






एन. के. सोमानी.
वामपंथी नेता और चीनी हितों के पैरोकार अनुरा कुनारा दिसानायके श्रीलंका के नए राष्ट्रपति होंगे। घोषित चुनाव नतीजों में दिसानायके को 7 लाख 27 हजार ( 52 फीसदी) वोट मिले जबकि प्रमुख विपक्षी उम्मीदवार साजिथ प्रेमदासा 3 लाख 33 हजार ( 23 फीसदी) वोट प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे। मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को मात्र 2 लाख 35 हजार (16 फीसदी) मत प्राप्त हुए। दिसानायके ने नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) और समाजवादी झुकाव वाली जनता विमुक्ति पेरेनुमा (जेवीवी) पार्टी के संयुक्त प्रत्याक्षी के रूप में चुनाव लड़ा था। विक्रमसिंघे की करारी हार को चुनाव में बड़े उलट-फेर के तौर पर देखा जा रहा है।
2022 के आर्थिक संकट और बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद के बाद श्रीलंका में यह पहला आम चुनाव था। गंभीर वित्तीय संकट और व्यापक विरोध प्रदर्शन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा था। गोटाबाया के इस्तीफा देने के बाद 2022 में रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति पद संभाला था। अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान उन्होंने देश का नेतृत्व किया और देश में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू की। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज हासिल कर देश की अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने का प्रयास किया। निर्दलीय प्रत्याक्षी के तौर पर चुनाव में मैदान में उतरे विक्रमसिंघे ने देश में आर्थिक सुधारों को जारी रखने का वादा मतदाताओं से किया था। लेकिन विक्रमसिंघे के यह प्रयास नाकाफी साबित हुए। दूसरी ओर दिसानायके ने कैंपेन के दौरान भ्रष्टाचार विरोधी उपायों और गरीबों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने का वादा किया। दिसानायके के वादे पर मतदाताओं ने भरोसा जताया और उन्हें देश की सत्ता सौंप दी। विक्रमसिंघे भारत के करीबी माने जाते है। यही वजह है कि श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन भारत के लिए झटका के तौर पर देखा जा रहा है।
श्रीलंका कूटनीतिक तौर पर भी भारत के लिए बहुत अहम है। भारत के बिल्कुल समीप होने के कारा चीन हमेशा इसको अपने पाले में लेने की साजिश रचता रहता है। यद्यपि भारत और श्रीलंका के बीच मजबूत संबंधों का इतिहास है। मजबूत आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के बावजूद पिछले एक-डेढ दशक से श्रीलंका की चीन से नजदीकी बढ़ी है। श्रीलंका चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना से भी जुड़ा हुआ है। वह श्रीलंका के जरिए भारत की घेराबंदी के प्रयास में जुटा है। स्टिंग ऑफ पर्ल की नीति के माध्यम से चीन हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है।
श्रीलंका के भीतर दिसानायके की छवि चीन समर्थक नेता के तौर पर रही है। दिसानायके और उनकी पार्टी का रूख भारत विरोधी और चीन समर्थन का रहा है। 2021 में दिसानायके की पार्टी जेवीपी पर चीन से मदद लेने के आरोप लगे थे। 1980 के दशक में जब भारत ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्ठे) के खात्मे के लिए श्रीलंका में शांति सेनाएं भेजी थी उस वक्त भी दिसानायके और उनकी पार्टी ने भारत सरकार के इस निर्णय का विरोध किया था। चुनाव कैंपेन के दौरान दिसानायके कई बार कह चुके हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो श्रीलंका में भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी के पॉवर प्रोजेक्टस रद्व करवाएंगे। उनका कहना है कि अडानी प्रोजेक्ट श्रीलंका की ऊर्जा संप्रभुता के लिए खतरे की घंटी है। हालांकि, बाद के कई बयानों में उन्होंने यह भी कहा है कि वे सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को मजबूत बनाएगे जिसमें भारत भी शामिल है।
कोलंबों में भारत और चीन दोनों का ही बड़ा निवेश है। निवेश के अतिरिक्त दोनों ही देशों ने कोलंबों को अरबों डॉलर का ऋण दिया है। यही वजह है कि श्रीलंका के चुनाव परिणामों पर भारत और चीन की निगाहे टिकी हुई थी।
पिछले दिनों में मालदीव की सत्ता में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। वहां भी चीन समर्थित मोहम्मद मुइज्जू की सरकार बनी है। दूसरी ओर बांग्लादेश में भारत की करीबी शेख हसीना सरकार के जाने के बाद अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्द यूनुस भारत विरोधी एजेंडे पर आगे बढते हुए दिख रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक ओर पड़ोसी देश में भारत विरोधी पार्टी का सत्ता में आना भारत को असहज कर सकता है।
हालांकि, आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में दिसानायके की जीत वहां के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। उनकी जीत से देश के भीतर पहली बार एक मजबूत वामपंथी विचारधारा की सरकार बन रही है। लेकिन बढती हुई मुद्रास्फीति और विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने के कारण देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती उनके सामने होगी। दूसरी ओर विदेश नीति को मोर्चों पर भी दिसानायके को दो-दो हाथ करने पड़ सकते है। हालांकि, कोलंबो की सत्ता में होने वाले परिर्वतनों ने भारत-श्रीलंका और चीन-श्रीलंका संबंधों की दिशा को कुछ हद तक प्रभावित किया है, लेकिन सत्ता परिर्वतन के यह सिद्वात हमेशा स्थायी नहीं हो सकते है। ऐसे में दिसानयाके से उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने वामपंथी प्रेम के प्रदर्शन में भारतीय हितों को ताक पर नहीं रखेंगे।
-लेखक अंतरराष्टीय मामलों के जानकार व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं








