भटनेर पोस्ट साहित्य डेस्क.
ज्ञान भारती स्कूल, कोटा के सभागार में आयोजित साहित्यकार सम्मान समारोह में युवा कवयित्री और बाल साहित्यकार मानसी शर्मा को कमला कमलेश राजस्थानी भाषा राष्ट्रीय पुरस्कार एवं सम्मान से नवाजा गया। पुरस्कार स्वरूप मानसी को संस्था का स्मृति चिह्न, प्रशस्ति पत्र, श्रीफल, मानदेय राशि भेंट कर माल्यार्पण करके शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। मुख्य अतिथि, वरिष्ठ बाल साहित्यकार और बाल साहित्य मनीषी दीनदयाल शर्मा ने कहा कि साहित्य का सम्मान करेंगे तो संस्कृति और संस्कार भी बचेंगे।
शर्मा ने कहा कि आज 24 नवंबर 2024 को रविवार के दिन 31वें साहित्यकार सम्मान समारोह में दो साहित्यकारों को सम्मानित करना बहुत मायने रखता है। इस मंच के माध्यम से मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि हम बच्चों से बात करें। उनकी भावनाओं को समझें क्योंकि बच्चे हमें बहुत कुछ सिखाते हैं। बच्चे हमेशा सच्चे होते हैं। उनमें कोई द्वेष भावना नहीं होती और ना ही जात-पांत और छुआछूत मानते हैं। बच्चे मन से इतने सरल होते हैं कि वे कभी किसी के प्रति कोई गांठ नहीं बांधते। जहां तक हो सके हम बच्चों से बात करें।
युवा कवयित्री और बाल साहित्यकार मानसी शर्मा ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि मेरी राजस्थानी काव्य कृति प्रेम, प्यार और प्रीत के लिए सम्मानित किया। मैं खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। सम्मान समारोह के आयोजक और निर्णायकों का आभार प्रकट करती हूं कि आपने मेरी कृति का चयन करके मुझे सम्मानित किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार विश्वामित्र दाधीच ने कहा कि समुद्र सुख सकते हैं, पेड़ सूख सकते हैं, किले खत्म हो सकते हैं लेकिन अजर अमर रहता है। इसलिए जो उत्कृष्ट साहित्य सृजित करके उन साहित्यकारों को समय समय पर सम्मानित करना बहुत जरूरी है।
सम्मान समारोह के विशिष्ट अतिथि जयसिंह आशावत ने कहा कि साहित्य सरल और स्थानीय भाषा में होगा, जनता उसे ही अंगीकार करेगी। जहां तक हो सके हमें अपने साहित्य सृजन में क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से दूर रहना चाहिए।
सम्मान समारोह के सचिव सुरेंद्र शर्मा ने सभी अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि हम अपने साहित्यकार मां कमला कमलेश और पिता गौरीशंकर कमलेश की परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं। इस अवसर पर हाड़ौती के वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र निर्माेही की राजस्थानी काव्य कृति कुरजां रांणी छंद रचौ का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। राजस्थानी भाषा पुरस्कार समारोह में गौरीशंकर कमलेश पुरस्कार से पुरस्कृत साहित्यकार डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ ने कहा-‘मातृभाषा राजस्थानी का साहित्य शक्ति, भक्ति एवं अनुरक्ति का त्रिवेणी संगम है। यह पावन ज्ञाननिधि हमें प्रतिपल गौरवान्वित करती है। इस भाषा की 73 जीवंत बोलियाँ एवं उन्हें व्यवहृत करने वाली करोड़ो की जनशक्ति इसकी समृद्धि में उत्तरोत्तर वृद्धि कर रही है। गाँव-ढाणी से लेकर महानगरों तक हो रहे साहित्यिक आयोजन इस भाषा के जनभाषा होने को प्रमाणित करती है।’
डॉ. चारण ने अपनी मातृभाषा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए बहुमुखी एवं समेकित प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया तथा कहा हम सब राजस्थानी भाषा-भाषियों के लिए वह दिन सबसे बड़ा दिन होगा, जब हमारी मातृभाषा को केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से मान्यता प्रदान की जाएगी।