एम.एल शर्मा.
किसी घर का मुखिया, किसी घर का चिराग, किसी का पिता, किसी का बेटा, भाई इन सब के लिए अब दुआएं ही एकमात्र सहारा है। उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिक जिंदगी और मौत की जद्दोजहद में फंसे हैं। विगत 16 दिनों से सुरंग में फंसे मजदूरों को निकालने के सभी सरकारी दावे अभी तक खोखले साबित हुए हैं।
आखिरकार, भारतीय सेना ने बचाव का जिम्मा लेते हुए मोर्चा संभाला है। सलाम है सेना के जज्बे व हौंसले को। रेस्क्यू के लिए सेना ‘ऑपरेशन मूषक’ में जुट गई है। विदेशी मशीनों से इतर सेना ने परंपरागत पहाड़ काटने के ढ़र्रे पर भरोसा जताया है। अमेरिकी मशीन ऑगर ने बीच में ही दम तोड़ दिया।
अभियान के 13वें दिन मशीन ही राहत में सबसे बड़ा रोड़ा बन गई। नतीजतन, बचाव कार्य खासा प्रभावित हुआ।
विडंबना है कि भारत अभी भी मशीनी संसाधनों के पुख्ता इंतजाम नहीं कर पाया है। राहत कार्य में दर्जन भर बचाव दलों के पास कमान है, पर उम्मीद की रौशनी का पूरे देश को बेसब्री से इंतजार है।
विडंबना है कि भारत अभी भी मशीनी संसाधनों के पुख्ता इंतजाम नहीं कर पाया है। राहत कार्य में दर्जन भर बचाव दलों के पास कमान है, पर उम्मीद की रौशनी का पूरे देश को बेसब्री से इंतजार है।
सवाल उठना लाजिमी है कि बचाव कार्य में इतनी देरी क्यों लग रही है ? क्या सरकार के पास अभियांत्रिकी के विशेषज्ञ नहीं है ? टनल में फंसे मजदूरों के परिजनों की सांसे अपनों में अटकी है।
उधर कुदरत भी बचाव दल की जमकर परीक्षा ले रही है। यह नहीं है कि ऐसा हादसा पहली दफा हुआ हो। पूर्व में भी देश में ऐसी दुर्घटनाएं हो चुकी है। पर इससे सबक लेना किसी ने मुनासिब नहीं समझा। देरी की एक खास वजह सिलक्यारा तक पहुंचने के लिए बनी सड़कों की बदहाल स्थिति भी बताई जा रही है। हालांकि एक छोर पर लंबवत खुदाई का काम आरंभ हुआ है। ऐसे में उम्मीद है कि 41 मजदूरों को जल्दी ही सूर्य देव के दर्शन होंगे, उन्हें बाहर निकाल लिया जाएगा। हमारी प्रार्थनाएं प्रभावितों के साथ है।
(लेखक पेशे से अधिवक्ता हैं और समसामयिक मसलों पर टिप्पणीकार भी)