

2025 में गोल्ड की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं और इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं पर दिखाई दे रहा है। वैश्विक तनाव, डॉलर की कमजोरी और निवेशकों की सुरक्षित संपत्तियों की ओर झुकाव ने सोने की मांग को बढ़ा दिया है। भारत, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता है, इस कीमत वृद्धि से लाभ और चुनौती दोनों का सामना कर रहा है। जहां गोल्ड लोन और डिजिटल गोल्ड में निवेश बढ़ रहा है, वहीं आभूषण उद्योग और चालू खाता घाटा दबाव में हैं। सरकार और आरबीआई को इस असंतुलन को नियंत्रित करने के लिए संतुलित रणनीति अपनानी होगी।

डॉ. संतोष राजपुरोहित.
2025 में गोल्ड की कीमतें आसमान छू रही हैं और इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर साफ दिखाई दे रहा है। लेकिन आखिर क्यों? इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों तरह के कारण हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य पूर्व में तनाव और अमेरिका-चीन व्यापार अस्थिरता के चलते निवेशक सुरक्षित संपत्तियों की ओर रुख कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, गोल्ड की मांग लगातार बढ़ रही है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें घटाने की संभावनाओं से डॉलर कमजोर हो रहा है, जिससे सोने का आकर्षण बढ़ गया है। वैश्विक स्तर पर बढ़ती महंगाई के चलते सोना एक सुरक्षित निवेश बना हुआ है। लोग इसे मुद्रास्फीति से बचाव का जरिया मान रहे हैं। कई देश अपने भंडार में डॉलर की जगह सोना जोड़ रहे हैं, जिससे इसकी कीमतों में और इजाफा हो रहा है। रुपये की गिरती कीमत से भारत में सोना महंगा हो रहा है, क्योंकि इसका आयात डॉलर में किया जाता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर बढ़ती कीमतों का प्रभाव
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता है और अधिकतर सोना आयात करता है। 2025 में सोने के आयात में 20 फीसद तक गिरावट के बावजूद, ऊंची कीमतें चालू खाता घाटा पर दबाव बना रही हैं। इससे रुपये की स्थिरता पर असर पड़ सकता है। गोल्ड की कीमतों में बढ़ोतरी से आभूषण उद्योग पर दबाव है और उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति प्रभावित हो रही है। हालांकि, उच्च कीमतें परिवारों की संपत्ति मूल्य बढ़ा रही हैं, जिससे मांग आधारित मुद्रास्फीति को बल मिल सकता है। सोने की कीमतें बढ़ने से निवेशक गोल्ड ईटीएफ, डिजिटल गोल्ड और फिजिकल गोल्ड की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इससे इक्विटी मार्केट पर दबाव बढ़ रहा है और पूंजी का बहिर्वाह हो रहा है। उच्च कीमतों के कारण गोल्ड समर्थित ऋण अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। 2025 में गोल्ड लोन की मांग में 30 फीसद तक की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, अगर कीमतें अचानक गिरती हैं, तो यह बैंकों और एनबीएफसी के लिए जोखिम भरा हो सकता है। उच्च कीमतों के चलते आभूषण की मांग घट रही है। ज्वैलर्स अब हल्के गहनों और डिजाइनर आभूषणों की ओर झुकाव दिखा रहे हैं ताकि ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके।

सरकार और आरबीआई के संभावित कदम
सरकार आयात शुल्क (वर्तमान में 15 फीसद) को और बढ़ा सकती है ताकि अनावश्यक आयात को रोका जा सके। स्वर्ण मुद्रीकरण योजना को बढ़ावा देने से घरेलू भंडार का उपयोग बढ़ाया जा सकता है। सरकार सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को आकर्षक बना सकती है और गोल्ड ईटीएफ में टैक्स छूट देकर निवेशकों को डिजिटल गोल्ड की ओर आकर्षित कर सकती है। आरबीआई बैंकों और एनबीएफसी को गोल्ड लोन पर उचित मूल्यांकन और जोखिम प्रबंधन की सख्त हिदायत दे सकता है, जिससे डिफॉल्ट की संभावना कम हो।

सबसे बड़ा सवाल, आगे क्या?
निवेशक गोल्ड में अधिक निवेश करेंगे, जिससे स्टॉक मार्केट में गिरावट संभव है। चालू खाता घाटा बढ़ेगा, जिससे रुपये पर दबाव बनेगा। सरकार को आयात नियंत्रण के लिए और कड़े कदम उठाने पड़ सकते हैं। यदि कीमतें स्थिर होती हैं, उपभोक्ता धीरे-धीरे आभूषण खरीदारी फिर से शुरू करेंगे। सरकार डिजिटल गोल्ड और गोल्ड बॉन्ड को लोकप्रिय बनाने की दिशा में कदम उठाएगी।
अंततः कहा जा सकता है कि 2025 में गोल्ड की बढ़ती कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान और चुनौती दोनों साबित हो रही हैं। जहां निवेशक और गोल्ड लोन उद्योग इससे लाभान्वित हो रहे हैं, वहीं आभूषण कारोबार, मुद्रास्फीति और चालू खाता घाटा जैसी चुनौतियां भी सामने हैं। सरकार और आरबीआई को इन परिस्थितियों को संतुलित करने के लिए आयात नियंत्रण, डिजिटल गोल्ड को बढ़ावा देने और गोल्ड लोन पर सख्त निगरानी जैसे ठोस कदम उठाने होंगे।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं

