वो सीटें जहां से महिला को नहीं मिला एमएलए बनने का मौका

गोपाल झा. 

 लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण मिलना अब तय लग रहा है। इससे राजनीति में महिलाओं की पैठ मजबूत होने की उम्मीद जताई जा रही है। हनुमानगढ़ जिले की पांच सीटों की पड़ताल करें तो हनुमानगढ़ और भादरा ऐसी सीटें हैं जहां पर आजादी के बाद अब तक किसी महिला को विधानसभा जाने का मौका नहीं मिला। हनुमानगढ़ से साल 2013 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर डॉ. सुमन चावला ने प्रयास भी किए लेकिन सफलता नहीं मिली। हां, कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवार के बाद उन्हें सर्वाधिक वोट जरूर मिले। यानी वे तीसरे नंबर पर रहीं। हालांकि डॉ. सुमन चावला सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय रहीं लेकिन फिर चुनाव मैदान में नजर नहीं आईं। भादरा में भी कांग्रेस ने साल 1985 में विमला देवी को प्रत्याशी बनाया लेकिन वे चुनाव हार गईं। विमला ने साल 2003 में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर भी किस्मत आजमाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाईं और इस तरह भादरा क्षेत्र से भी किसी महिला को अब तक विधायक बनने का मौका नहीं मिला।
नोहर सीट से कांग्रेस की सुचित्रा आर्य को दो बार विधानसभा पहुंचने का मौका मिल चुका है। वर्ष 1990 में सुचित्रा आर्य ने कांग्रेस टिकट पर पहली जीत हासिल की थी। फिर उन्हें 1998 में दूसरी बार सफलता मिली। इसके बाद उन्हें लगातार दो बार हार का सामना करना पड़ा।

पुरानी सीट टिब्बी से 1993 में शशिदत्ता को बतौर निर्दलीय चुनाव जीतने का मौका मिला था। जीतने के बाद उन्होंने बीजेपी को समर्थन दिया और विधि मंत्री बनीं। वहीं पीलीबंगा क्षेत्र की बात करें तो द्रोपदी मेघवाल को 2013 में विधायक बनने का मौका मिला जबकि संगरिया से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर डॉ. परम नवदीप को साल 2008 में विधानसभा जाने का अवसर मिला। खास बात है कि उन्होंने बीजेपी की दमयंती बेनीवाल को हराया था। बाद में कांग्रेस ने दो बार शबनम गोदारा को मौका दिया लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाईं।

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