‘चाय, चौकीदार और समोसे’

देश के हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि चौकीदार साहब खुद तो माइक पकड़कर भाषणों में बिजी हैं, और देशवासी चाय की दुकानों पर समोसे पकड़कर बहस में। चाय के प्याले टकरा रहे हैं, समोसे ठंडे हो रहे हैं, और हर कोना गूंज रहा है, ‘कुछ बड़ा होने वाला है।’ अब कोई ये पूछे कि बड़ा क्या? तो भक्तमंडली आँखें तरेर कर कहती है, ऐसा सवाल पूछना भी देशद्रोह है! बस इंतज़ार करो और श्रद्धा रखो। श्रद्धा भी ऐसी कि अगर चौकीदार जी देश को भुलाकर बिहार में भीड़ गिनते रहें, तो भी कहना पड़े, वाह! क्या दूरदृष्टि है।
सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी, ताकि सब मिलकर हल निकालें। लेकिन प्रधानसेवक जी ने सोचा, बैठकें तो रोज होती हैं, भीड़ रोज नहीं आती! इधर देश उदास बैठा था, उधर बिहार की गलियों में ‘भारत माता की जय’ के साथ ‘सेल्फी विद चौकीदार’ चलता रहा। मंत्रीगण हर टीवी चैनल पर ऐसे बयान ठोंक रहे हैं जैसे कोई जादुई करिश्मा होने वाला हो। ‘कुछ बहुत बड़ा होगा!’ ‘सबक सिखाया जाएगा और पूरा विश्व चकित हो जाएगा!’
भाई, चार दिन से जनता टीवी के सामने बैठी है, चाय खत्म हो गई, समोसे बासी हो गए, लेकिन ‘कुछ बड़ा’ अब तक नहीं हुआ।
आखिर में दादी अम्मा ने गुस्से में टीवी बंद कर दिया और बोलीं, ‘बेटा, बड़ा कुछ नहीं होगा, बड़ी तो बस इनकी बातें हैं!’ और चौकीदार साहब? वो अगली सभा में फिर से माइक पर चढ़कर ऐलान करेंगे, ‘हमने देश का सिर ऊंचा कर दिया!’ देश का सिर वाकई ऊंचा हो गया है, ‘शर्म से, ग़ुस्से से, या इंतज़ार से ?’ ये जनता खुद तय कर ले।
-खबरीलाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *