



भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
आसमान में हलकी-सी धुंध छाई हुई थी, और उस धुंध के बीच में एक छोटी सी बच्ची, जिसका नाम आदर्शिनी है, अपनी मां की गोदी में आराम से सो रही थी। उसकी नन्ही आँखें तो कभी खुल जातीं, कभी बंद हो जातीं, मगर उसकी मासूमियत में एक गहरी शांति और सुकून था। वह पाकिस्तान से भारत के राजस्थान में श्रीगंगानगर जिले के एक छोटे से गाँव जैतसर के पास स्थित चक तीन एलसी ए में अपनी माँ, भोर रश्मि के साथ आई थी। यह कुछ महीनों पहले की बात थी, जब रश्मि अपनी बेटी के साथ मायके आई थी, यह सोचकर कि कुछ समय के लिए अपने परिवार के साथ रहेगी, मगर किसे पता था कि ये समय उनके लिए न जाने कितनी मुश्किलों से भरा होगा।
रश्मि का विवाह तीन साल पहले पाकिस्तान के अमरकोट निवासी डॉ. धनपत सिंह सोढ़ा से हुआ था। विवाह के बाद, आदर्शिनी का जन्म अमरकोट में ही हुआ था। दोनों माँ-बेटी, 3 अप्रैल को भारत आईं थीं। इस यात्रा में छुपे हुए भावनाओं और उम्मीदों का एक अलग ही संसार था। रश्मि को अपने परिवार के पास अपने पुराने दिनों को याद करने का मौका मिल रहा था, और उसकी बेटी आदर्शिनी को भारतीय मिट्टी में खेलने, यहां के माहौल को महसूस करने का। लेकिन किसे पता था कि उनका यह वक्त कच्ची डोर की तरह टूटने वाला था।
अप्रैल की 27 तारीख़ को वीज़ा की अवधि समाप्त हो गई। एक तरफ़ रश्मि को अपने परिवार और अपनी बेटी से जुदा होने का डर था, वहीं दूसरी ओर, एक और विकट समस्या खड़ी हो गई, वीज़ा को बढ़ाने की स्थिति। भारतीय और पाकिस्तानी रिश्तों में कड़वाहट इतनी बढ़ गई है कि अब सरहदों पर भारी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई। जैतसर से लेकर अटारी बॉर्डर तक का रास्ता, जैसे एक बड़ी उलझन की तरह खड़ा है, जिसमें रिश्ते, वीज़ा, और देश की सीमाएं सब कुछ बंद हो चुकी हैं। और इस सबके बीच एक माँ और उसकी बच्ची की बेबसी साफ नजर आ रही है।
रश्मि की आँखों में डर और बेचैनी साफ़ दिखाई दे रही है। वह चाहती है कि उसकी बेटी आदर्शिनी के जीवन में कोई ऐसी छाया न आये, जो उसके मासूम मन को कचोटे। लेकिन अब यह उस रास्ते पर चलने का वक्त है जो अजनबी और भयंकर भी है। थानाधिकारी इमरान खान ने पुष्टि की थी कि आदर्शिनी के नाना, ललित सिंह, और उनके परिवार के लोग अटारी बॉर्डर पर दस्तावेजों के साथ पहुंचे थे। लेकिन वीज़ा के विस्तार को लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं है। परिवार अब उम्मीद से अधिक घबराया हुआ है।
रश्मि और उसके परिवार के लिए यह निर्णय बेहद कठिन है। माँ अपनी बेटी को पाकिस्तान भेजने का सोच भी नहीं सकती थी, फिर भी वह मजबूर थी। परिजनों और खासकर ललित सिंह का दिल टूट चुका है। एक तरफ रिश्तों की सीमा, दूसरी ओर बच्चे का दिल और उसके मासूम सपने। आंतरिक संघर्ष में डूबी रश्मि बार-बार अपनी बेटी को देख रही थी, जैसे वह समय को और एक पल और खींचने की कोशिश कर रही हो। मगर चुपके से समय उन दोनों से दूर भाग रहा था।
अटारी बॉर्डर तक की यात्रा की जद्दोजहद और कागजी कार्रवाई, रश्मि को और अधिक असहाय बना रही थी। वह अपने दिल में यह सवाल बार-बार पूछ रही थी कि क्या एक माँ की गोदी और उसकी बेटी के बीच सरहदें कभी नहीं मिट सकतीं? क्या इस दुनिया में रिश्तों की कोई सीमाएं नहीं होतीं?
जब आदर्शिनी अपनी माँ की गोदी से उतरकर, अकेले पाकिस्तान जाने के लिए तैयार हो रही थी, तो रश्मि का दिल पूरी तरह टूट चुका था। वह उस क्षण को महसूस कर रही थी, जब उसकी बेटी एक नये देश की तरफ कदम बढ़ाएगी, जहाँ माँ का आँचल नहीं, बल्कि सरहद की दीवारें उसका पीछा करेंगी।
यह एक माँ और बेटी के बीच के रिश्ते की नर्म और कोमल डोर थी, जो सरहदों के कारण टूटने वाली थी। क्या कभी वह पल आएगा, जब इन दीवारों के बीच उस नन्ही सी बच्ची को अपनी माँ का स्पर्श फिर से मिल सकेगा? यह सवाल सिर्फ़ रश्मि के दिल में नहीं, बल्कि उन लाखों परिवारों के दिलों में उठते हैं, जो सीमाओं के पार बसी अपने प्रियजनों से अलग हो जाते हैं।
आज भी, अटारी बॉर्डर के पास के उस छोटे से गाँव में, माँ और बेटी के बीच का वह क़िस्सा हर किसी के दिल में गहरी छाप छोड़ गया है, जो बताता है कि कभी-कभी रिश्ते सिर्फ़ सरहदों तक ही सीमित नहीं होते, वे समय, दूरी और परिस्थितियों से भी पार होते हैं।
