हनुमानगढ़ के सुविख्यात अधिवक्ता विनोद ऐरन नहीं रहे। 83 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। विनोद ऐरन राजस्व मामलों के जानकार थे। उनके बेटे डॉ. भवानी ऐरन कुशल चिकित्सक हैं। विनोद ऐरन के व्यक्तित्व व स्वभाव को ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ के पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर सोनी….
शंकर सोनी.
मन उदास है। हनुमानगढ़ बार एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ता व हम सबके अजीज विनोद जी ऐरन नहीं रहे। हम सबने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। उनका नश्वर शरीर अग्नि की लपटों में विलीन हो रहा था और जेहन में विनोद जी के साथ बिताए दिनों की स्मृतियां ताजा हो रही थीं।
विनोद जी का बार काउंसिल में रूप में अधिवक्ता के एनरोलमेंट 22 जुलाई 1965 का है। विनोद जी राजस्व संबंधित कानूनों के बहुत अच्छे ज्ञाता थे। विधि स्नातक परीक्षा में गोल्ड मेडलिस्ट थे। वे हनुमानगढ़ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे।
मैंने 1977 में वकालत शुरू की थी। हमारे बैच के सभी साथी अधिवक्ता विनोद जी से अति प्रभावित थे। हम लोगों का मानना था कि उस जमाने में विनोद जी की समझ परिपक्व और बुजुर्गों जैसी थी और उनका जोश युवाओं जैसा था। वे दबंग व्यक्तित्व के धनी थे।भ् ाय नाम का शब्द उनके शब्दकोष नहीं था। हनुमानगढ़ बार एसोसिएशन की बुलंद और मुखर आवाज थे।
कई बार खुले न्यायालय में अधिकारियों को भी पाठ पढ़ने में नहीं चूकते थे। हनुमानगढ़ जिला बनाने हेतु किए गए आंदोलन और हनुमानगढ़ जिला की सीमाओं का नक्शा बनाने में बृजनारायण चमडिया, जगदीश चलाना के साथ विनोद जी की अहम भूमिका थी। इन लोगो ने हनुमानगढ़ ‘जिला निर्माण संघर्ष समिति’ का गठन किया गया। समिति का संयोजक बार संघ अध्यक्ष को बनाया गया। मेरा सौभाग्य कि उस वक्त यानी साल 1994 में बार संघ हनुमानगढ़ का मैं ही था।
जिला बनने के बाद सादुलशहर को श्रीगंगानगर के साथ रख दिया गया था जिसे हनुमानगढ़ जिले में शामिल करने हेतु हमारी बार एसोसिएशन ने संघर्ष शुरू रखा। विनोद जी अपनी बात को बहुत अच्छे से आत्मविश्वास के साथ जोर से रखते थे। एक बार हम प्रतिनिधि मंडल में राजस्व मंत्री से मिलने गए थे। मंत्री महोदय का इंतजार कर रहे थे। इस बीच विनोद जी टॉयलेट चले गए। इतने में हमें मंत्री जी अंदर बुलवा लिया। एडवोकेट जगदीश चलाना और मैं अंदर चले गए ज्ञापन देकर वार्ता कर वापस आ गए। जब विनोजी टॉयलेट से वापस आए तो हमने बताया कि सारा मामला समझा कर ज्ञापन दे आए। विनोद जी कहां मानने वाले थे, मंत्री जी के चैंबर में घुस गए और दुबारा समझा कर आए।
हनुमानगढ़ में प्रथम सेरेमोनियल लोक अदालत के आयोजन में विनोद जी की विशेष भूमिका रही। जरूरत पड़ने पर अधिकारियों और मंत्रियों से भिड़ने में विनोद जी किसी तरह की हिचक नहीं होती थी।
एक संस्मरण और जेहन में आया। बात 2015 की है, जब राजस्थान उच्च न्यायिक परीक्षाओं के साक्षात्कार हो रहे थे। हमारे हनुमानगढ़ के भी एक अभिभाषक साक्षात्कार हेतु गए। साक्षात्कार मंडल में बैठे उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति, जो हनुमानगढ़ जिला जज रह चुके थे, ने हमारे अधिवक्ता-अभ्यर्थी से पूछा ककि हनुमानगढ़ में लड़ाकू वकील कौन-कौन है ? अभ्यर्थी का जवाब था-लड़ाकू तो कोई नहीं है पर विनोद जी ऐरन है जो दबंग हैं। हमारे अधिवक्ता का चयन भी हुआ था।
ऐसे थे विनोद ऐरन। इसलिए हम उन्हें ‘मार्शल’ कहते थे। उनका पार्थिव शरीर जरूर अग्नि में विलीन हो गया लेकिन वे अपने चमत्कारी व्यक्तित्व व स्वभाव के कारण सदैव स्मृतियों में जिंदा रहेंगे। अलविदा मार्शल!
-लेखक नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं