




गोपाल झा.
भारत-पाक सीमा पर चल रहे तनाव के बीच यदि कोई एक शब्द पूरे देश के लिए केंद्रीय भावना बनकर उभरा है, तो वह है, सजगता’। यह केवल सेना की जिम्मेदारी नहीं है; यह अब हम सबका साझा कर्तव्य है। खासकर सीमावर्ती राजस्थान के बीकानेर संभाग के जिलों, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, बीकानेर और चूरू में यह सजगता और ज्यादा ज़रूरी हो जाती है। जब सीमा के उस पार से हमले की आशंका हो, तब केवल बंदूकें ही नहीं, नागरिक चेतना भी हमारी पहली रक्षा पंक्ति बन जाती है।
पाकिस्तान की बौखलाहट किसी से छिपी नहीं है। उसकी सरकारें जब-जब भीतर से कमजोर होती हैं, वे अपने नागरिकों का ध्यान बंटाने के लिए सीमाओं पर तनाव बढ़ाने की चाल चलती हैं। इस बार भी कुछ वैसा ही हो रहा है। लेकिन भारतीय सेना पूरी संजीदगी से अपने कार्य में लगी है, बिना उकसावे के जवाब नहीं देती, लेकिन हर वार का मुंहतोड़ जवाब देती है।
आश्चर्य नहीं कि 90 फीसद मिसाइल हमलों को सेना ने विफल कर दिया है। इतना ही नहीं, उसने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को तबाह कर उसकी विध्वंसकारी सोच को भी करारा जवाब दिया है। लेकिन यह युद्ध केवल हथियारों का नहीं, धैर्य और अनुशासन का भी है।

रेड अलर्ट का मतलब समझना जरूरी है
हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जैसे जिलों में जब सेना इनपुट के आधार पर रेड अलर्ट जारी करती है, तो इसका अर्थ केवल सैनिकों के लिए नहीं, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी होता है। रेड अलर्ट का मतलब होता है, चुप रहो, सतर्क रहो, और निर्देशों का पालन करो। लेकिन अफसोस, ब्लैकआउट जैसे उपायों को आज भी कुछ लोग ‘फॉर्मेलिटी’ समझते हैं। वे यह नहीं समझते कि रोशनी की एक चिंगारी भी दुश्मन को लक्ष्य तय करने में मदद कर सकती है। यही वजह है कि इस वक्त नागरिक चेतना को सैन्य अनुशासन के समकक्ष समझना होगा।
संयमित नेतृत्व की कसौटी पर खरा उतर रहा प्रशासन
हनुमानगढ़ के कलेक्टर कानाराम और एसपी अरशद अली जिस तरह मुस्तैदी से काम कर रहे हैं, वह काबिल-ए-तारीफ है। लेकिन यह लड़ाई केवल प्रशासन की नहीं है। प्रशासन के पास संसाधनों की सीमा है, पर जनता की शक्ति असीमित है। सवाल है कि क्या हम प्रशासन का बोझ कम करने के लिए तैयार हैं?
जनप्रतिनिधि आगे आएं, यह वक्त की मांग
यह समय केवल भाषणों और बयानों का नहीं, कार्य की राजनीति का है। ज़िला प्रशासन को चाहिए कि वह विधायकों, सरपंचों, पार्षदों और अन्य जनप्रतिनिधियों को तुरंत सक्रिय करे। एक सामूहिक बैठक बुलाई जाए, जिसमें उन्हें स्पष्ट निर्देश दिए जाएं, वे अपने-अपने क्षेत्र में लोगों को जागरूक करें, सरकारी गाइडलाइनों को समझाएं और लागू कराएं। ऐसे विपरीत समय में जनप्रतिनिधि केवल ‘कानून बनाने वाले’ नहीं होते, बल्कि ‘जन मार्गदर्शक’ बनते हैं।
स्कूल बंद कर अभिभावकों को राहत मिलेगी
स्कूली बच्चों की परीक्षाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं। ऐसे में स्कूलों को एक सप्ताह के लिए बंद करने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। इससे अभिभावकों का तनाव भी कम होगा और सड़कें भी कुछ हद तक खाली रहेंगी, जो कि आपातकालीन स्थिति में उपयोगी होता है।

स्वयंसेवी संगठन बनें सहयोगी
प्रशासन यदि सामाजिक और स्वयंसेवी संगठनों से संवाद स्थापित करे, तो यह संकट अवसर में बदल सकता है। प्रत्येक गली, मोहल्ले, गांव और कस्बे में स्थानीय संगठन होते हैं जो ज़मीनी हकीकत से जुड़े होते हैं। उनके साथ मिलकर राहत, जागरूकता और व्यवस्था का काम बहुत सुचारू ढंग से किया जा सकता है। सुखद पहलू है कि सप्ताह भर में कई संगठनों के प्रतिनिधि खुद प्रशासन की चौखट तक चलकर पहुंचे हैं, सहयोग करने की मंशा लेकर। बाद में प्रशासन ने मीटिंग भी बुलाई लेकिन बेहतर होगा, जमीनी स्तर पर काम करने वाले जनप्रतिनिधियों और स्वयंसेवी संगठनों की सामूहिक जिम्मेदारी तय की जाए। क्योंकि प्रशासन अकेला नहीं लड़ सकता, लड़ाई तभी जीती जा सकती है जब जनता उसके साथ हो।
नागरिकों को चाहिए कि जब ब्लैकआउट हो, तो पूरा मोहल्ला एक-दूसरे की मदद करे। मोबाइल नेटवर्क या इंटरनेट डाउन हो तो अफवाहों से बचें। ज़रूरी फोन नंबर और स्थानीय व्हाट्सएप ग्रुप्स में प्रशासन के संदेश ही साझा करें। यहां यह याद रखना जरूरी है कि किसी भी युद्ध में अफवाहें सबसे बड़ा हथियार बन सकती हैं, और वह भी हमारे खिलाफ।
आज हर नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण है। सीमा पर सैनिक हैं, लेकिन घर-आंगन में, बाजार-चौराहे पर, स्कूल-गांव-गली में हम सब सैनिक बन चुके हैं। हमारी बंदूकें नहीं, पर हमारी सजगता, अनुशासन, सूझबूझ और एकता ही सीमा सुरक्षा की सबसे मज़बूत दीवार बन सकती है।

हनुमानगढ़ सुरक्षित रहेगा बशर्ते…..
यदि प्रशासन सजग है, सेना संजीदा है, और नागरिक सतर्क हैं, तो कोई भी संकट बड़ा नहीं होता। भारत की परंपरा रही है, विपत्ति में धैर्य और सहयोग ही विजय की राह बनाते हैं। अब समय है कि हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर सहित पूरे बीकानेर संभाग को एक उदाहरण बनाया जाए, जहां जनता और प्रशासन की साझी रणनीति से संकट को अवसर में बदला जाए। यह लड़ाई हमारी मिट्टी की है, हमारी अस्मिता की है, और इसमें हम सबकी जीत निश्चित है, अगर हम सब साथ हैं। जय हिंद, जय भारत।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं

