डॉ. एमपी शर्मा.
स्तन कैंसर ऐसी बीमारी है जो तेजी से फैलती जा रही और महिलाओं की जिंदगी को प्रभावित कर रही है। सवाल यह है कि आखिर यह बीमारी है क्या ? इसके लक्षण क्या हैं और इससे बचने के लिए क्या कुछ करने की जरूरत है। आज हम इसी मसले पर चर्चा करेंगे।
स्तन की कोशिकाओं के अनियंत्रित वृद्धि से उत्पन्न होता है, जो मुख्य रूप से दूध की नलिकाओं या लोब्यूल्स से शुरू होता है। यह महिलाओं में सबसे आम कैंसर है और मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। दुनिया की बात करें तो स्तन कैंसर महिलाओं में होने वाले सभी कैंसर मामलों का 25 फीसद है। भारत में हर 28 महिलाओं में से 1 महिला को जीवनकाल में स्तन कैंसर हो सकता है। शहरी क्षेत्रों में यह अधिक सामान्य है।
मुख्य जोखिम कारक
-उम्र के लिहाज से 40-50 साल उम्र के बाद जोखिम बढ़ता है। यह मुख्यतः महिलाओं में होता है, लेकिन पुरुषों में भी दुर्लभ रूप से (1 फीसद) हो सकता है। पारिवारिक इतिहास यानी जीन में म्यूटेशन, हार्माेनल कारक जैसे जल्दी मासिक धर्म शुरू होना, देर से रजोनिवृत्ति, हार्माेन रिप्लेसमेंट थेरेपी का उपयोग, जीवनशैली जैसे-मोटापा, निष्क्रिय जीवनशैली, शराब का सेवन, वसा युक्त आहार आदि से यह बीमारी आगोश में लेती है। कई बार रेडिएशन एक्सपोजर जैसे पूर्व में छाती पर रेडिएशन थेरेपी, प्रजनन इतिहास मसलन, संतान न होना या पहली गर्भावस्था देर से होने आदि से यह रोग संभव है।
स्तन कैंसर के प्रकार
-कैंसर नलिकाओं या लोब्यूल्स से बाहर फैल जाता है।
-इनवेसिव डक्टल कार्सिनोमा मतलब सबसे सामान्य (्80 फीसद)।
-इनवेसिव लोब्यूलर कार्सिनोमा यानी लोब्यूल्स से शुरू होता है।
-गैर-आक्रामक यानी केवल नलिकाओं या लोब्यूल्स तक सीमित।
-डक्टल कार्सिनोमा इन सीटू।
-लोब्यूलर कार्सिनोमा इन सीटू।
-ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन रिसेप्टर्स और एचईआर2 प्रोटीन नहीं होते (आक्रामक)।
-एचईआर2-पॉजिटिव कैंसर: एचईआर2 प्रोटीन का अधिक उत्पादन।
-इंफ्लेमेटरी ब्रेस्ट कैंसर में दुर्लभ और आक्रामक, जिसमें लाली और सूजन होती है।
-पैजेट डिजीज में निप्पल और एरोला से संबंधित कैंसर।
कैंसर के लक्षण
-स्तन में बिना दर्द वाली गाँठ या सूजन।
-स्तन के आकार, बनावट, या रंग में बदलाव।
-त्वचा में गड्ढा पड़ना, लालिमा, या मोटा होना (संतरे के छिलके जैसा)।
-निप्पल से स्राव, खासकर खून।
-निप्पल का उलटा होना या दर्द होना।
-बगल या कॉलरबोन क्षेत्र में सूजन।
कैंसर के निदान
1.स्क्रीनिंग
-सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन: 20 साल की उम्र से हर महीने।
-क्लिनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन: 30 साल की उम्र के बाद हर साल।
-मैमोग्राफी: 40 की उम्र के बाद हर साल/दो साल में।
2.निदान परीक्षण
-अल्ट्रासाउंड: घने स्तन ऊतक वाली महिलाओं के लिए।
-बायोप्सी: एफएनएसी या कोर बायोप्सी से पुष्टि।
-एमआरआई: उच्च जोखिम वाले मामलों के लिए।
-जेनेटिक टेस्टिंग: उच्च जोखिम वाले परिवारों में बीआरसीए-1बीआरसीए2 जीन का परीक्षण।
3.स्टेजिंग: कैंसर के आकार और फैलाव के आधार पर ( टीएनएम प्रणाली)।
- उपचार विकल्प
1.सर्जरी
-लम्पेक्टॉमी: केवल ट्यूमर को हटाना।
-मास्टेक्टॉमी: पूरे स्तन को हटाना।
-सेंटिनल लिम्फ नोड बायोप्सी: फैलाव की पुष्टि के लिए।
2.रेडिएशन थेरेपी: शेष कैंसर कोशिकाओं को खत्म करना।
3.कीमोथेरेपी: उन्नत या आक्रामक कैंसर के लिए।
4.हार्माेनल थेरेपी
-हार्माेन रिसेप्टर पॉजिटिव कैंसर के लिए।
-टैमोक्सिफेन या एरोमाटेज इन्हिबिटर्स।
5.टार्गेटेड थेरेपी
-एचईआर2 पॉजिटिव कैंसर के लिए)।
-अन्य दवाएं जो विशिष्ट पथों को लक्ष्य करती हैं।
6.इम्यूनोथेरेपी: ट्रिपल-नेगेटिव कैंसर के लिए। - रोकथाम और प्रारंभिक पहचान
1.जीवनशैली में सुधार:
-स्वस्थ वजन बनाए रखें।
-शराब का सेवन सीमित करें।
-नियमित व्यायाम करें।
2.नियमित स्क्रीनिंग:
-मैमोग्राम: 40 वर्ष की उम्र के बाद शुरू करें।
-नियमित चिकित्सकीय जांच।
3.रोकथाम के उपाय:
-उच्च जोखिम वाली महिलाओं के लिए निवारक मास्टेक्टॉमी।
4.जेनेटिक काउंसलिंग: परिवार में इतिहास होने पर। - रोग का पूर्वानुमान
-शुरुआती पहचान से जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।
-5 वर्ष की जीवित रहने की दर
-स्टेज 1- ्90-99फीसद।
-स्टेज 4- ्22 फीसद। - मनोवैज्ञानिक और सहायक देखभाल
-स्तन कैंसर का निदान चुनौतीपूर्ण हो सकता है। काउंसलिंग, सपोर्ट ग्रुप, और पुनर्वास मददगार हैं।
-जीवित रहने वाले रोगियों के लिए दीर्घकालिक स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान देना आवश्यक है।
सतर्कता और जागरूकता से स्तन कैंसर का शुरुआती चरण में पता लगाकर बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
-लेखक जाने-माने सर्जन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं