अर्थचक्र: संविधान और आर्थिक समानता

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डॉ. संतोष राजपुरोहित.
संविधान किसी भी देश की नींव का आधार होता है। यह न केवल शासन और नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है, बल्कि समाज में समानता और न्याय की भावना को भी पोषित करता है। भारत का संविधान, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता की गारंटी देता है। इसका मुख्य उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां हर नागरिक को समान अवसर और अधिकार मिलें।
आर्थिक समानता का महत्व
आर्थिक समानता का अर्थ है कि देश के संसाधनों का वितरण इस प्रकार हो कि समाज के प्रत्येक वर्ग को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का अधिकार प्राप्त हो। आर्थिक समानता के अभाव में सामाजिक असमानता बढ़ती है, जो गरीबी, बेरोजगारी और अपराध जैसी समस्याओं को जन्म देती है।
संविधान में आर्थिक समानता से संबंधित प्रावधान
भारतीय संविधान ने आर्थिक समानता सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं:
अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार): यह प्रावधान सभी नागरिकों को कानून के सामने समानता की गारंटी देता है।
अनुच्छेद 38: राज्य को यह निर्देश देता है कि वह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाए जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय हो।
अनुच्छेद 39: यह अनुच्छेद संसाधनों के समान वितरण, समान वेतन और शोषण से मुक्ति पर बल देता है।
अनुच्छेद 46: यह कमजोर वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की आर्थिक और शैक्षिक उन्नति सुनिश्चित करने के लिए राज्य को प्रेरित करता है।
आर्थिक समानता प्राप्त करने में चुनौतियां
गरीबी:
भारत में आज भी करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
बेरोजगारी: रोजगार के असमान अवसर आर्थिक असमानता को बढ़ाते हैं।
शिक्षा की कमी: शिक्षा के अभाव में लोग अच्छे अवसरों से वंचित रह जाते हैं।
संसाधनों का असमान वितरण: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विकास की खाई आर्थिक असमानता को बढ़ाती है।
संविधान के तहत सरकार की भूमिका
संविधान के निर्देशित सिद्धांतों को लागू करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जैसे ……मनरेगा जैसे कार्यक्रम, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को सस्ते दामों पर अनाज उपलब्ध कराना। शिक्षा के अधिकार और कौशल विकास कार्यक्रम।
निष्कर्ष: संविधान भारत में आर्थिक समानता का एक महत्वपूर्ण आधार है। हालांकि, इसे पूरी तरह से लागू करने के लिए न केवल सरकारी प्रयास बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी भी आवश्यक है। जब तक प्रत्येक नागरिक को समान अवसर और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक भारत एक समृद्ध और सशक्त राष्ट्र नहीं बन सकता। आर्थिक समानता ही एक ऐसा माध्यम है जो हर व्यक्ति के जीवन को बेहतर बना सकता है और देश को विकास की राह पर आगे ले जा सकता है।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के पूर्व अध्यक्ष हैं

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