बाबूलाल नागा
हम भारत के लोग भारत के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया था। 26 जनवरी, 1950 को भारत का अपना संविधान, अपनी शासन व्यवस्था के लिए लागू कर दिया गया। संविधान दिवस का उद्देश्य देश के नागरिकों में संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान की भावना को बढ़ाता है। यह संविधान ही है जो अलग-अलग धर्मों, जातियों और भारत की करोड़ों आबादी को एक देश की तरह जोड़ता है। संविधान भारत को एक सप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य घोषित करता है। यह भारतीय नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता की गारंटी देता है। ये संविधान ही है जो हमें एक आजाद देश का आजाद नागरिक की भावना का एहसास कराता है। सबको सस्ता और सुलभ न्याय मिले। हजारों साल पुराने शोषण, दमन, भेदभाव, अत्याचार, गरीबी, भुखमरी, वंचना और पिछड़ेपन को दूर किया जा सकें। सबको शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की गारंटी मिले। यह हमें संविधान अधिकार देता है।
दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार भी हमें दिए गए। जहां संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक दिलाते हैं, वहीं इसमें दिए मौलिक कर्तव्य हमें हमारी जिम्मेदारियां भी याद दिलाते हैं। समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्व अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति तथा शिक्षा संबंधी अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार आज हमें प्राप्त हैं।
हम भारत के लोग खुद को यह संविधान देते हैं। और हमें अपने इस संविधान पर अभिमान भी है। क्योंकि संविधान द्वारा हम सबको मिले मूल अधिकारों के रक्षा कवच से हम अब तक निर्भय होकर जीते आए हैं। इसलिए यह जरूरी है कि हम भारत के इस संविधान के मौलिक अधिकारों व संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करें। संवैधानिक मूल्यों का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। ये मूल्य हमें एक नागरिक के रूप में जिम्मेदारी और कर्तव्यों के बारे में सिखाते हैं। संवैधानिक मूल्य हमें नागरिक जिम्मेदारी के बारे में सिखाते हैं और हमें अपने देश के प्रति जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करते हैं। संवैधानिक मूल्य समानता और न्याय को बढ़ावा देते हैं, जिससे हमारे समाज में सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर मिलते हैं। संवैधानिक मूल्य लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मदद करते हैं, जिससे हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद मिलती है। संवैधानिक मूल्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देते हैं, जिससे हमारे देश के नागरिकों को अपने जीवन को अपनी मर्जी से जीने का अधिकार मिलता है। संवैधानिक मूल्य राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हैं, जिससे हमारे देश के नागरिकों में एकता और अखंडता की भावना को बढ़ावा मिलता है।
भारत के संविधान को अपनाते हुए सभी को भारतीय संविधान के मूल्यों को बनाए रखना चाहिए कि संविधान ने सामाजिक, राजनीति एवं आर्थिक न्याय लाने की जिम्मेदारी दी है, हमें इन अधिकारों के लिए बोलना ही होगा। हम अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाएं कि समाज के लिए कुछ सोचे। किसी ना किसी के रूप में समाज के लिए अपना योगदान अवश्य दें। आपके पास कोई प्रतिभा हो तो सामाजिक विकास के लिए उसका प्रयोग करें। यदि हमारा समाज विकसित होगा तो इससे हमारा देश विकसित होगा। यदि प्रत्येक व्यक्ति कुछ इस तरह की सोच रखेगा तो इससे समाज व देश जरूर बदेलगा। हमें देश में राष्ट्रीय एकता, शांति, सद्भाव एवं न्याय के लिए संकल्प लेना होगा। देश में आपसी मेलजोल व प्रेम रहेगा तो राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा। क्योंकि भारत हजारों साल से विविध धर्म संस्कृतियों का देश रहा है। सदियों से लोग बेहतर तरीके से एक दूसरे के साथ भाईचारा के साथ रहते आए हैं। हमारे महामानवों की भी यह परिकल्पना थी जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता हो। हमें इन्हीं परिकल्पनाओं को साकार करना है।
हम ऐसे ही वातावरण का निर्माण करने का संकल्प लेना होगा। हमें इस तरह के आयोजन करने चाहिए जिससे हम एक दूसरे को समझ सके। सभी धर्म संस्कृति का सम्मान कर सके। हमें यह भी संकल्प लेना होगा कि हम हमारे संविधान को पढ़ेंगे, जानेंगे और संवैधानिक मूल्यों को अपने व्यवहार में अपनाएंगे। हमारा संविधान मानवतावादी है और बराबरी के लिए है। और हम संविधान को मानने वाले और संविधान पर चलने वाले लोग है। ऐसे में हम भारत के लोगों पर न्याय, समता, बंधुता और शांति का वातावरण स्थापित करने का संवैधानिक दायित्व है। हमें इसी दायित्व हो पूरा करने का वादा लेना है।
हमें संविधान को पूर्णरूपेण लागू करने का संकल्प लेना होगा। आइए, हम एकजुट होकर समतामूलक समाज निर्माण की इस मुहिम में आगे ले जाने की शपथ लें।
(लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)