अर्थव्यवस्था के लिए ‘संजीवनी’ हैं त्योहार, जानिए… कैसे ?

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डॉ. सन्तोष राजपुरोहित
भारतीय अर्थव्यवस्था पर त्योहारों का गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि ये आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लाते हैं। प्रमुख तरीकों से उनका असर इस प्रकार होता है। यह स्वभाविक बात है कि फेस्टीवल सीजन में उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होती है। इस लिहाज से त्योहारी सीजन अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी का काम करते हैं। त्योहारों के दौरान लोग कपड़े, आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक सामान, मिठाइयाँ और सजावटी वस्तुएं खरीदते हैं। इससे खुदरा व्यापार और ई-कॉमर्स में बड़ा उछाल आता है। दीपोत्सव जैसे त्योहरों पर हाथ से बनी वस्तुएं, कुम्हारी, हस्तशिल्प, और पारंपरिक उत्पादों की मांग बढ़ती है, जिससे स्थानीय और छोटे उद्योगों को लाभ होता है। इस दौरान पर्यटन, होटल, रेस्टोरेंट, और परिवहन सेवाओं की मांग बढ़ जाती है, जिससे इन क्षेत्रों में राजस्व और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। कुछ वर्षों से मार्केट का मिजाज बदला है। ऑनलाइन मार्केट का कारोबार बढ़ा है। ऐसे में, विशेष रूप से त्योहारों के दौरान ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर छूट और ऑफर्स आते हैं, जिससे ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ती है और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा मिलता है।


रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल बिक्री: कई लोग त्योहारों को शुभ मानकर घर और वाहन खरीदते हैं, जिससे रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल उद्योगों में उछाल आता है।
सोने और आभूषणों की खरीदारी: दीवाली और धनतेरस जैसे त्योहारों पर लोग सोने और अन्य आभूषणों की खरीदारी करते हैं, जिससे ज्वैलरी सेक्टर को बढ़ावा मिलता है।
कृषि क्षेत्र पर प्रभाव: त्योहारों के समय खाद्य पदार्थों, मिठाइयों और सब्जियों की मांग बढ़ने से कृषि उत्पादकों को अधिक मुनाफा होता है।
विज्ञापन और मीडिया उद्योग: कंपनियां त्योहारों के समय विज्ञापनों और प्रचार-प्रसार पर भारी खर्च करती हैं, जिससे मीडिया और विज्ञापन उद्योग में तेज़ी आती है।
बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में वृद्धि: त्योहारों के दौरान क्रेडिट कार्ड, लोन और अन्य वित्तीय सेवाओं का उपयोग बढ़ता है, जिससे बैंकिंग सेक्टर को भी लाभ होता है।
उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला में तेजी: त्योहारों के दौरान उत्पादों की मांग बढ़ने से मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन उद्योगों में भी तेज़ी आती है।
इन सभी कारकों के कारण त्योहार भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, विशेष रूप से उपभोग, रोजगार और उत्पादन में वृद्धि के माध्यम से।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के पूर्व अध्यक्ष हैं

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