शंकर सोनी.
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के नाम पर जो भाषण दिया उसके कुछ शब्दों को लेकर विपक्षी राजनीतिक दलों ने मुद्दा बना दिया हैं। इस तरह के भाषण और इससे उत्पन्न विवाद पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। दरअसल, अमित शाह ने कहा-‘डॉ. अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के प्रति हो रहे व्यवहार से असंतुष्ट होकर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था।’ उन्होंने एक आक्षेप लगाने हुए आगे कहा कि अंबेडकर जी ने कई बार अपनी असहमति व्यक्त की, लेकिन उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया गया, जिससे वे इस्तीफा देने को मजबूर हो गए।
भारतीय जनता पार्टी का बाबा साहब के प्रति सम्मान का गुणगान करते हुए शाह ने बताया कि भाजपा सरकार ने डॉ. अंबेडकर के जन्मस्थान मऊ में, लंदन में उनके अध्ययन स्थल नागपुर में, दिल्ली में महापरिनिर्वाण स्थल पर, और मुंबई में चौत्य भूमि पर बाबा साहब के स्मारकों का निर्माण किया है। शाह ने यह भी उल्लेख किया कि भाजपा सरकार ने 14 अप्रैल को राष्ट्रीय समरसता दिवस और 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया, जिससे डॉ. अंबेडकर के विचारों और योगदान को सम्मानित किया जा सके।
इस टिप्पणी पर विवाद
शाह के भाषण का एक अंश विशेष रूप से विवादित हुआ, जिसमें उन्होंने कहा, ‘अभी एक फैशन हो गया है। अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।’ इस टिप्पणी को कई लोगों ने डॉ. अंबेडकर का अपमान माना है। अमित शाह के बाबा साहब के सम्बंध किए गए समस्त भाषण को सुनने के बाद एक निष्पक्ष नागरिक के रूप में मंथन करने पर मेरी धारणा है कि अमित शाह का उद्देश्य बाबा साहब का अपमान करने का तो नहीं रहा लगता है। शाह का उद्देश्य विपक्षी दलों की कथनी और करनी के अंतर पर टिप्पणी करना था। शाह ने अपने भाषण में बाबा साहब के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया और उनके योगदान की सराहना की है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि ‘अभी एक फैशन हो गया अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।’ शब्द असंसदीय है इससे संसद की संवेदनशीलता कम होती है ये शब्द अप्रासंगिक भी लगते हैं। संसद में गृह मंत्री को अपने भाषण के शब्दों का चुनाव अत्यंत सावधानी से करना चाहिए, विशेष रूप से जब वह डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे महान नेता से संबंधित हो।
अंततः गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा सरकार को उक्त शब्दों वाले बयान पर खेद व्यक्त करते हुए यह स्वीकार किया चाहिए कि भाषण के ये शब्द गलत है। नेताओं को नहीं हम सभी को चाहिए की बाबा साहब डॉ अम्बेडकर, गांधीजी, सावरकर, नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे व्यक्तित्व पर गहन अध्ययन के बाद और तथ्यात्मक सत्य के साथ संवेदनशीलता पूर्ण शब्दों का चयन करते हुए बोले या लिखें।
-लेखक पेशे से वरिष्ठ अधिवक्ता व नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं