


भटनेर पोस्ट डेस्क.
होली यानी हास्य-परिहास का पर्व। ऐसा उत्सव जिसमें राजा और रंक में कोई भेद नहीं। सब एक समान। समाजवाद को साकार करने वाला अनोखा पर्व। मीडिया में नामचीन लोगों पर व्यंग्य करने की रवायत है। इसी परंपरा के तहत प्रस्तुत है हनुमानगढ़ के कलक्टर कानाराम, एसपी अरशद अली, विधायक गणेशराज बंसल, भाजपा नेता अमित सहू और पूर्व मंत्री चौधरी विनोद कुमार पर व्यंग्य।
कलक्टर जी की होली!
बुरा न मानो, कलक्टर जी, होली है!
कलक्टर साहब हनुमानगढ़ में रम गए,
नेताओं संग बैठ के मजे से जम गए।
भाषणों की बरसात रोज ही होती,
कर्मचारियों की किस्मत हर दिन रोती।
मानस अभियान से खूब ताली बजवाई,
अब कृषि महोत्सव की बारी आई।
सरकार को पटाने का प्लान बनाया,
वाहवाही की गाड़ी फिर दौड़ाया।
रंग जमा है सत्ता के रंग में,
बुरा न मानो, होली है संग में!
हनुमानगढ़ की होली में अरशद अली!
हनुमानगढ़ ने किस्मत चमकाई, प्रमोशन की सौगात मिली,
नशे की गर्दन दबोचते-दम, डीआईजी की ‘औकात’ मिली।
डीजी डिस्क का मिला था मेडल, मेहनत रंग ले आई थी,
चमक उठी किस्मत ऐसी कि बस, खुशियों की होली छाई थी।
पर जाते-जाते सोच रहे हैं, हाय! हनुमानगढ़ कैसे छोडूंगा?
यहाँ मिला था नाम और शोहरत, उधर कुर्सी का बोझ उठाउंगा!
दिल अब भी गलियों में घूमे, मिर्ची-पकोड़े याद करें,
थाने के किस्से, फील्ड की दौड़ें, बैठ अकेले फ़रियाद करें।
मतलब प्रमोशन भी होली जैसा, रंग चढ़ा फिर धुल जाएगा,
हनुमानगढ़ के संग जो रिश्ता, क्या कोई भूला पाएगा?
बंसल जी दी होली ‘चिंता’ वाली!
टीम बिखर रई, सीन बदल गया,
कल जो संग सी, ओ अज चल गया।
विकास दे नारे नाल आए सी,
हुण पंचायतीराज दी राह पाए सी।
निकाय चुनाव दूर, पर जोश बड़ा,
पर कोर्ट दा सम्मन वी जोश कढ़ा!
हुंकारा मार के मैदान विच आए,
पर बेचैनी अंदरों होंसला खाए।
होली आई, पर रंग फीका लगे,
राजनीति विच हर दिन नवा चक्का लगे!
अमित चौधरी: नाम बदळण रो फायदा !
नाम बदल्या तीन बार, पर तकदीर बदल कोनी,
पहला सहू, पाछो रामप्रताप, फेर चौधरी कर लो जी!
चुनाव हारे, घणा दुख पायो, अवसाद में दिन काट्या,
सरकार घास नहीं डाली, मन में घणा हींकारा वाट्या।
अब फॉर्म में लौट्या मंदर, बाछा खिली मुसकावै,
गुलाल उड़ावै, ढोल बजावै, होली का गीत सुनावै।
पर जनता कहे-‘अरे नेताजी, अब काईंसी नई तरकीब?’
नाम बदळण रो फायदा होतो, तो जीत मिलती करीब!
‘चौधरी सा’ की होली!
चुनाव हारे पर गम कोनी, चौधरी सा तो मस्त घणा,
जीत-हार री फिकर कोनी, सवेरे दूध, सांझ ने पणा।
समर्थक तो उड गया पवनै, हांडी री भाथ ज्यूं टूट गी,
जेठ रा छाया था जेका, ओह भी लू मारे छूट गी।
राजनीति रो रंग उतरतो, आगै कोनी जौहर बाकी?
भविष्य अर धुंधळो लागे, करूं की करूं चित में हाकी!
होली आई, गुलाल उड़े, पर मन में है घणा सवाल,
किसकी सरकार, किसके लाड़, नेताजी का खाली थाल!
-किसी के मन को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं, होली पर हास्य पैदा करना ही मकसद है। बुरा न मानो होली है!


