सत्तापक्ष सड़कों पर, कहां है विपक्ष ?

image description

गोपाल झा.
नुमानगढ़ टाउन में आर्य समाज भवन की दुकान में लगी आग ने सिर्फ ईंट-पत्थरों को ही नहीं, बल्कि शहर के राजनीतिक तापमान को भी झुलसा दिया है। दुकान में लगी इस आग ने प्रशासनिक लापरवाही और पुलिस की सुस्ती को उजागर कर दिया, जिससे जनता का आक्रोश उफान पर है। लेकिन इस घटना का असली मंजर तब देखने को मिला, जब टाउन थाने का घेराव करने पहुंचे व्यापारिक और सामाजिक संगठनों के साथ सत्तारूढ़ दल के नेता भी धरने पर बैठे दिखे।
दिलचस्प बात यह रही कि धरने पर बैठे ये नेता अपनी ही सरकार पर निशाना साधते नजर आए। उनकी आँखों में जो नाराजगी थी, वह सिर्फ पुलिस की नाकामी तक सीमित नहीं थी, बल्कि पार्टी संगठन में कार्यकर्ताओं की लगातार हो रही अनदेखी का दर्द भी इस मौके पर बाहर दिख रहा था। सत्ता परिवर्तन के सवा साल होने के बावजूद कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही, और यह गुस्सा टाउन थाने के घेराव में कहीं न कहीं सामने आ ही गया।
दरअसल, बीजेपी की अंदरूनी राजनीति भी कम दिलचस्प नहीं है। हनुमानगढ़ में निर्दलीय विधायक ने भाजपा का समर्थन कर उस खेल को बिगाड़ दिया, जो पार्टी ने बड़ी मेहनत से बुना था। हालांकि, अब धीरे-धीरे पार्टी टिकट पर पराजित प्रत्याशी की पूछ बढ़ने लगी है, लेकिन कार्यकर्ताओं में जो निराशा घर कर गई है, वह अभी भी हावी है। थाने का घेराव किसी घटना का विरोध कम और पार्टी की अंदरूनी राजनीति का दर्द बयां करने का मंच ज्यादा बन गया।
विपक्ष का सियासी वनवास?
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल विपक्ष की भूमिका पर उठा। कांग्रेस, जिसे सैद्धांतिक तौर पर ऐसी घटनाओं को सत्ता पक्ष को घेरने का सुनहरा मौका मिला था, समूचे घटनाक्रम से गायब दिखी। धरनास्थल पर कांग्रेस नेताओं की गैरमौजूदगी ने शहरवासियों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या कांग्रेस को अब शहर की कोई चिंता नहीं रही? क्या कांग्रेस सिर्फ सत्ता सुख के लिए राजनीति कर रही है? धरनास्थल पर इस तरह के सवालों की भी गूंज रही। जनता के मन में यह सवाल कौंध रहा था कि जब शहर आंदोलित था, तब कांग्रेस नेता कहां थे? क्या वे कोई नई रणनीति बना रहे हैं या फिर सियासी परिदृश्य से दूर होकर सिर्फ वक्त का इंतजार कर रहे हैं? क्या, सचमुच इस सन्नाटे के पीछे कांग्रेस की कोई गहरी सियासी चाल है या फिर यह पार्टी नेतृत्व की निष्क्रियता का प्रमाण है? संभव है, कांग्रेस, हनुमानगढ़ की राजनीतिक गणित को नए सिरे से समझने की कोशिश कर रही हो। हालांकि, जनता का धैर्य खत्म हो रहा है। अगर कांग्रेस ने जल्द कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई, तो जनता में यह धारणा और मजबूत हो जाएगी कि वह सिर्फ सत्ता पाने की राजनीति तक ही सीमित रह गई है।
हादसा या सियासी लपटें?
आर्य समाज भवन की दुकान में लगी आग ने न केवल शहर की सामाजिक व्यवस्था को झकझोर दिया, बल्कि इसने सियासत के उस कोने को भी उजागर कर दिया, जहां सत्ता पक्ष की अंदरूनी खींचतान और विपक्ष की निष्क्रियता दोनों ही जनता के भरोसे को कमजोर कर रही हैं। अब देखना यह होगा कि बीजेपी अपनी अंदरूनी नाराजगी को कैसे संभालती है और कांग्रेस कब तक इस चुप्पी को कायम रखती है। हनुमानगढ़ का राजनीतिक भविष्य इसी सियासी मौन और आक्रोश के बीच उलझा हुआ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *