बाबा रामदेव: हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक

भटनेर पोस्ट डॉट कॉम. 

जब-जब समाज में धार्मिक कट्टरताएं बढ़ती हैं, अत्याचार बढ़ते हैं, मानव के बीच छुआछूत की भावना बलवती होती है तो मानव को मानव होने का अहसास करवाने के लिए देवताओं का अवतरण होता है, ऐसी मान्यता है। भारत में अनेक लोक देवताओं के अवतरण का जिक्र मिलता है, इनमें से एक हैं बाबा रामदेव। पीरों के पीर रामापीर। भक्त बाबारी। खास बात है कि बाबा रामदेव पर जितना हक हिंदुओं का है, उतना ही मुसलमानों का भी। हिन्दू उन्हें बाबा रामदेव कहते हैं तो मुस्लिम रामसापीर।
मान्यता है कि बाबा रामदेव योगेश्वर श्रीकृष्ण के अवतार थे। रूणेचा धाम हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक स्थल है। बाबा रामदेव की समाधि पर हर साल भारत और पाकिस्तान के श्रद्धालु आते हैं और एक साथ समाधि पर माथा टेकते हैं। माना जाता है कि बाबा रामदेव ने बाड़मेर के उडूगासमीर गांव में अवतार लिया और रूणेचा में जीवित समाधि ली। उनके पिता अजमालजी तंवर थे और माता का नाम था मैणादे। पत्नी नेतलदे थीं और गुरु थे बालीनाथ। उनका एक सुंदर घोड़ा भी था जिसे लाली रा असवार कहा जाता था।
बाबा रामदेव दलितों के मसीहा थे। उन्होंने दलितों की सेवा की और हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बने। उन्हें पोकरण का राजा कहा जाता है लेकिन उन्हें राजा की तरह जीवन गुजारने से गुरेज था, वे सेवक की तरह रहते थे। उन्होंने कई चमत्कार दिखाए जिन्हें ‘पर्चे दिखाना’ कहते हैं। मान्यता है कि बाबा रामदेव ने अलग-अलग स्थानों पर करीब 24 पर्चे दिए हैं। कहा जाता है कि जिस जगह बाबा रामदेव ने रूणेचा में समाधि ली उस जगह महाराजा गंगा सिंह ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।

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