



भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
रामलला मंदिर में गंगाजल छिड़कने के मुद्दे पर भाजपा के सीनियर नेता और रामगढ़ (अलवर) के पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा को पार्टी ने तत्काल प्रभाव से प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है और तीन दिन के भीतर जवाब तलब किया है। गौरतलब है कि नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के रामलला मंदिर दर्शन के बाद आहूजा ने जिस तरह बयान दिया और फिर स्वयं मंदिर जाकर गंगाजल छिड़का, उसने भाजपा को असहज कर दिया। भाजपा हाईकमान भले ही इस बयान से दूरी बना रहा हो, लेकिन पार्टी के अंदरूनी हलकों में इसे एक ‘टेस्टिंग स्टेटमेंट’ की तरह भी देखा जा रहा है, खासकर हिंदू वोटबैंक को टच करने की एक रणनीति के रूप में।
प्रदेश महामंत्री और सांसद दामोदर अग्रवाल ने आहूजा को जो नोटिस दिया, उसमें यह साफ कहा गया कि उनके बयान से पार्टी की छवि धूमिल हुई है। यह भाषा बताती है कि पार्टी फिलहाल ‘डैमेज कंट्रोल’ मोड में है। राम मंदिर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस के किसी नेता की मौजूदगी को अपवित्रता से जोड़ना, सीधे-सीधे भाजपा की समावेशी राजनीति के खिलाफ जाता है, खासकर तब, जब पार्टी दलित और पिछड़े वर्गों को साधने में जुटी है।
कांग्रेस का पलटवार और सामाजिक संगठनों की सक्रियता
कांग्रेस और सामाजिक संगठनों ने इस पूरे प्रकरण को हाथों-हाथ लिया है। ‘आजाद विद्रोही संस्था’ और वैधानिक विचार मंचष् जैसे संगठन खुलकर मैदान में आ गए हैं। आहूजा के घर के बाहर कालिख पोतना एक प्रतीकात्मक विरोध नहीं, बल्कि आने वाले दिनों में भाजपा के लिए एक सामाजिक चुनौती का संकेत है।
राजस्थान में दलित राजनीति का असर
नोटिस में यह बात खास तौर पर उठाई गई कि राम मंदिर के शिलान्यास में पहली ईंट एक दलित, कामेश्वर चौपाल ने रखी थी। इससे यह संदेश देने की कोशिश है कि भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति में ‘समावेशन’ है, न कि ‘विभाजन’। आहूजा का बयान इस नैरेटिव को कमजोर करता है, इसलिए पार्टी ने तत्काल कार्रवाई की।
क्या भाजपा ने आहूजा को बलि का बकरा बनाया?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ज्ञानदेव आहूजा जैसे नेता पर कार्रवाई करके भाजपा यह दिखाना चाहती है कि पार्टी अतिवादी बयानों से खुद को अलग करती है। इससे एक ओर उसे मध्यमवर्गीय और उदार हिंदुओं का समर्थन बनाए रखने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर धार्मिक आधार पर असहमति जताने वालों के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ का संदेश भी जाएगा।



