




डॉ. संतोष राजपुरोहित.
कश्मीर, जिसे अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ‘स्वर्ग’ कहा जाता है, एक ऐसा क्षेत्र है जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों से कश्मीर की पहचान हिंसा, आतंकवाद और राजनीतिक अस्थिरता के कारण बदल गई है। विशेष रूप से 1989 के बाद से, जब आतंकवाद कश्मीर में अपने पैर जमा चुका था, यह क्षेत्र लगातार असुरक्षा और संघर्ष का गवाह बना है। कश्मीर में आतंकवाद न केवल मानव जीवन के लिए खतरा बन चुका है, बल्कि इसने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। आतंकवादी गतिविधियों ने कश्मीर के प्रमुख क्षेत्रों जैसे पर्यटन, कृषि, और व्यापार को गंभीर नुकसान पहुँचाया है।
कश्मीर में आतंकवाद का प्रकोप 1989 से शुरू हुआ, जब पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ाने के लिए कश्मीरी युवाओं को उकसाया। इसके परिणामस्वरूप कश्मीर में अस्थिरता और हिंसा की लहर दौड़ गई। कश्मीरी पंडितों का पलायन, सुरक्षा बलों और नागरिकों पर हमले, और आतंकवादी घटनाओं की बढ़ती संख्या ने कश्मीर को एक असुरक्षित क्षेत्र बना दिया। आतंकवाद के कारण न केवल कश्मीर की सुरक्षा पर असर पड़ा, बल्कि इसका सामाजिक ताना-बाना भी प्रभावित हुआ। कश्मीरी पंडितों की घाटी से निर्वासन, स्थानीय जनता के बीच भय का माहौल और आतंकवादी हमलों के कारण पर्यटन उद्योग को गंभीर नुकसान हुआ।
कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी समूहों द्वारा किए गए हमलों और विद्रोह के कारण, राज्य के आर्थिक विकास की गति धीमी हो गई। कृषि, व्यापार, और पर्यटन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में गिरावट आई, जिससे रोजगार के अवसर कम हुए और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा।
पर्यटन उद्योग का संकट
कश्मीर का पर्यटन उद्योग लंबे समय से राज्य की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। कश्मीर के प्राकृतिक दृश्य, पहाड़, झीलें, बाग-बगिचे और ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों को आकर्षित करते थे। 1989 के बाद से, जब आतंकवाद बढ़ने लगा, तो कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई। 1990 के दशक में पर्यटन के लिए कश्मीर में यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में बेतहाशा कमी आई। 2000 के दशक के अंत तक, कश्मीर की ष्स्वर्गष् की छवि को नुकसान हुआ और यह क्षेत्र एक असुरक्षित स्थान के रूप में देखा जाने लगा।
कश्मीर में आतंकवाद के कारण पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हजारों लोग बेरोज़गार हो गए। होटल, ट्रांसपोर्ट, शिल्पकला और अन्य पर्यटन आधारित उद्योगों को भारी नुकसान हुआ। स्थानीय व्यापारियों को अपने व्यवसायों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा और बहुत से होटल मालिकों को अपनी संपत्तियों को बेचने या खाली छोड़ने की स्थिति में आना पड़ा।
कृषि और बागवानी उद्योग पर प्रभाव
कश्मीर में कृषि और बागवानी का क्षेत्र भी आतंकवाद से प्रभावित हुआ। कश्मीर का सेब, जो भारत के सबसे प्रसिद्ध और बेहतरीन उत्पादों में से एक माना जाता है, आतंकवाद के कारण अपने बाजारों तक पहुंचने में बाधित हो गया। आतंकवादी हमलों और असुरक्षा के कारण बागवानी श्रमिकों का पलायन हुआ, जिससे कश्मीर के बाग-बगिचों का रखरखाव और उत्पादन प्रभावित हुआ।
अखरोट, केसर और सेब जैसे कश्मीर के प्रमुख कृषि उत्पाद, जो पहले भारत और विदेशों में बड़े पैमाने पर निर्यात होते थे, अब अपने आपूर्ति चौनलों के बाधित होने के कारण संकट का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा, किसानों को अपनी उपज सुरक्षित रूप से बेचने में कठिनाइयाँ आ रही हैं, जिससे उनकी आय पर सीधा असर पड़ा है।
व्यापार और उद्योग पर प्रभाव
कश्मीर में आतंकवाद ने व्यापार और उद्योग के लिए भी एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत की। आतंकवादी हमलों ने व्यापारिक गतिविधियों को रोकने का कार्य किया। स्थानीय व्यापारी जो विभिन्न उद्योगों में काम कर रहे थे, उन्हें न केवल अपने उत्पादों को बाजार में लाने में समस्याएँ हुईं, बल्कि सुरक्षा कारणों से अपने व्यापार को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इसके परिणामस्वरूप, स्थानीय व्यापारियों और उद्यमियों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। इसके अलावा, आतंकवाद ने कश्मीर में निवेशकों को भी दूर किया, जिससे राज्य में औद्योगिक विकास का मार्ग अवरुद्ध हुआ।

सुरक्षा खर्चों में वृद्धि
कश्मीर में आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण केंद्र और राज्य सरकार को सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए भारी निवेश करना पड़ा। कश्मीर में सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई गई, और आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन और कार्रवाइयाँ तेज की गईं। इस कारण, कश्मीर की सरकार का अधिकांश बजट सुरक्षा खर्चों में चला गया, जिससे अन्य विकासात्मक कार्यों को प्राथमिकता नहीं मिल पाई। बुनियादी ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार सृजन जैसे क्षेत्रों में निवेश की कमी रही, जिससे राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास की गति धीमी हो गई।

आतंकवाद बनाम अर्थव्यवस्था
कश्मीर में आतंकवाद अब भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। 2025 में, पहलगाम में आतंकवादी हमले ने फिर से यह साबित कर दिया कि कश्मीर में आतंकवाद के खतरे को पूरी तरह से नष्ट करना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। इस हमले में कई लोगों की जान गई और राज्य में असुरक्षा का माहौल पैदा हुआ।
हालांकि, केंद्र सरकार ने कश्मीर में सुरक्षा को प्राथमिकता दी है और आतंकवाद के खिलाफ कई कठोर कदम उठाए हैं। 2019 में, भारतीय सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया, जिससे कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था। इस कदम का उद्देश्य कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद को समाप्त करना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप कश्मीर में असहमति और विरोध की आवाज़ें उठी हैं।
कश्मीर के आर्थिक पुनर्निर्माण के उपाय
कश्मीर में आतंकवाद के प्रभाव से उबरने के लिए सरकार ने कई उपायों की योजना बनाई है। कश्मीर में बुनियादी ढांचे के विकास, पर्यटन को बढ़ावा देने, और रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए सरकार ने एक पैकेज घोषित किया है। इसमें पर्यटन स्थलों के पुनर्निर्माण, सड़क और परिवहन नेटवर्क को सुधारने, और उद्योगों के लिए प्रोत्साहन शामिल हैं। कश्मीर के प्राकृतिक संसाधनों को पुनः संवर्धित करने के लिए योजनाएँ बनाई गई हैं, ताकि कृषि और बागवानी उद्योग को बढ़ावा मिल सके। सरकार किसानों को नई तकनीकों, उन्नत बीजों और बेहतर सिंचाई सुविधाओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। कश्मीर में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी सुधार की दिशा में कदम उठाए गए हैं। इसके अंतर्गत, नई स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण, शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा देना, और कश्मीर के युवाओं को बेहतर कौशल प्रदान करना शामिल है। कश्मीर के विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया गया है। दोनों सरकारें मिलकर कश्मीर में स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही हैं।
कश्मीर में आतंकवाद ने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, लेकिन वर्तमान समय में कश्मीर की स्थिति में सुधार के संकेत मिल रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार के प्रयासों से कश्मीर में स्थिरता और विकास की संभावना बढ़ी है, लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है। कश्मीर का आर्थिक पुनर्निर्माण और समाज में शांति की बहाली के लिए सुरक्षा, राजनीतिक समाधान, और आर्थिक प्रोत्साहन की आवश्यकता है। केवल इन पहलुओं के समन्वय से ही कश्मीर को फिर से शांति और समृद्धि की ओर बढ़ाया जा सकता है।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं



