डॉ. सन्तोष राजपुरोहित.
इजरायल और ईरान के बीच के तनाव और संघर्ष का वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह संकट खासतौर से भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि दोनों देशों के साथ भारत के आर्थिक और ऊर्जा संबंध महत्वपूर्ण हैं। इस संदर्भ में, भारतीय अर्थव्यवस्था पर इस संकट के संभावित प्रभावों का विश्लेषण करना आवश्यक है।
कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि
ईरान और इजरायल के बीच का तनाव, विशेषकर अगर यह सैन्य संघर्ष में बदल जाता है, तो मध्य पूर्व के तेल आपूर्ति में रुकावट का कारण बन सकता है। चूंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है, तेल की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। बढ़ती तेल की कीमतों के कारण भारत का आयात बिल बढ़ सकता है, जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि और व्यापार संतुलन बिगड़ सकता है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान
इस संकट से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर भी असर पड़ सकता है। भारत कई वस्त्रों और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के लिए अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर है। अगर इस क्षेत्र में अशांति या संघर्ष बढ़ता है, तो आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान से भारत में वस्त्रों और कच्चे माल की कमी हो सकती है। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि और निर्यात पर नकारात्मक असर हो सकता है।
भारत-ईरान संबंधों पर प्रभाव
ईरान के साथ भारत के ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंध हैं, खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में। भारत, ईरान से कच्चा तेल आयात करता है और चाबहार पोर्ट में महत्वपूर्ण निवेश कर रहा है। यदि इस संघर्ष के चलते भारत और ईरान के संबंध प्रभावित होते हैं, तो इन परियोजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही, अमेरिका द्वारा ईरान पर और अधिक आर्थिक प्रतिबंध लगाने की स्थिति में भारत को वैकल्पिक तेल आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी पड़ सकती है, जो महंगा साबित हो सकता है।
क्षेत्रीय स्थिरता और निवेश प्रवाह
मध्य पूर्व की स्थिरता में कमी आने से वैश्विक निवेश प्रवाह में कमी हो सकती है, खासकर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में। विदेशी निवेशक अनिश्चितता की स्थिति में जोखिम लेने से बचते हैं, जिससे भारत में निवेश प्रवाह में कमी आ सकती है। इससे भारत के आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है और रोजगार के अवसरों में कमी आ सकती है।
रक्षा और सुरक्षा पर खर्च
अगर मध्य पूर्व में तनाव बढ़ता है, तो भारत को अपनी रक्षा तैयारियों और सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने पर अधिक खर्च करना पड़ सकता है। इस अतिरिक्त रक्षा खर्च से सरकार के बजट पर दबाव बढ़ेगा और सामाजिक एवं विकासात्मक योजनाओं के लिए धन की कमी हो सकती है।
वैश्विक अनिश्चितता और भारतीय मुद्रा
इजरायल-ईरान संकट से वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का माहौल बनेगा, जिससे निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है। ऐसी स्थिति में विदेशी निवेशक सुरक्षित संपत्तियों की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे भारतीय रुपये की विनिमय दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। रुपये की कमजोरी से आयात महंगा हो जाएगा, जिससे मुद्रास्फीति और बढ़ सकती है।
इजरायल-ईरान संकट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव बहुआयामी हो सकता है। ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, निवेश प्रवाह में कमी, और मुद्रा के मूल्यह्रास जैसी समस्याएं भारतीय आर्थिक विकास को धीमा कर सकती हैं। हालांकि, भारत सरकार को रणनीतिक रूप से अपनी आर्थिक और ऊर्जा नीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता होगी ताकि इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय संकटों से निपटने में सक्षम हो सके।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के पूर्व अध्यक्ष हैं