




शंकर सोनी.
भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी जल वित्तरण को लेकर 1960 में हुए समझौता से इनकार करते हुए पाकिस्तान को दिए जाने वाले जल को बंद करने की धमकी चर्चा का विषय बना हुआ है। आइए इस संधि या समझौते के मूल में चल कर तय करें कि पाकिस्तान को क्या अधिकार है। यक्ष प्रश्न यह उठता है कि क्या पाकिस्तान को इन नदियों के जल पर कोई जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त है, अथवा यह केवल भारत की सहमति और उदारता का परिणाम है ?
सिंधु, झेलम और चिनाब नदियाँ भारत के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र से उत्पन्न होती हैं। अंतरराष्ट्रीय जल कानून के सिद्धांत के अनुसार, किसी नदी के स्रोत देश को ‘ऊपरी प्रवाहीय देश’ माना जाता है, जिसे नदी जल पर प्राथमिक अधिकार प्राप्त होता है। इस दृष्टि से भारत को स्वाभाविक और भौगोलिक दोनों स्तरों पर इन नदियों पर वरीयता प्राप्त थी।
विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत की सहमति के कारण स्वरूप यह संधि प्रभाव में आई। यह बँटवारा भारत द्वारा शांति और सद्भावना के लिए स्वेच्छा से किया गया था, न कि किसी कानूनी बाध्यता के तहत। पाकिस्तान को यह जल भारत की सहमति के बिना प्राप्त नहीं हो सकता था।
भारत ने अब तक इस संधि का सम्मान करते हुए पाकिस्तान को जल प्रवाह में कोई व्यवधान नहीं पहुँचाया है, जबकि कई बार इसके लिए देश में आवाजें उठी हैं, विशेषकर पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को प्रोत्साहन देने की पृष्ठभूमि में।
यदि भारत संधि समाप्त करेगा तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नए सिरे से जल वितरण का मामला अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं और कानून के आधार पर तय होगा जिससे हमें कोई नुकसान नहीं होगा। ऐसे ही कुछ मामलों को उदहारण स्वरूप देख सकते हैं।
मिस्र और इथियोपिया में नील नदी विवाद

नील नदी पूर्वी अफ्रीका की प्रमुख नदी है, जिसका मुख्य स्रोत इथियोपिया में स्थित है। इथियोपिया ने ‘ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां डैम’ का निर्माण किया, जिससे मिस्र को जल आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका है। मिस्र ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध किया, लेकिन इथियोपिया को ऊपरी प्रवाहीय देश के रूप में प्राथमिक अधिकार प्राप्त है। अभी तक कोई स्थायी समझौता नहीं हुआ है, और इथियोपिया अपने भू-क्षेत्रीय अधिकार का उपयोग कर रहा है। जैसे इथियोपिया को नील नदी पर प्राथमिक अधिकार प्राप्त है, वैसे ही भारत को सिंधु प्रणाली पर प्राथमिक अधिकार है।
तुर्की, सीरिया और इराक में टाइग्रिस-युफ्रेट्स विवाद
टाइग्रिस और युफ्रेट्स नदियाँ तुर्की से निकलती हैं और सीरिया तथा इराक में बहती हैं। तुर्की ने ‘गैप प्रोजेक्ट’ के तहत अनेक बाँध बनाए हैं। सीरिया और इराक ने शिकायतें कीं, किंतु तुर्की ने अपने ऊपरी प्रवाहीय देश के अधिकार के आधार पर जल उपयोग को बढ़ाया। अभी तक इस क्षेत्र में कोई बाध्यकारी त्रिपक्षीय संधि नहीं है। तुर्की ने अपने ऊपरी अधिकार का प्रयोग किया, वैसे ही भारत भी कर सकता है।
ब्राजील और बोलिविया में वापोरे नदी विवाद
ग्वापोरे नदी ब्राजील और बोलिविया के बीच बहती है। दोनों देशों के बीच जल उपयोग को लेकर मतभेद रहे हैं, लेकिन कोई मजबूत संधि नहीं होने के कारण ऊपरी देश ब्राजील ने कई जल परियोजनाएँ संचालित कीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित नियम और अन्य देशों के व्यवहार यह प्रमाणित करते हैं कि ऊपरी प्रवाहीय देश अपने जल संसाधनों का प्राथमिक स्वामी होता है।
भारत के पास अधिकार है कि वह अपनी जल नीति का पुनर्मूल्यांकन करे, और राष्ट्रहित में उपयुक्त निर्णय ले। वर्तमान परिदृश्य में हमारे लिए यह समय आ चुका है कि हम अपने वैध अधिकारों का विवेकपूर्ण और साहसिक प्रयोग करे, ठीक वैसे ही जैसे विश्व के अन्य देश कर रहे हैं।
-लेखक नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक और पेशे से वरिष्ठ अधिवक्ता हैं

