाला है। बकौल मंत्री-‘जो स्थिति अभी चल रही है, इस हिसाब से दुनिया में कई राजनीतिक दल खत्म हो गए।’ तो क्या दुनिया की ‘सबसे बड़ी पार्टी’ पर भी ‘खतरा’ मंडरा रहा है? बताया जा रहा है कि ‘फूल वाली पार्टी’ के पैतृक संगठन तक मामला पहुंचा है। तो क्या, नागपुर वाले मंत्रीजी अब बेबाक बोलना बंद कर देंगे ?

बदलेगी ‘बयानवीरों’ की तकदीर!
सूबे में ‘पंजे वाली पार्टी’ के ‘चीफ साब’ चर्चा में हैं। बिंदास बयानों के कारण वे सुर्खियां बटोर रहे हैं। ‘फूल वाली पार्टी’ के आला नेताओं यहां तक कि ‘वजीर ए आला’ को पलटवार करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। अंदरुनी खबर है कि ‘पंजे वाली पार्टी’ में उच्च स्तर पर बदलाव को लेकर मंथन चल रहा है। ‘चीफ साब’ को इसकी भनक लग चुकी है। इसलिए वे ‘फूल वाली पार्टी’ और उसके नेताओं को निशाने पर ले रहे हैं ताकि आलाकमान को अपनी अहमियत का अहसास करवा सकें। कहा जा रहा है कि इन ‘बयानों’ ने चीफ साब की सियासी सेहत के लिए ‘एंटी बायोटिक’ का काम किया है। आलाकमान ने इस ‘आक्रामकता’ की सराहना की है। माना जा रहा है कि जिस तरह एक दशक से ‘फूल वाली पार्टी’ में ‘आक्रामक’ नेताओं को मुख्यधारा में लाया गया उसी तरह अब ‘पंजे वाली पार्टी’ भी ऐसे ‘बयानवीरों’ की सूची तैयार कर रही है तो ‘विरोधियों’ के खिलाफ मुखर रहते हैं। दरअसल, ‘पंजे वाली पार्टी’ अब रणनीतिक बदलाव की तरफ है। ‘मुहब्बत की दुकान’ खोलने के बाद अब पार्टी ‘जैसे को तैसा’ सिद्धांत को भी अमल लाने की कोशिशों में है। ‘चीफ साब’ इस बात को भांप चुके हैं। ऐसे में न सिर्फ ‘चीफ साब’ बल्कि पार्टी के अन्य ‘बयानवीरों’ की उम्मीदों के सितारे चमक सकते हैं। वैसे भी सियासतदान मानते हैं कि ‘ये चमक ये दमक,
फूलवन मा महक, सब कुछ ‘सरकार’ तुम्हई से है।’ वैसे यहां पर आप ‘सरकार’ का मतलब ‘आलाकमान’ ही समझ रहे हैं न ? फिर ठीक है।

‘पर्ची’ बदलेगा दिल्ली दरबार ?
सूबे में ‘सरकार’ का असर नहीं दिख रहा। विपक्ष ‘पर्ची सरकार’ कहे तो कोई बात नहीं। सरकार में शामिल मंत्रीगण तो ऐसा न सोचें। पहली बार के विधायकों को मंत्री बनाने का निर्णय ‘फूल वाली पार्टी’ को उल्टा पड़ने लगा है। ‘वजीर ए आला’ सरकार को जन हितैषी और लोकप्रियता की चाशनी में भिगोकर पेश करते नजर आते हैं लेकिन पब्लिक को ऐसा महसूस नहीं हो रहा। ‘फूल वाली पार्टी’ में इस बात को लेकर मंथन हुआ तो परिणाम के तौर पर आए पहली दफा विधायक बने मंत्रीगण। माना जा रहा है कि ऐसे मंत्री अपनी कार्यशैली से आम जन को ‘रिझाने’ में नाकाम साबित हो रहे हैं। सच तो यह है कि ‘ब्यूरोक्रेट्स’ उन्हें महत्व देने में अपनी ‘बेइज्जती’ समझते हैं। इसलिए वे उनके निर्देशों का ‘मखौल’ उड़ा रहे हैं। बात इतनी भर नहीं। ऐसे अधिकांश मंत्री क्षेत्र में पार्टी के सीनियर्स के साथ भी सम्मानजनक बर्ताव नहीं करते। इससे कार्यकर्ताओं में भी निराशा की स्थिति है। यह कब हताशा में बदल जाए, कहना मुश्किल है। तो क्या उप चुनाव के बाद ‘दिल्ली दरबार’ फिर ‘पर्ची’ बदलेगा ?

खाली है ‘लाट साब’ की कुर्सी
मरुप्रदेश में चूरू जिला शेखावाटी क्षेत्र का हिस्सा है। सियासत के लिहाज से ‘हॉट’ क्षेत्र बन चुका है अब। जातीय राजनीति ने करवट ली और मामला पेचीदा बन गया। इस बदले समीकरण का ‘साइड इफेक्ट’ नजर आ रहा है। खबर है कि कोई ‘हाकिम’ इस जिले का हिस्सा नहीं बनना चाहता। बहरहाल, पखवाड़े भर से ‘लाट साब’ की कुर्सी खाली है। तरह-तरह की बातें हो रही हैं। सियासतदान हैरान हैं और परेशान भी। बात ‘सरकार’ तक पहुंची है। शायद, कोई रास्ता निकले। फिर भी सवाल तो लाख टके का यही है कि आखिर कब तक खाली रहेगी ‘लाट साब’ की कुर्सी ?

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