



गोपाल झा.
जब देश में महंगाई की मार से आम आदमी की कमर टूट रही हो, सिलेंडर की कीमतें आसमान छू रही हों और रेल में बुजुर्गों व दिव्यांगों की रियायतें बंद कर दी गई हों, ऐसे में हमारे ‘माननीयों’ की किस्मत लगातार चमक रही है। संसद में बैठे ‘जनप्रतिनिधि’ भले ही जनता की तकलीफों पर कितनी ही लंबी-लंबी तकरीरें झाड़ें, लेकिन जब बात अपनी सैलरी और भत्तों की आती है, तो उनकी एकजुटता देखते ही बनती है। ताजा उदाहरण 2025 में सांसदों की सैलरी में 24 फीसद इजाफे का है। अब सांसदों को 1.24 लाख रुपये प्रति माह मिलेंगे, जो पहले 1 लाख रुपये थे। कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स (मुद्रास्फीति सूचकांक) के आधार पर यह बढ़ोतरी हुई है। मतलब यह कि महंगाई भले ही आम जनता की जेब ढीली कर दे, लेकिन हमारे ‘माननीयों’ की जेबें महंगाई से बची रहेंगी। पूर्व सांसदों की पेंशन भी बढ़कर 31,000 रुपये हो गई है, जो पहले 25,000 रुपये थी। पांच साल से ज्यादा सांसद रहे तो हर साल के लिए अतिरिक्त 2,500 रुपये की पेंशन मिलेगी। यानी एक बार सांसद बन जाएं, तो जिंदगी भर आराम और सरकारी खजाने से फायदा उठाइए।
भत्ते और सुविधाओं की झड़ी
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता: 70,000 रुपये से बढ़ाकर 87,000 रुपये प्रति माह।
कार्यालय खर्च: 60,000 रुपये से बढ़कर 75,000 रुपये। इसमें 50,000 रुपये कम्प्यूटर ऑपरेटर और 25,000 रुपये स्टेशनरी के लिए हैं।
फर्नीचर: कार्यकाल के दौरान एक बार 1 लाख रुपये का टिकाऊ और 25,000 रुपये का गैर-टिकाऊ फर्नीचर खरीदने की सुविधा।

सांसदों को मिलती हैं ये सुविधाएं भी
34 मुफ्त हवाई यात्राएं: चाहे खुद करें या 8 यात्राएं अपने स्टाफ को ट्रांसफर कर दें।
रेलवे में मुफ्त यात्रा: देशभर में किसी भी क्लास में।
₹16 प्रति किमी सड़क यात्रा भत्ता: हवाई या रेल यात्रा संभव न हो, तो सड़क यात्रा का खर्चा भी सरकारी खजाने से।
50,000 यूनिट मुफ्त बिजली और 4 लाख लीटर पानी: दिल्ली में सरकारी आवास और ऑफिस के लिए।
मुफ्त कॉल सुविधा: लोकसभा सांसदों के लिए 1.50 लाख कॉल और राज्यसभा सांसदों के लिए 50,000 कॉल मुफ्त।
मुफ्त मेडिकल सुविधाएं: सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में मुफ्त इलाज। विदेश में इलाज की नौबत आए तो उसका खर्च भी सरकार उठाएगी।
जनता की कटौती, माननीयों की बढ़ोतरी
अब सवाल ये उठता है कि जब देश की आम जनता को रियायतें बंद कर दी गई हैं, तो सांसदों को इतनी सुविधाएं क्यों मिल रही हैं? रेलवे में बुजुर्गों और दिव्यांगों को रियायतें बंद कर दी गईं। रसोई गैस पर सब्सिडी घटकर मात्र 9 रुपये रह गई। पेंशनधारकों को महंगाई से राहत नहीं मिल पा रही। जब जनता महंगाई की मार झेल रही है, तब सांसदों को 50 हजार यूनिट मुफ्त बिजली, 4 लाख लीटर पानी और तमाम मुफ्त सुविधाएं मिल रही हैं। क्या यह देश में समानता का पैमाना है?
सवाल उठता है कि…
क्या सांसदों को जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होना चाहिए? क्या देश की गरीब और मध्यमवर्गीय जनता को राहत देने से पहले सांसदों की सैलरी बढ़ाना न्यायसंगत है? जब देश में गरीब तबके को हर छोटी सुविधा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, तब सांसदों को दी जा रही ये सुविधाएं कहीं जनता के साथ अन्याय तो नहीं? सांसदों की सैलरी में बढ़ोतरी हो, कोई बुराई नहीं। लेकिन जनता की जरूरतों और सुविधाओं पर ध्यान देना क्या उतना ही जरूरी नहीं? जब देश की आम जनता राहत के लिए तरस रही हो, तब माननीयों की बल्ले-बल्ले होना क्या वाजिब है? शायद अब वक्त आ गया है कि जनता अपने ‘जनप्रतिनिधियों’ से सवाल करे, आपके वेतन बढ़े, हमारी सुविधाएं क्यों घटीं?


