








एमएल शर्मा.
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे ‘चमत्कृत’ कर गए। सत्तारूढ़ भाजपा ने आखिरकार ‘हैट्रिक’ बना ही डाली। इसे नायब की ‘नायाब’ रणनीति कहें या कुछ और यह विचारणीय है। खास बात है कि मीडिया के पूर्वानुमान व एग्जिट पोल के ठीक ‘उलट’ परिणाम आना निश्चित तौर पर आश्चर्यजनक है। चुनाव के दौरान इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के पत्रकारों ने गांव-गांव जमीन नापी। माहौल कांग्रेस के पक्ष में बताया। किसान आंदोलन को बीजेपी के ताबूत में आखिरी कील तक कह डाला। और तो और एग्जिट पोल में किसी भी एजेंसी ने कांग्रेस की सत्ता से इनकार नहीं किया। इससे विपरीत चुनावी फल की टोकरी में कांग्रेस को पर्याप्त फल नहीं मिला तो चौंकना स्वाभाविक था। आरोप प्रत्यारोप का दौर आरंभ हो गया। यह होना भी लाजमी है, होना भी चाहिए। लेकिन सवालों का जवाब न देकर उल्टे सवाल दागना सत्ताधारी दल की जन्मजात आदत बन गई है। जो स्वस्थ सत्ता नियमों के खिलाफ है। भाजपा जहां कांग्रेस का अति आत्मविश्वास हार का कारण बता रही है वहीं कांग्रेस ने इसे ‘लोक’ की नहीं ‘तंत्र’ की जीत बताया है। वैसे भी यह नया भारत है, आज का लोकतंत्र है। यहां ‘षड्यंत्र’ की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता। इन बातों को इससे बल मिलता है कि मतदान के बाद मतदान प्रतिशत के आंकड़े एकाएक बदल जाते हैं। क्या कांग्रेस को सवाल करने का भी हक नहीं ? सामान्य प्रज्ञा का व्यक्ति भी यह बात भलीभांति समझ सकता है कि किसान आंदोलन में संघर्ष का दमन करने वालों को ‘ताजपोशी’ बात कुछ हजम नहीं होने लायक है। क्या यह इतना सरल है? यह मौजूदा जनतंत्र है जनाब, ‘कुछ भी’ हो सकता है।
यकीनन, हरियाणा चुनाव बीजेपी के लिए दीपावली से पहले पटाखे फोड़ने का सबब बन गया। हालांकि कांग्रेस भी खाली नहीं रही। जम्मू कश्मीर में मोदीजी की नीतियों को जनता ने पूरी तरह नकार दिया। धारा 370 हटाने का फायदा ‘गुजराती बंधु’ ले नहीं पाए। पर देश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले सूबे में लगातार तीन बार फिलहाल काफी है। खैर, अब सत्ता सुख जिसे मिलना था उसे मिल गया। कल क्या होगा इसका अंदाजा लगाना मौजूदा दौर में थोड़ा मुश्किल ही है।
-लेखक समसामयिक मसलों के स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं



