भारत में पनप रहे हैं ’मूनलाइटर्स’ और ‘गिग वर्कर्स’

डॉ. संतोष राजपुरोहित.

 ‘मूनलाइटर्स’ अर्थव्यवस्था में प्रचलित एक पुरानी टर्म हैं। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने मूल काम के साथ-साथ अन्य कार्य में भी सलंग्न रहता हैं तो वह ‘मून लाइटर्स’ कहलाता हैं और यह व्यवस्था मून लाइटिंग कही जाती हैं। 
सबसे पहले यह व्यवस्था कॉरपोरेट सेक्टर में चर्चा में आई जब कोई व्यक्ति मूल रूप से किसी एक कम्पनी में कार्य करते हुए अंशकालिक रूप से या कहें पार्ट टाइम किसी और कम्पनी के लिए भी कार्य करता हो,उसे क्वार्टर मून लाइटर्स कहा गया। 

इसके उदाहरण के तौर पर बहुत से व्यक्ति ऑफिस में एकाउंट्स का काम करने के बाद शाम को किसी फर्म या दुकान के एकाउंट का काम भी करने जाते हों।
भारत जैसे विकासशील देशों में बढ़ती आबादी और महंगाई के दवाब में यह व्यवस्था प्रचलन में आई जब व्यक्ति को अपना घर खर्च चलाने के लिए अपने मूल कार्य के साथ साथ अंशकालिक रूप से भी अन्य कार्य या नियोक्ता के साथ संलग्न होना पड़ा। 

दूसरी ओर ‘गिग इकोनॉमी’ या ‘गिग वर्कर’ अभी प्रचलन में आई टर्म्स हैं। यह एक लचीली व्यवस्था हैं। ‘गिग वर्कर्स’ उन्हें कहा जाता हैं जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं कुछ हद तक अपनी शर्तों पर भी। ‘गिग वर्कर्स; जब काम की जरूरत होती हैं, काम ढूंढते हैं। उसे पूरा करते हैं और फिर ब्रेक ले लेते हैं काम से। उस अर्जित धन को खर्च करने के लिए फिर जब धन की आवश्यकता होती हैं, काम ढूंढते हैं। 

आजकल युवाओं में यह प्रचलन काफी बढ़ा है। वो कहीं एक जगह बंदिश में रहकर काम करने की बजाए ‘गिग वर्कर’ की तरह किसी प्रोजेक्ट पर काम करने के ज्यादा हिमायती हैं।
‘गिग वर्कर’ में घर से किसी प्रोजेक्ट पर काम करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर, एक सीमित समय के लिए ऑनलाइन क्लासेस देने वाले शिक्षक, फेस्टिवल सीजन में काम करने वाले इत्यादि हो सकते हैं।

 ‘गिग इकोनॉमी’ की धारणा हैं कि अपनी शर्तों पर काम करना। अपने अर्जित धन के उपभोग के लिए समय निकालना। आजकल युवा वर्ग की फिलॉसफी इस व्यवस्था को काफी पसंद भी कर रही हैं। वंही दूसरी ओर ‘मून लाइटिंग इकोनॉमी’ अपेक्षाकृत कठोर व्यवस्था रही। जब एक मूल और दूसरे गौण कार्य मे श्रम घण्टे या दिवस अपेक्षाकृत अधिक होते थे।
 वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दोनों व्यवस्थाओं का आकार श्रम बाज़ार के स्वरूप और स्किल्ड लेबर की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। 
(लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के अध्यक्ष रहे हैं)

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