



डॉ. संतोष राजपुरोहित.
ग्रीन इकोनॉमी का मतलब है एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक विकास के बीच संतुलन स्थापित करती है। इसमें प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, कार्बन उत्सर्जन में कमी, और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता दी जाती है। ग्रीन इकॉनमी का लक्ष्य है एक ऐसा विकास मॉडल तैयार करना जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा दे।
ग्रीन इकोनॉमी के प्रमुख पहलू
नवीकरणीय ऊर्जा: सोलर, विंड, और हाइड्रो ऊर्जा जैसे ऊर्जा स्रोतों का अधिक से अधिक उपयोग। पारंपरिक जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल) पर निर्भरता कम करना।
ग्रीन टेक्नोलॉजी: ऐसी तकनीकों का विकास और उपयोग जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं।ऊर्जा दक्षता और अपशिष्ट प्रबंधन पर जोर।
सर्कुलर इकॉनमी: उत्पादों और सामग्रियों का पुनरू उपयोग और अपशिष्ट को कम करना। उत्पादन और खपत के लिए एक ऐसा मॉडल अपनाना जो पर्यावरणीय नुकसान को कम करे।
कार्बन न्यूट्रलिटी: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को शून्य करना। ‘नेट ज़ीरो’ लक्ष्य प्राप्त करने के लिए नीतियां बनाना।
जैव विविधता का संरक्षण: वनों और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण। वनों की कटाई को रोकना और वन क्षेत्र बढ़ाना।
ग्रीन फाइनेंस: ग्रीन प्रोजेक्ट्स जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ पानी और टिकाऊ खेती के लिए वित्तीय सहायता। सरकार और बैंकों द्वारा ग्रीन बॉन्ड्स का जारी किया जाना।
भारत में ग्रीन इकोनॉमी के प्रयास
राष्ट्रीय सौर मिशन: भारत में 2030 तक 500 ळॅ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य।
नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना। पेट्रोल-डीजल वाहनों के प्रदूषण को कम करना।
नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना। विश्व के सबसे बड़े सोलर पार्क (पावगढ़, गुजरात) का निर्माण।
हरित हाइड्रोजन मिशन: हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा।
ग्रीन इकॉनमी का महत्व
पर्यावरण संरक्षण: प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदार उपयोग।
आर्थिक लाभ: नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन तकनीकों में निवेश से रोजगार सृजन।
जलवायु परिवर्तन का मुकाबला: ग्लोबल वार्मिंग और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करना।
ग्रीन इकॉनमी में बदलाव न केवल पर्यावरण के लिए जरूरी है बल्कि यह भविष्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के पूर्व अध्यक्ष हैं



