



एमएल शर्मा.
देश का दिल, दिल्ली। चुनावी दंगल में रणभेरी का नाद चरम पर है। लेकिन बेलगाम टिप्पणियों, भाषाई एवं मजहबी गुबार से भरे चुनावो में विकास व रोजगार का कहीं कोई नामलेवा नहीं। असल मुद्दे नेपथ्य में कर दिए गए हैं। हालांकि, आम आदमी पार्टी अपने कार्यकाल में हुए विकास के बूते चुनावी वैतरणी पार लगाने की जुगत में है। उधर, अनर्गल बयानबाजी का शिगुफा छेड़कर भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी ने ‘लाइमलाइट’ में आने का जतन किया। सीएम आतिशी को भावनात्मक चोट पहुंचाई। नतीजन, चौतरफा किरकिरी हुई। होनी ही थी। फिर सीएम बनने का ख्वाब पाले बैठे नेताजी ने राजधानी के चुनाव में पंजाबी व पंजाबियत को मुद्दा बनकर उभरने का प्रयास किया। भाजपा प्रत्याशी प्रवेश वर्मा का बयान सामने आते ही सियासत में भूचाल आ गया, राजनीति गरमा गई। ‘आप’ ने प्रवेश वर्मा को घेरा, पंजाबियत का राष्ट्र प्रेम व त्याग याद करवाया, साथ ही ‘घालमेल’ के सबूत पेश करने की खुली चेतावनी दे डाली। नतीजा, वर्मा जी के पल्ले फजीहत ही पड़ी। मामले को सेटल करने के लिए भाजपा ने अपने ‘फायरब्रांड’ नेता यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को प्रचार में उतारा है तो एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी शाहीन बाग जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में जनसंपर्क रैलियां करने को तैयार हैं। जाहिर है, जुबानी जंग अब जोर पकड़ेगी। सभी दल सत्ता की कुर्सी हासिल करने को बेताब है। लिहाजा, दिल्ली में ताबड़तोड़ प्रचार चरम पर है। वैसे नेताओं को जनतंत्र की जुबान कहा जाता है। इसलिए इन्हें सोच विचार कर बोलने की दरकार है। पर बजाय इसके सियासतदानों की जबान कैंची की माफिक हो तो फिर भगवान ही भला करें! दिल्ली की चुनावी फिजा में ‘खनौरी बॉर्डर’ की भूमिका को नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा। अनशन पर बैठे बुजुर्ग किसान डल्लेवाल से मिलने की जहमत किसी माननीय ने नहीं उठाई। इन सब से इतर प्रधान सेवक के नए भारत के मीडिया को महाकुंभ कवरेज करने से फुर्सत ही नहीं है। उधर, कमलदल वाले भारत की राजधानी को हर हाल में हथियाने की जिद्द पाल बैठे हैं। दिल्ली का मूड 8 फरवरी को पता चलेगा लेकिन राजनीति के धुरंधर 5 फरवरी को खुद का बटन कैसे दबे? इसमें मशगूल है।देखना है ऊंट किस करवट बैठता है और राजधानी पर राज का सेहरा किसके माथे सजता है? यह भविष्य में शीघ्र ही पता चल जाएगा।

