गहलोत की नजर में क्या है ‘सांप्रदायिक प्रयोग’

भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने एक बार फिर अपने बयानों से राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया से बात करते हुए गहलोत ने केंद्र की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने वक्फ बोर्ड में हिंदू सदस्यों की नियुक्ति, रूह अफजा विवाद और नेशनल हेराल्ड मामले में केंद्र सरकार के रवैये को लेकर गंभीर सवाल उठाए और इसे लोकतंत्र और सामाजिक समरसता के लिए ख़तरनाक करार दिया।
गहलोत ने भाजपा पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि ‘वक्फ बोर्ड में हिंदू सदस्यों की नियुक्ति एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है।’ उन्होंने तीखा सवाल उठाया, ‘अगर हिंदुओं के देवस्थान विभाग में मुस्लिम सदस्य नहीं बैठते, तो फिर वक्फ बोर्ड में हिंदुओं को क्यों नियुक्त किया जा रहा है?’ यह बयान भाजपा की कथित ‘धार्मिक घुसपैठ की राजनीति’ पर कांग्रेस के तीखे विरोध को दर्शाता है। गहलोत ने इसे एक ‘सांप्रदायिक प्रयोग’ बताया और कहा कि यह देश को धर्म के नाम पर बांटने का काम है, जो लोकतंत्र के लिए घातक है।
भाजपा अक्सर ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात करती है, लेकिन कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा की असल नीतियां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर टिकी हैं। वक्फ बोर्ड जैसे अल्पसंख्यक संस्थानों में इस तरह की नियुक्तियों को कांग्रेस उस सामाजिक ताने-बाने पर हमला मानती है, जो भारत की विविधता और सह-अस्तित्व की पहचान है।
रूह अफजा से शुरू होकर कॉरपोरेट तक पहुंची बात
बाबा रामदेव के ‘रूह अफजा’ को लेकर दिए बयान पर गहलोत ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि रूह अफजा एक पारंपरिक पेय है, जिसका धार्मिक या सांप्रदायिक रंग से कोई लेना-देना नहीं। गहलोत ने रामदेव को ‘कॉमर्शियल आदमी’ बताया और कहा कि अब उन्हें ‘भगवान को छोड़कर उद्योगपति की तरह व्यवहार करना चाहिए।’
गहलोत का यह बयान केवल रामदेव की आलोचना भर नहीं है, यह भाजपा और उससे जुड़े उद्यमियों के ‘धर्म और बाज़ार के गठजोड़’ पर एक हमला है। बाबा रामदेव को भाजपा समर्थक और हिंदू हितैषी ब्रांडिंग का चेहरा माना जाता है, ऐसे में गहलोत का बयान भाजपा के वैचारिक नेटवर्क पर सीधा प्रहार है।
वैचारिक विरासत पर ‘प्रहार’ या ‘प्रतिशोध’?
गहलोत ने नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ईडी की कार्रवाई को ‘पागलपन भरा कदम’ बताया। उन्होंने दावा किया कि यंग इंडियन नामक संस्था नॉन-प्रॉफिट है, उसमें कोई व्यापारिक लेन-देन नहीं हुआ, तो घोटाला कैसे हुआ? यह मामला कांग्रेस की वैचारिक विरासत और आज़ादी के आंदोलन की स्मृति से जुड़ा है, जिसे गहलोत एक ‘राजनीतिक बदले’ की कार्रवाई बता रहे हैं।
सियासी मायने
गहलोत की बातों में कांग्रेस की रणनीति झलकती है। नेशनल हेराल्ड को आज़ादी की लड़ाई से जोड़कर उसे ‘राष्ट्रवाद बनाम प्रतिशोध की राजनीति’ का स्वरूप देना। इससे एक तरफ भाजपा को सत्ता के दुरुपयोग का आरोपी बनाना है, वहीं राहुल गांधी को ‘राजनीतिक प्रताड़ना’ का शिकार बताकर जन सहानुभूति हासिल करने का प्रयास भी है।

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