मन को काबू में कैसे रखें ?

डॉ. एमपी शर्मा.
म सभी ने यह कहावत सुनी है, ‘मन जीते, जग जीते।’ लेकिन क्या यह सिर्फ आध्यात्मिक उपदेश है या एक व्यावहारिक जीवन दर्शन? आज के तनावपूर्ण, भागदौड़ भरे जीवन में यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो गया है कि हम अपने मन, दिल और दिमाग को कैसे समझें और नियंत्रित करें। दरअसल, मन कोई भौतिक अंग नहीं है जिसे हम छू सकें या देख सकें। यह एक प्रक्रिया है, हमारे विचार, भावनाएँ, इच्छाएँ, स्मृतियाँ और कल्पनाएँ, सब मिलकर मन का निर्माण करते हैं। मनोविज्ञान के अनुसार मन दो स्तरों पर कार्य करता है। एक तो है चेतन मन। जो अभी सोच रहा है, निर्णय ले रहा है। दूसरा है, अवचेतन मन। जिसमें हमारी गहरी भावनाएँ, आदतें और अतीत की यादें छिपी होती हैं। मन बहुत चंचल है, एक पल में अतीत में, दूसरे पल भविष्य में भटक जाता है। इसी चंचलता के कारण हमें तनाव, चिंता और असंतुलन का अनुभव होता है।
दिल क्या है?
वैज्ञानिक रूप से दिल एक अंग है जो रक्त पंप करता है, लेकिन सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से यह भावनाओं का प्रतीक बन गया है। जब हम कहते हैं ‘दल टूट गया’, तो इसका तात्पर्य है, गहरी भावनात्मक चोट। दिल से सोचना यानी भावनाओं से निर्णय लेना, जबकि दिमाग से सोचना तर्क पर आधारित होता है।
दिल और दिमाग: दो ध्रुव, एक संतुलन
हमारे जीवन की अधिकांश समस्याएँ तभी उत्पन्न होती हैं जब दिल और दिमाग के बीच तालमेल नहीं होता। जब हम सिर्फ दिल से सोचते हैं, तो भावनाओं में बह जाते हैं। जब हम केवल दिमाग से सोचते हैं, तो जीवन में करुणा और संवेदना की कमी हो जाती है। सफल और शांत जीवन के लिए जरूरी है, दिल और दिमाग के बीच संतुलन।
मन को कैसे जीता जाए?
मन पर विजय पाना आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। इसके लिए कुछ व्यावहारिक उपाय अपनाए जा सकते हैं।
ध्यान और प्राणायाम: प्रत्येक दिन 10-15 मिनट ध्यान करने से मन की चंचलता कम होती है। यह मन को वर्तमान क्षण में लाता है, जिससे चिंता और भ्रम घटते हैं।
सकारात्मक सोच का अभ्यास: हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही अनुभव करते हैं। नकारात्मक विचारों की जगह सकारात्मक, रचनात्मक सोच विकसित करें।
स्व-निरीक्षण: हर रात 5 मिनट अपने दिन के व्यवहार और निर्णयों का मूल्यांकन करें। यह आत्म-विकास का आधार बनता है।
भावनाओं को स्वीकारें, दबाएँ नहीं: क्रोध, ईर्ष्या, दुख, ये सभी स्वाभाविक भावनाएँ हैं। इन्हें पहचानें, स्वीकारें और सही दिशा दें।
अनुशासन और संयम: अनियमित जीवनशैली मन को और अधिक अस्थिर बनाती है। नियमित नींद, संतुलित आहार और डिजिटल डिटॉक्स जरूरी है।
क्या ‘मन जीते, जग जीते’ आज के युग में संभव है? बिलकुल संभव है। महावीर, बुद्ध और गांधी जैसे महापुरुषों ने पहले अपने मन को जीता, फिर दुनिया को बदला। लेकिन यह रास्ता सिर्फ संतों के लिए नहीं, एक आम व्यक्ति भी जब अपने अंदर के विकारों पर विजय पाता है, तो उसका जीवन बदल जाता है। जब हम दूसरों की आलोचना से प्रभावित नहीं होते, गुस्से में प्रतिक्रिया देने के बजाय शांत रहते हैं, असफलता से टूटने के बजाय सीखते हैं, तो समझिए हमने मन को जीतना शुरू कर दिया है।
आम इंसान क्या करे?

  • दिन में 10 मिनट मौन में बैठें, सिर्फ साँसों पर ध्यान दें।
  • क्रोध आने पर तुरंत प्रतिक्रिया न दें, 10 तक गिनें।
  • हर दिन कम से कम एक काम सिर्फ ‘दिल’ से करें, जैसे किसी की बिना कारण मदद।
  • सोशल मीडिया से दिन में एक घंटा विराम लें, यह मन के लिए ‘ऑक्सीजन’ जैसा है।
    याद रखिए, जो अपने मन पर विजय पा लेता है, वह संसार की सबसे बड़ी लड़ाई जीत लेता है। आज का युग जितना तकनीकी और तेज़ है, उतना ही मानसिक शांति से दूर भी है। ऐसे में ‘मन जीते, जग जीते’ न केवल एक प्रेरक सूत्र है, बल्कि एक अत्यंत व्यावहारिक मार्गदर्शक भी। अगर हम अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहार पर सजग हो जाएँ, तो हम न केवल स्वयं को बदल सकते हैं, बल्कि अपने आसपास की दुनिया को भी सुंदर बना सकते हैं।
    -लेखक सुविख्यात सीनियर सर्जन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं
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