



हमारी परवरिश और सामाजिक परिवेश अक्सर हमें सिखाता है कि दूसरों को खुश रखना एक नेक काम है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर बार ‘हाँ’ कहकर आप खुद को कितना पीछे धकेल देते हैं? कई बार हम दूसरों की खुशी और सहूलियत के लिए खुद की सीमाएँ लांघ जाते हैं, जिसका असर हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। ‘ना’ कहने की कला न सिर्फ आत्मसम्मान बढ़ाती है, बल्कि यह आपके जीवन में स्पष्टता और संतुलन भी लाती है। यह आलेख आपको यह समझाने का प्रयास है कि ‘ना’ कहना क्यों जरूरी है, और कैसे इसे कहने का सही तरीका अपनाकर आप एक बेहतर, सशक्त और संतुलित जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।
डॉ. एमपी शर्मा.
हम में से कई लोग दूसरों को खुश रखने के लिए हर बात में ‘हाँ’ कह देते हैं, भले ही वह हमारे लिए असुविधाजनक या नुकसानदायक ही क्यों न हो। परंतु, हर समय हाँ कहना मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से थकाने वाला हो सकता है। देखा जाए तो ‘ना’ न कहने के गई नुकसान हैं। जैसे, जब हम हर बात के लिए हाँ कहते हैं, तो अपनी प्राथमिकताओं और जरूरतों को नजरअंदाज करने लगते हैं। जब हम अपनी क्षमता से अधिक जिम्मेदारियाँ ले लेते हैं, तो तनाव और मानसिक थकावट बढ़ जाती है। लगातार दूसरों को खुश करने की कोशिश करने से नींद, आहार और मानसिक शांति प्रभावित होती है। हर किसी को खुश करने की आदत से लोग हमें हल्के में लेने लगते हैं और हमारा सम्मान कम हो सकता है। जब लोग जान जाते हैं कि आप ‘ना’ नहीं कह सकते, तो वे अपनी सुविधानुसार आपसे काम निकालने लगते हैं।
‘ना’ कहना क्यों जरूरी है?
खुद को प्राथमिकता देने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है। अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में संतुलन बना रहता है। आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता बढ़ती है। आप अपनी ऊर्जा और समय को सही जगह निवेश कर सकते हैं।
‘ना‘ कहने के प्रभावी तरीके
आप विनम्रता से लेकिन स्पष्ट रूप से ‘ना’ कह सकते हैं। जैसे, ‘मुझे खेद है, लेकिन मैं यह नहीं कर पाऊँगा।’ यदि संभव हो तो सामने वाले को दूसरा समाधान दें, जिससे उसे मदद मिले लेकिन आपकी सीमाएँ भी बनी रहें। ईमानदारी से बताएं कि आप क्यों मना कर रहे हैं, इससे लोग आपकी सीमाओं को समझेंगे। ‘ना’ कहना आत्म-संरक्षण का हिस्सा है, इसका मतलब यह नहीं कि आप असभ्य या असंवेदनशील हैं। पहले अपने काम और जिम्मेदारियों को देखें, फिर तय करें कि आपको किसी चीज़ के लिए हाँ कहना चाहिए या नहीं।
सार संक्षेप, किसी को खुश करने के प्रयास में खुद को थकाना सही नहीं है। ‘ना’ कहना सीखना आत्म-सम्मान, स्वास्थ्य और बेहतर जीवनशैली के लिए जरूरी है। यदि आप अपने लिए खड़े नहीं होंगे, तो लोग आपको हल्के में लेना शुरू कर देंगे। इसलिए, अपनी सीमाओं को पहचानें, अपनी प्राथमिकताओं को समझें और बिना किसी अपराधबोध के ‘ना’ कहना सीखें।
-लेखक सुविख्यात सर्जन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं




