बेहद दिलचस्प मोड़ पर है चूरू का चुनाव

पीयूष शर्मा.
राजस्थान का चूरू लोकसभा क्षेत्र अचानक सुर्खियों में है। भाजपा ने निवर्तमान सांसद राहुल कस्वां का टिकट काटकर खिलाड़ी देवेंद्र झाझड़िया को प्रत्याशी बनाया है। लिहाजा, राहुल कस्वां ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। चर्चा है कि इस चुनाव परिणाम से न सिर्फ देवेंद्र झाझड़िया, राहुल कस्वां बल्कि भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ का भी राजनीतिक भविष्य तय होगा। चुनाव जीतना न सिर्फ झाझड़िया बल्कि कस्वां के लिए भी बेहद जरूरी है। सवाल यह है कि जीतना तो किसी एक को ही है।
देवेंद्र झाझड़िया का यह पहला चुनाव है। वे अब तक खेल के मैदान के महारथी रहे हैं। लेकिन सियासत का मैदान थोड़ा अलग होता है। राहुल कस्वां के पास राजनीति का अच्छा अनुभव है। उनके पास व्यक्तिगत टीम है। इसलिए वे बीजेपी को पूरे आत्मविश्वास के साथ चुनौती दे रहे हैं। वहीं राजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में लामबंद समूची भाजपा अपने प्रत्याशी देवेंद्र झाझड़िया की जीत के लिए दिनरात काम कर रही है।
अगर राहुल कस्वां चुनाव जीतते हैं तो यह उनके राजनीतिक कॅरियर का सुनहरा मौका साबित होगी। मगर हार गए तो एक बार फिर जल्दी से उनका उबर पाना आसान न होगा। खेलों से अचानक राजनीति में एंट्री करने वाले देवेंद्र चुनाव जीतते हैं तो राजेंद्र सिंह राठौड़ का देश-प्रदेश की राजनीति और भाजपा में कद काफी मजबूत होगा। अगर परिणाम भाजपा की सोच के विपरीत रहे तो देवेंद्र से ज्यादा नुकसान राठौड़ को होगा। नामांकन रैली में लोकसभा क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्रों से उमड़े जनसैलाब को देखकर मंच पर बैठे आलाकमान भाजपा की जीत को लेकर आश्वस्त और आत्मविश्वास से लबरेज है।
भाजपा और कांग्रेस में इस बार दोनों तरफ जाट जाति से प्रत्याशी हैं। राजनीतिक रूप से जागरूक इस वर्ग के वोटर्स का मन भी दोनों प्रत्याशियों की हार-जीत में अपना मजबूत दखल रहेगा। कांग्रेस के पास परंपरागत मुस्लिम, एससी-एसटी सहित अन्य वर्ग के वोटर्स के अलावा खाास कर जाट वर्ग में चल रही सहानुभूति की लहर भी प्रत्याशी राहुल के लिए सुखद संकेत है।
देवेंद्र झा​झड़िया के पास भाजपा के जाट सहित अन्य सभी जाति वर्ग के पार्टी के मूल वोटर्स और भाजपा की मजबूत राजनीतिक रणनीति है। राजेंद्र राठौड़ जैसे अनुभवी नेता का मार्गदर्शन भी झाझड़िया के लिए मददगार साबित होगा। खुद राठौड़ भी अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए देंवेंद्र की जीत के लिए काम करेंगे।
विधानसभा चुनाव 2023 में यूं तो पूरी भाजपा ने ही जिले में करारी शिकस्त झेली। मगर हॉटशीट तारानगर में राजेंद्र राठौड़ की हार को भाजपा पचा नहीं पाई। नतीजन बौखलाए भाजपा नेताओं ने अपने सार्वजनिक राजनीतिक मंचों से सांसद राहुल कस्वां व पूर्व सांसद रामसिंह कस्वां पर धोखा देने के आरोप लगा दिए। भाजपा प्रत्याशी रहे राठौड़ की मौजूदगी में लगे इन आरोपों ने अंदरखाने चल रही राहुल-राठौड़ की ये लड़ाई खुलकर सड़क पर ला दिया। राजनीति के रण में दोनों तरफ से खिंची तलवारें आज एक-दूसरे को सियासी जख्म देने के लिए अमादा है। ये वही राहुल राजेंद्र काका-भतीजे की जोड़ी है, जिसने रामसिंह कस्वां का टिकट कटने पर एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जीता।
टिकट कटने से नाराज कांग्रेस का दामन थाम चुके सांसद कस्वां के निशाने पर भाजपा है। जो कल तक भाजपा की शान में कसीदे गढ़ते नहीं थक रहे थे उन्हें आज वहां सामंतवाद नजर आ रहा है। वो भी उस दौर में जब कांग्रेस का कुनबा अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने की गर्ज से धीरे-धीरे भाजपा में शामिल होता जा रहा है। ऐसे दौर में राजनीतिक बदलाव के साथ बदलते नेतृत्व को को स्वीकार न कर संघर्ष की राह चुन चुके राहुल के लिए ये चुनाव काफी चुनौती भरा है। क्योंकि इनकी जीत का दारोमदार काफी हद तक लोकसभा क्षेत्र की आठों विधानसभा क्षेत्रों में स्थापित कांग्रेस नेताओं पर निर्भर है। कांग्रेस में राहुल के पास भाजपा की तरह व्यक्तिगत वोट नहीं है। जो कुछ है वो कांग्रेस नेताओं के पास है। अगर पूर्व में स्थापित नेताओं को राहुल की जीत से अपने राजनीतिक वजूद पर आंच आती नजर आई तो इन्हें कांग्रेस में भीतरघात का सामना भी करना पड़ सकता है। वर्तमान में कांग्रेस के मूल वोटर्स के अलावा राहुल के साथ जाट वोटर्स का एक वर्ग खड़ा नजर आ रहा है। जो ये मान रहा है कि राहुल के साथ अन्याय हुआ है। इनकी राजनीतिक हत्या की गई है। वो भी एक नेता के इशारे पर। ऐसे में इस बार राहुल को वोट देकर जीताना जरूरी है। अगर राहुल हारे तो इनका राजनीतिक कॅरियर चौपट होना है। इसलिए देवेंद्र की बजाय राहुल पर ज्यादा फोकस है। अगर जाट वर्ग के वोटर्स एकतरफा राहुल के साथ हो गए तो पूरा चुनाव जाट बनाम अन्य हो जाएगा।
टिकट मिलने के बाद कांग्रेस के राजनीतिक मंचों से बिना नाम लिए राठौड़ पर सामंतवादी सोच के आरोप लगा रहे हैं। राठौड़ को काका के नाम से संबोधित कर आमने-सामने चुनाव की चुनौती देते नजर आ रहे हैं। उधर राठौड़ की तरफ से कोई बड़बोला बयान नहीं दिया गया है।

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