




डॉ. एमपी शर्मा.
आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में हम जो खाते हैं, वही हमारी सेहत का आधार बनता है। पोषण की दौड़ में मोटे अनाज जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ फिर से चर्चा में हैं। ये अनाज सिर्फ पुराने ज़माने की थाली की शोभा नहीं थे, बल्कि भविष्य की सेहत का आधार भी हैं। बाजरा, ज्वार, रागी जैसे मोटे अनाज में छुपा है रोगों से लड़ने का अनोखा सामर्थ्य। वहीं, गेहूं का संतुलित उपयोग और मैदे से दूरी आज की सबसे जरूरी खानपान नीति बन चुकी है। मैदा जहां दिखावे में आकर्षक है, वहीं शरीर के लिए नुकसानदायक है। अगर हम थाली में थोड़ी समझदारी दिखाएं, तो बड़ी बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं। आहार में विविधता, परंपरा और वैज्ञानिक सोच का मेल ही आज का सुपर फूड मंत्र है। मोटे अनाज न केवल पोषण देते हैं, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाते हैं। अब समय है स्वाद और स्वास्थ्य को साथ लेकर चलने का, मोटे अनाज के साथ।
मोटे अनाज पोषण से भरपूर होते हैं और शरीर को कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। इनमें अधिक फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिज तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाज मुख्य रूप से मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा और पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। इनमें अधिक फाइबर होता है, जो कब्ज और अपच जैसी समस्याओं से बचाता है। कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होने के कारण ये ब्लड शुगर को तेजी से नहीं बढ़ाते। कम कैलोरी और अधिक फाइबर के कारण यह वजन नियंत्रित करने में मदद करता है। इनमें ओमेगा-3 फैटी एसिड और फाइबर होते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल कम कर हृदय को स्वस्थ रखते हैं। इनमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस भरपूर होता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है। ग्लूटेन से एलर्जी वाले लोगों के लिए यह गेहूं का बेहतरीन विकल्प है।
कौन-कौन से मोटे अनाज खाने चाहिए?
भारत में मुख्यतः 7 प्रकार के मोटे अनाज प्रमुख रूप से खाए जाते हैं। बाजरा, हड्डियों को मजबूत करता है, एनीमिया में फायदेमंद, पाचन सुधारता है। ज्वार डायबिटीज और मोटापे को कंट्रोल करता है, फाइबर और प्रोटीन से भरपूर है। रागी कैल्शियम और आयरन का बेहतरीन स्रोत है और हड्डियों के लिए भी अच्छा है। कोदो वजन कम करने में मदद करता है, एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है। सांवा लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स, डायबिटीज के लिए अच्छा है। कुटकी पाचन तंत्र के लिए अच्छा है और इम्युनिटी भी बढ़ाता है। चौलाई ग्लूटेन-फ्री, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर है।
अब सवाल है, इसे कैसे खाएं? दरअसल, मोटे अनाज से रोटी, उपमा, खिचड़ी, दलिया, इडली, डोसा आदि बना सकते हैं। गेहूं के आटे में 20-30 फीसद मोटे अनाज मिलाकर रोटी बनाएं।
गेहूं कितना खाना चाहिए?
गेहूं की रोटी संयमित मात्रा में खाएं। सामान्य व्यक्ति को रोज़ाना 150-200 ग्राम (3-4 रोटी) से ज्यादा गेहूं नहीं खाना चाहिए। अगर मोटापा, मधुमेह, थायरॉयड या पेट से जुड़ी समस्या हो तो 50-100 ग्राम (2 रोटी) तक सीमित करें। बारीक पिसे आटे की बजाय मोटा पिसा आटा और चोकर वाला आटा अधिक फायदेमंद है। गेहूं के साथ अन्य अनाज (जैसे बाजरा, ज्वार, रागी) मिलाकर खाएं ताकि पोषण संतुलित रहे।
गेहूं के नुकसान
गेहूं के आटे की ज्यादा रोटी खाने से वजन बढ़ सकता है क्योंकि इसमें कार्बाेहाइड्रेट अधिक होता है। कुछ लोगों को ग्लूटेन एलर्जी या असहिष्णुता हो सकती है। प्रोसेस्ड गेहूं (मैदा) खाने से ब्लड शुगर बढ़ सकता है और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है।
मैदा के नुकसान
मैदा एक अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ है, जिसमें गेहूं से फाइबर, विटामिन और मिनरल्स हटा दिए जाते हैं। इसके नियमित सेवन से कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जिससे ब्लड शुगर तेजी से बढ़ता है। मैदा में फाइबर नहीं होता, जिससे कब्ज, गैस और एसिडिटी की समस्या हो सकती है। मैदा जल्दी पचता है और भूख बढ़ाता है, जिससे मोटापा बढ़ सकता है। मैदा खाने से कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसमें आवश्यक पोषक तत्व नहीं होते, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है। मैदा का अधिक सेवन मुंहासे, स्किन एलर्जी और बाल झड़ने का कारण बन सकता है।
मैदा की जगह क्या खाएं?
.गेहूं का आटा (चोकर सहित), मोटे अनाज का आटा (बाजरा, ज्वार, रागी, ओट्स) व मल्टी-ग्रेन आटा।
संक्षेप में, मोटे अनाज ज्यादा खाएं। ये पोषण से भरपूर और सेहत के लिए फायदेमंद हैं। गेहूं का सेवन सीमित मात्रा में करें, इसे अन्य अनाजों के साथ मिलाकर खाएं। जितना हो सके, मैदा से बचें, क्योंकि यह पाचन तंत्र, हृदय और वजन पर बुरा असर डालता है। संतुलित आहार अपनाएं, बाजरा, ज्वार, रागी, और साबुत अनाज का अधिक उपयोग करें। अगर आप अपने खान-पान में मोटे अनाज को शामिल करते हैं, तो यह आपकी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा।
-लेखक सुविख्यात सर्जन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं


