जैनेंद्र कुमार झांब.
सच की सीधी-सादी बेटी झूठ के ‘सिक्स पैक’ बेटे की ‘हार्ले डेविडसन’ पर लिफ्ट ले बैठी। नतीजा, गर्भवती हो कर घर लौटी। अब सच तो सच। बेटी की शादी करवा कर माना। उसी वाले झूठ के उसी वाले बेटे से। दहेज में स्वाभिमान मांगा सयाने झूठ ने।
बेटी का गर्भ भ्रष्टाचार सा ‘अन्कन्ट्रोल्ड’ बढ़ रहा था, देना पड़ा दहेज, मुँह माँगा। सच की बेटी बाप का स्वाभिमान लूट कर झूठ की पुत्रवधु हुई।
बधाई, दोनों को।
कालान्तर में सच की बेटी ने झूठ का पोता जना। सामाजिक सतमासा, वैज्ञानिक यथासमय, पुनः बधाई दोनों को। वर्णसंकर होते ही निराले। नाम रखा भ्रष्टाचार। झूठ का सौन्दर्य और सच का स्वाभिमान। चल निकली उसकी तो। सीधे हाथ में झूठ और धोने वाले हाथ में सच! है कोई रोकने वाला ?
कालान्तर में सच की बेटी ने झूठ का पोता जना। सामाजिक सतमासा, वैज्ञानिक यथासमय, पुनः बधाई दोनों को। वर्णसंकर होते ही निराले। नाम रखा भ्रष्टाचार। झूठ का सौन्दर्य और सच का स्वाभिमान। चल निकली उसकी तो। सीधे हाथ में झूठ और धोने वाले हाथ में सच! है कोई रोकने वाला ?
उधर सच के श्रीहीन पोते, झण्डे धरने में व्यस्त। जब स्वाभिमान दरकार, जाकर भूआ के घर से ले आते, तनिक, बदले में यहाँ का धरना वहाँ रखना होता, उठा कर। कुल जमा खर्च यह कि झूठ के सौजन्य से सच वेन्टिलेटर पर सांस ले रहा, फिलहाल तो।
-लेखक राजनीतिक, सामाजिक और साहित्यिक मसलों पर बेबाक राय रखते हैं