हे आदित्यनाथ! यह कैसा रामराज ?

गोपाल झा.
यूपी में ‘गुण्डाराज’ खत्म करने के नाम पर चुनाव जीते जाते हैं। यूपी में ‘राज’ बदलते ही ‘गुण्डे’ बदल जाते हैं, रहता ‘गुण्डाराज’ ही है। यूपी में आदित्यनाथ की सरकार कितनी लचर है, इसकी बानगी देखिए। अतीक गुण्डा था। गैंगस्टर था। कानून का अपराधी था। लेकिन उसकी हत्या हुई पुलिस सुरक्षा घेरे को तोड़कर। कितनी कमजोर है यूपी सरकार की सुरक्षा घेराबंदी ? यूपी पुलिस तो खुद सुरक्षित नहीं। पहले भी कई अधिकारियों को भीड़ ने ‘सजा ए मौत’ दी है। आज तक उनका कुछ नहीं हुआ।
बात अतीक की हत्या भर की नहीं है। बेशक, सभ्य समाज में अपराधियों की मौत पर मातम मनाने का रिवाज नहीं है। जो खुद ‘खौफ का पर्याय’ हो, उसकी मौत पर तो शोक जताने का कोई औचित्य भी नहीं है। लेकिन, यूपी में अपराधियों के बढ़ते हौसले, हत्या, लूटपाट, धार्मिक उन्माद की बढ़ती घटनाओं पर तो सवाल उठाए ही जा सकते हैं। अतीक और उसके भाई की सरेआम हत्या करने वाले लवलेश, अरुण और सनी की आपराधिक पृष्ठभूमि क्या है, पता लगाना बाकी है। कहने को यूपी में धारा 144 लगा दी गई है, 17 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है। क्या यही है मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का कथित रामराज ? चोले का रंग सिर्फ संत और मौलाना का बाहरी आवरण बता सकता है, आंतरिक भावना को नहीं। जैसे शेर की खाल ओढ़ लेने मात्र से गधा कभी शेर नहीं हो सकता। बात समझने भर की है। जिस देश में रंग पर राजनीति हो, जाति-धर्म की सीढ़ियां सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाती हों, उस देश में सत्य हमेशा परेशान ही रहेगा, संभवतः पराजित भी। क्योंकि लोकतंत्र का दूसरा नाम भीड़तंत्र भी है। लोकतंत्र में जब गुण्डे-बदमाश ‘नायक’ बन जाएं तो समाज फिर समाज नहीं रहता, कबीला बनकर रह जाता है। अगर अपराधियों को खत्म करने का यही तरीका है तो फिर पुलिस व अदालत जैसी व्यवस्था को फौरन बंद कर देना चाहिए। संविधान को औचित्यहीन करार देनी चाहिए। ‘रामराज’ में इनकी कोई जरूरत नहीं।
सियासी तौर पर देश धार्मिक उन्माद की चपेट में है। अब तो अपराधियों को भी धार्मिक दृष्टि से देखा जाने लगा है। मरने वाला मुस्लिम है और मारने वाला हिंदू। इसलिए बदलते भारत में इस नृशंस वारदात को भी उसी चश्मे से देखा जाएगा। जिस देश की संसद और विधानसभाओं में ‘गुण्डे-बदमाशों’ की संख्या अधिक हो, वहां पर इसी तरह के माहौल की ही कल्पना संभव है।
चूंकि अतीक के हत्यारे मीडियाकर्मी बनकर पहुंचे थे, ऐसे में ‘बद से बदनाम’ मीडिया के लिए यह और भी बुरी खबर है। इसके परिणाम भी आ गए हैं। यूपी में मंत्रियों के आवास पर मीडियाकर्मियों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। जिस राज्य में इतनी बड़ी वारदात हुई हो, वहां की ‘नपुंशक’ व्यवस्था पर सवाल उठाने के बजाय ‘भीड़’ तालियां बजाएगी। क्योंकि इस वक्त आतंकी ‘अवांछित’ नहीं होता, उसकी पहचान धर्म और जाति से होती है। सनद रहे, जो लोग आज इस वारदात को सही ठहरा रहे हैं, उन्हें राहत इंदौरी का यह शेर याद रखना चाहिए। बकौल शायर,
अगर खिलाफ हैं होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है,
लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है। 

(लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के एडिटर इन चीफ हैं)

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