जानिए… सफेद दूध का काला सच!

भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
आज विश्व दुग्ध दिवस है। दूध को पौष्टिकता का पर्याय माना जाता रहा है लेकिन मौजूदा समय में इस पर भरोसा करना आसान नहीं। दूध की शुद्धता अब शोध का विषय है। हनुमानगढ़ जिले सहित देश भर में अब शुद्ध दूध उपलब्ध होना सपने जैसा है। दूध की बढ़ती खपत और पशुपालन के प्रति उदासीनता के बीच लोगों ने इसका तोड़ ढूंढ़ लिया है। अब वे नकली दूध बनाने का कारोबारी बन गए हैं। लिहाजा, लोग अपने बच्चों को दूध पिलाने से परहेज करने लगे हैं। अब तो डॉक्टर भी बच्चों को दूध से दूर रखने की बात करने लगे हैं जबकि यही डॉक्टर कभी बच्चों को नियमित दूध देने की बात कहते थे।

नकली दूध पीने से हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर में किडनी के मरीज भी बढ़ रहे हैं। अनुमान के अनुसार हनुमानगढ़ जिले में प्रतिदिन करीब चार लाख लीटर से ज्यादा दूध की खपत हो रही है। सवाल यह है कि इतनी भारी मात्रा में दूध कहां से आ रहा है जबकि दुधारू पशुओं की संख्या कम होती जा रही है। स्थानीय स्तर पर इतने दूध की उपलब्धता को लेकर लोग आशंकित हैं। उल्लेखनीय है कि नकली दूध बनाने के लिए यूरिया, डिटर्जेंट पाउडर व माल्टोस आदि का उपयोग किया जाता है तो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं। ज्ञात रहे कि दो जुलाई से सरकारी स्कूलों में बच्चों को पोषाहार की जगह दूध देने की योजना है। ऐसे में कारोबार बढ़ गया।
दूध असली है या नकली, यूं समझिए…
-दूध को सूंघने पर अगर आपको साबुन जैसी गंध आ रही है तो इसका मतलब दूध सिंथेटिक है। असली दूध में कुछ खास गंध नहीं आती।
-असली दूध का स्वाद हल्का मीठा होता है, जबकि नकली दूध का स्वाद हल्का कड़वा होता है क्योंकि उसमें डिटर्जेंट और सोडा मिला होता है।
-स्टोर करने पर असली दूध अपना रंग नहीं बदलता, जबकि नकली दूध कुछ देर के बाद पीला पड़ने लगता है।
-दूध में पानी की मिलावट की पहचान के लिए दूध को एक काली सतह पर छोड़ें. अगर दूध के पीछे एक सफेद लकीर छूटे तो दूध असली है अन्यथा पानी मिला है।
-असली दूध उबालें तो इसका रंग नहीं बदलता, जबकि नकली दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है।
-असली दूध को हाथों के बीच रगड़ने पर कोई चिकनाहट महसूस नहीं होती जबकि नकली दूध को अपने हाथों के बीच रगड़ने पर डिटर्जेंट जैसी चिकनाहट महसूस होगी।
-दूध की 5-10 मिलीग्राम मात्रा कांच की शीशी में लेकर उसे हिलाएं। यदि झाग बनते हैं और लंबे समय तक रहें तो समझ लीजिए कि इस दूध में डिटर्जेंट मिला है।
-यदि असली दूध में यूरिया मिलाई जाए तो यह हल्के पीले रंग का हो जाता है, वहीं अगर सिंथेटिक दूध में यूरिया मिलाई जाए तो ये गाढ़े पीले रंग का दिखने लगता है।
-इसके अलावा आप लेक्टोमीटर से भी दूध की गुणवत्ता पहचान सकते हैं। अगर सीएलआर 25 या 26 हो तो ठीक, कम हो तो समझ लीजिए कि दूध मिलावटी है।
चार साल में बढ़ गई दूध में 24 फीसद मिलावट
राजस्थान में महज चार साल में दूध में मिलावट 24 फीसद बढ़ गई। आजकल दूषित पानी, फोरेन फैट ही नहीं बल्कि सोर्बिटोल मिलाकर भी सेहत बिगाड़ रहे हैं। दवा के रूप में काम में ली जाने वाली सोर्बिटोल का दूध बनाने में अधिक इस्तेमाल से शरीर के अंगों पर प्रभाव पड़ता है। सोर्बिटोल ऑयल और रिफाइंड को नकली दूध बनाने में काम लेते हैं। असल में पाउडर से एसएनएफ बढ़ाया जाता है। रिफाइंड ऑयल से फैट बढ़ती है। इसके अलावा सोर्बिटोल से आरएम बीआरओ को मैनेज किया जाता है। सोर्बिटोल से आरएम व बीआर सही हो जाता है। ऑयल मिलाने पर आरएम और बीआर 55 पहुंच जाता है, लेकिन सोर्बिटोल मिलाने से आरएम 22 तक आता है। जो जांच में पास हो जाता है। बीआर 40 से 42 के आसपास रह जाती है।
मिलावटी दूध से सेहत को है नुकसान
दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए मिलाया जाने वाला दूषित पानी भी न केवल बच्चों बल्कि बड़ों के शरीर के लिए घातक है। डिटर्जेंट मिला दूध शरीर के हड्डी, आंख, लीवर व गुर्दा समेत अनेक अंगों पर असर डालता है। दूध में मिलावट के कारण हृदय रोग व कैंसर हो सकता है। दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए मिलाया जाने वाला दूषित पानी बच्चों की सेहत पर असर डालता है। सोर्बिटोल का ज्यादा इस्तेमाल करने पर किडनी पर असर डालता है और धीरे-धीरे शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होने लगते है।

एक्सपर्ट व्यू: एडवोकेट शंकर सोनी
वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर सोनी कहते हैं, ‘मिलावटी दूध पर सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के दिए निर्देशों के पालन की जिम्मेदारी सरकार की है। यदि अदालती आदेशों का पालन नहीं हो रहा है तो अवमानना याचिका के जरिए इसे चुनौती देकर पालना करवा सकें।’

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