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राजस्थान देश का पहला राज्य है, जिसने अपने नागरिकों के लिए राइट टू हेल्थ बिल लागू किया है। अब हर नागरिक को ईलाज कराने का कानूनी अधिकार मिल गया है। गहलोत सरकार ने सरकारी अस्पतालों में तो इसे पहले ही लागू कर रखा है। अब प्रदेश के 2500 से अधिक निजी अस्पतालों में भी हर व्यक्ति के अनिवार्य ईलाज का रास्ता सरकार ने खोल दिया है। मतलब उदाहरण के तौर पर कोई एक्सीडेंट केस है या महिला की डिलीवरी है तो जो भी नजदीकी हॉस्पिटल में ले जाया जाएगा, वहां डॉक्टर्स को मरीज की आर्थिक हालात को जाने बिना ही उस व्यक्ति की जान बचाने के लिए ईलाज प्रारम्भ करना ही होगा। अगर सम्बंधित अस्पताल में विशेषज्ञ नहीं है तो जान बचाने के प्राथमिक उपचार के बाद आगे माकूल बंदोवस्त वाले अस्पताल में मरीज को रेफर किया जा सकता है। एडवांस पैसों की व्यवस्था या हादसे में घायल के लिए पुलिस की लीगल प्रक्रिया के इंतजार में समय गंवाये बिना ही मरीज की जान बचाने के लिए तुरंत ईलाज करना ही होगा। किसी की ईलाज के दौरान मौत हो जाती है, तो हॉस्पिटल वाले पैसों के लिए लाश को रोककर नहीं रख सकेंगे। इतना ही नहीं आपात हालात में किसी के पास पैसे नहीं होने पर भी उस मरीज को एक अस्पताल से दूसरे में ले जाने के लिए एम्बुलेंस, आवश्यक जीवन रक्षक मेडिसीन आदि व्यवस्था अस्पताल प्रबंधकों को जीवन बचाने के लिए तत्काल करनी होगी। ऐसा नहीं है कि ये सब मुफ्त में करना होगा। निजी अस्पतालों पर एक रुपये का अनावश्यक बोझ नहीं डाला जाएगा। बिल में साफ है कि राज्य सरकार एक आपदा कोष बनाकर सारा खर्च वहन करेगी। हमारा संविधान ये व्यवस्था देता है कि प्रत्येक व्यक्ति को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार है। उसी की पालना में संवेदनशील मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान के हर नागरिक के जीवन को अनमोल मानते हुए उनके स्वस्थ रहने और ईलाज की सुविधा आम और खास नागरिक को उपलब्ध कराने के लिए ये स्वास्थ्य अधिकार बिल विधानसभा में 21 मार्च को लागू किया है। हालांकि प्रदेश के डॉक्टर्स इस बिल का भारी विरोध कर रहे है। तब से लेकर आजदिन तक विरोध में निजी अस्पताल बन्द है। हड़ताल में मरीजों के सेहत की चिंता वो नहीं कर रहे है। हड़ताल के दौरान हमारे भीनमाल में एक अस्पताल ने मानवीयता का परिचय देते हुए आपात हालात में एक महिला की डिलीवरी क्या करा दी डॉक्टर्स के संगठन ने उस अस्पताल पर 75 हज़ार का जुर्माना ही लगा दिया। क्या ये तरीका जायज है ? क्या मरीज की जान बचाना अपराध है ? डॉक्टर्स तो भगवान का रूप होता है। क्या आपके डॉक्टर्स संगठन की एकता मानव धर्म से भी ज्यादा बड़ी है ? डॉक्टर्स का विरोध सरकार की नीतियों को लेकर करने हो सकता है, वो करते रहे, हमें दिक्कत नहीं है, लेकिन आप सभी मिलकर हड़ताल करके लाखों मरीजों को ईलाज से वंचित करके अमानवीयता की जो हद पार कर रहे हो, वो निंदनीय है। जनता उठ खड़ी हुई तो आप कहाँ जाओगे ?
स्वास्थ्य का अधिकार बिल पारित होने से पहले डॉक्टर्स के संगठनों ने जिन तीन मुख्य प्रावधानों का विरोध किया था, राज्य सरकार ने वो बात अक्षरत मान भी ली। जिसमें डॉक्टर्स के प्रतिनिधियों ने 50 बेड से कम क्षमता वाले अस्पतालों को इस बिल के एमरजेंसी वाले प्रावधानों के दायरे से बाहर रखने, ईलाज का विरोध करने पर शिकायत प्राधिकरण में जनप्रतिनिधियों की बजाय डॉक्टर्स को ही रखने, शिकायत प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ न्यायालय में जाने का प्रावधान रखने की मांग रखी थी। राज्य सरकार ने ये सभी सुझाव पूरी तरह नए बिल में शामिल करके संशोधित प्रावधन के साथ स्वास्थ्य अधिकार बिल 21 मार्च को विधानसभा में पारित करवाया है।
अब डॉक्टर्स इस बिल का ही वापस लेने की जिद करते हुए मरीजों के ईलाज से ही मना और बहिष्कार करके हड़ताल पर है। मतलब आम लोगों को स्वास्थ्य का कानूनी अधिकार मिले, वो डॉक्टर्स लॉबी को मंजूर नहीं है।
एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी की तरफ से लाये गए इस ऐतिहासिक बिल के लागू होने से सिर्फ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को ही निजी अस्पतालों में ईलाज का कानूनी अधिकार मिलेगा, ऐसा नहीं है। मरीज चाहे भाजपा की विचारधारा से जुड़ा हो या किसी फिर दूसरी पार्टी को वोट देता आ रहा हो, या कांग्रेस के खिलाफ भी हो, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी ने स्वास्थ्य के अधिकार में लाभ देने को लेकर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा है। प्रत्येक राजस्थानी को इस योजना का समान रूप से फायदा मिलेगा।
विधानसभा की प्रवर समिति में जब ये बिल संशोधन- सुझाब- कानूनी अध्ययन के लिए रखा गया था, तब उसमें भाजपा- कांग्रेस समेत सभी दलों के विधायकों ने समर्थन किया था। फिर अब भाजपा के बड़े नेता इस बिल का विरोध करके भ्रम क्यों फैला रहे है ? असल में देश भर में जादूगर के नाम से विख्यात, प्रधानमंत्री मोदी तक जिनके कोरोना प्रबंधन को लेकर तारीफ करते हो, ऐसे सबसे अनुभवी और परिपक्वत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मास्टर स्ट्रोक से अधिकांश नेताओं और मेडिकल लॉबी का जो आर्थिक लाभ वाला गठजोड़ चलता आ रहा था, वो गठजोड़ हिल गया है। इस गठजोड़ पर तरीके से भारी चोट कर दी है। ये जो फार्मा- मेडिकल लॉबी है जो वर्षों से आमजन को दस रुपये की दवा को 200 रुपये में बेचकर भारी मुनाफा कमाती आ रही है, उसको अशोक गहलोत ने तोड़ने की शुरुआत कर दी है। इस वजह से अधिकांश नेता भी चंदे के धंधे पर चोट लगने से बिलबिला गए है। चोट बहुत गहरी लगी है। सभी जानते है कि परिपक्क और अनुभवी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी ने मंझे हुए खिलाड़ी की तरह आम जनता को इस लूट खसोट से बचाने के लिए कानून के इस अचूक हथियार का प्रयोग कर दिया है। हर व्यक्ति को 25 लाख रुपये तक का चिरंजीवी योजना से ईलाज, दुर्घटना में मत्यु पर हर राजस्थानवासी को तुरंत दस लाख रुपये की आर्थिक सहायता और अब सरकारी और निजी सभी अस्पतालों में अनिर्वाय ईलाज के प्रावधानों से जनता से लूट खसोट करने वालों के साथ ही विपक्ष भी सकते में है। इस वजह से वो आमजन के स्वास्थ्य के अधिकार और जनता की अनमोल जान को बचाने के लिए लाए गए बिल का समर्थन करने की बजाय एक बड़ी लॉबी बेशर्मी की हदें पार करते हुए विरोध पर उतारू है। हम आमलोगों को ये स्वविवेक से देखना है कि जब हमारे लिए अशोक गहलोत जी इस बेहद मजबूत आर्थिक गठजोड़ वाली लॉबी से लड़ रहे है, तब वो सब कौन है जो जनता के लिए लिए गए फैसले के विरोध में है। जो भी विधायक या नेता राजस्थान के करोड़ों नागरिको के स्वास्थ्य के अधिकार की खिलाफत कर रहा है वो निश्चियत ही देशद्रोही और जन विरोधी है।
हम सब जानते है कि मेडिकल सेक्टर में बहुत सारे अच्छे डॉक्टर्स लोग इस प्रोफेशन को पवित्र मानते हुए सेवा कर रहे हैं। लेकिन ये भी कड़वी सच्चाई है कि आज कुछ लोगों ने मेडिकल के इस पवित्र पेशे को सेवा की बजाय धंधा बना दिया गया है। बहुत से अस्पतालों में तो बिना जरूरत के ही दुनिया भर की गैर जरूरी जांचे करवाकर भारी भरकम बिल बना दिया जाता है। मुझे याद है कि कुछ वर्षों पूर्व दिल्ली में पत्रकारिता के दौरान बुखार आने में मैं दिल्ली के निजी बीएल कपूर अस्पताल में भर्ती हो गया। उन्हें मेरे कम्पनी से करवा रखे इंश्योरेंस का पता चला। मुझे 5 दिन तक जबरन भर्ती रखा गया। भारी भरकम बिल बना दिया। सिफारिश लगाकर मुझे डिचार्ज होना पड़ा। ऐसा आपके साथ भी हुआ होगा। जिंदगी में मुझे देवदूत सरीखे अच्छे डॉक्टर्स भी खूब मिले है, जिन्होंने मेरे कहने पर जरूरतमंद मरीजों का निशुल्क ईलाज और ऑपरेशन तक किया है। बात फिर मूल मुद्दे की। अभी तक निजी अस्पताल पर किसी का अंकुश नहीं था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साहब ने बड़े सलीके से निजी अस्पतालों को सरकारी निगरानी में ले लिया है। विरोध करने वाले डॉक्टर्स और भाजपा के ये बड़े नेता जो भ्रम और झूठ फैलाने में लगे है कि इमरजेंसी में आने वाले मरीजों का निजी अस्पताल वालों को मुफ्त में ईलाज करना होगा। हकीकत ये है कि सरकार ने स्पष्ट प्रावधान किया है कि ऐसे मरीजों का ईलाज का सारा खर्चा राज्य सरकार वहन करेगी। राज्यपाल से स्वास्थ्य का अधिकार बिल की मंजूरी मिलते ही सरकार इस बारे में विस्तृत गाइड लाइन तैयार कर देगी। जिसमें राज्य सरकार की ओर से मरीजों के ईलाज के पुनःर्भरण की व्यवस्था के बारे सब कुछ साफ स्पष्ट कर दिया जाएगा।
राजस्थान देश का पहला राज्य बन गया, जिसके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जनता के लिए ऐसा क्रांतिकारी फैसला लागू कर दिया है।
उपचार का कानूनी अधिकार मिलने से जनता को यह फायदे होंगे..
• मरीजों को निजी हॉस्पीटल में भी आपातकालीन स्थिति में निशुल्क इलाज मिल सकेगा.
• बिल के नियमें के तहत आउट डोर पेशेंट्स (OPD), इनडोर भर्ती पेशेंट्स, डॉक्टर को दिखाना और परामर्श, दवाइयां, डायग्नोसिस, इमरजेंसी ट्रांसपोर्टेशन यानी एम्बुलेंस सुविधा, प्रोसीजर और सर्विसेज, इमरजेंसी ट्रीटमेंट मिलेगा.
• प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति का हेल्थ इंश्योरेंस सरकार अपने स्तर पर करवाएगी.
• अब डॉक्टरों द्वारा दिए जा रहे इलाज की जानकारी मरीज और उसके परिजन ले सकेंगे.
• फीस या चार्ज के एडवांस पेमेंट के बिना इमरजेंसी कंडीशन के दौरान बिना देरी किए प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर जरूरी इमरजेंसी ट्रीटमेंट फैसिलिटी और इंटेंसिव केयर, इमरजेंसी डिलेवरी और ट्रीटमेंट देंगे।
• कोई मेडिको-लीगल मामला है, तो हेल्थ केयर प्रोवाइ़डर केवल पुलिस की एनओसी या पुलिस रिपोर्ट मिलने के आधार पर इलाज में देरी नहीं करेगा.
• किसी भी तरह की महामारी के दौरान होने वाले रोगों के इलाज को इसमें शामिल किया गया है.
• इलाज के दौरान यदि मरीज की अस्पताल में मौत हो जाती है और अस्पताल में इलाज का भुगतान नहीं होता है तब भी डेड बॉडी को अस्पताल रोक नहीं सकेंगे.
• किसी मरीज को गंभीर स्थिति में दूसरे हॉस्पीटल में रैफर करने की जिम्मेदारी अस्पताल की होगी.
• सर्जरी, कीमोथैरेपी की पहले से ही सूचना देकर मरीज या उसके परिजनों से सहमति लेनी होगी.
• किसी मेल वर्कर की ओर से महिला पेशेंट के फिजिकल टेस्ट के दौरान महिला की उपस्थिति जरूरी होगी.
• उपलब्ध ऑप्शनल ट्रीटमेंट मेथड का सलेक्शन मरीज कर सकेगा.
• हर तरह की सर्विस और फैसिलिटी की रेट और टैक्स के बारे में सूचना पाने का हक मिलेगा.
• निजी अस्पतालों को भी मरीज की बीमारी को गोपनीय रखना होगा.
• इसके अलावा इंश्योरेंस स्कीम में चयनित अस्पतालों में निशुल्क उपचार का अधिकार होगा.
• रोड एक्सीडेंट्स में फ्री ट्रांसपोर्टेशन, फ्री ट्रीटमेंट और फ्री इंश्योरेंस कवर इस्तेमाल होगा.
• कोई व्यक्ति एक्ट के नियमों का उल्लंघन करता है तो पहली बार 10 हजार और दूसरी बार 25 हजार का जुर्माना देना होगा.
• इस बिल में मरीज और उनके परिजनों को लेकर भी कुछ कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं. स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के साथ मरीज या उसके परिजन दुर्व्यवहार नहीं करेंगे. साथ ही अप्राकृतिक मृत्यु के मामले में पोस्टमार्टम करने की अनुमति देनी होगी.
(लेखक दैनिक भास्कर दिल्ली के ब्यूरो रहे हैं)