मोदी के जीतने की जिद्द पर भारी पड़ गई विपक्ष के संघर्ष की कुव्वत!

एमएल शर्मा.
लीजिए जनाब, बहु प्रतीक्षित लोकसभा के चुनाव परिणाम घोषित हो चुके हैं। इस दफा नतीजे एक तरफ जहां भाजपा के लिए अनुकूल नहीं रहे वहीं दम तोड़ती विपक्ष में नए उत्साह का संचार हुआ है इससे इनकार नहीं किया जा सकता। बेशक, अवाम ने धर्म व जाति से इतर विकास के मुद्दे को प्राथमिकता में रखा है। हालांकि, एनडीए सत्ता के चरम बिंदु से ऊपर पहुंच गया लेकिन सरकार के गठन में अन्य दलों की भूमिका को भी कम नहीं आंका जा सकता। राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि ‘पलटूराम’ एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। वहीं तेलगुदेशम के प्रधान चंद्रबाबू नायडू ने भी अपने पत्ते अभी तक स्पष्ट रूप से नहीं खोले हैं। सूत्र बताते हैं कि एक बड़ा पद इन्हें थाली में परोस कर देने की पेशकश की गई है। यह प्रस्तुति क्या गुल खिलाएगी जल्द ही पता लग जाएगा। लेकिन इन चुनावों में एक बात तो खुलकर सामने आ गई कि आमजन अब भाजपा के लच्छेदार भाषणों का मुरीद नहीं रहा है।
बेशक, एनडीए तीसरी बार सत्तासीन हो जाए पर लगातार 5 साल विपक्ष इन्हें मनमानी नहीं करने देगा, यह तय हो चुका है। नतीजे आते ही पिछले एक दशक से सत्ता पर कुंडली मारे बैठे हुक्मरानों को आईना दिखाई देने लगा।
विपक्ष के संघर्ष की कुव्वत मोदी के जीतने की जिद्द पर भारी पड़ गई। राजस्थान में हैट्रिक लगाने की उम्मीद पाले भजनलाल को 14 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। प्रदेश में हॉट सीट बनी चूरू लोकसभा क्षेत्र से देवेंद्र झाझड़िया की हार ने सूबे में भाजपा के कद्दावर नेता राजेंद्र राठौड़ का कद कम किया है इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
और तो और, राम को लाने का दम्भ भरने वाले भाजपाइयों को अयोध्या से भी निराशा हाथ लगी है। यहां भाजपा चारों खाने चित्त हो गई। कुल मिलाकर मोदी टीम के लिए यह आत्ममंथन करने का वक्त है। समय रहते नहीं संभले तो संभल ही नहीं पाओगे। फिसलते ही जाओगे। अब सियासतदानों की चालें व इनके मोहरे क्या रंग दिखाएंगे यह देखना बाकी है। सबको सन्मति दे भगवान!

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