एम.एल शर्मा.
हाल ही में देश की खिलाड़ी बेटियों ने सांसद एवं फेडरेशन अध्यक्ष पर देह शोषण व प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने धरना दिया, मगर बजाय ष्माननीयष् पर एक्शन लेने के देश की खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार हुआ यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। बुद्धिजीवी कह रहे हैं कि यह सरकार का अधिनायकवादी रवैया है। संसद में सुरक्षा चूक के मुद्दे पर उत्तरदायी मंत्री के बयान की मांग को लेकर लोकतंत्र कटघरे में आ गया है। उधर सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए निलंबित सांसदों पर कामकाज में अड़ंगा लगाने का आरोप जड़ा तो विपक्षी दलों ने समवेत स्वर में इसे मनमानी करार दिया। विपक्ष ने इसे मुख्य मुद्दों पर जनता का ध्यान भटकने की साजिश बताया है। निलंबन के पीछे सोच, मंशा अथवा कवायद जो भी रही हो पर इससे दम तोड़ती व्यवस्था को आरोप प्रत्यारोप का एक मंच तो मिल ही गया। पहले से ही निलंबन झेल रही तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कह दिया कि लोकसभा में अब अडानी के शेरहोल्डरों की वार्षिक बैठक होगी। हैरानी की बात है कि संसद की सुरक्षा को सरकार इतने हल्के में ले रही है। विपक्ष आवाज भी ना उठाए। संसद आपसी संवाद के लिए होती है। संवाद की मांग करना सांसद का अधिकार है। सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह विपक्ष के सवालों का जवाब दें। अपने हक की बात बोलने पर निलंबन कभी भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। खैर, आगे जो भी हो फिलहाल यह गतिरोध थमता दिखाई नहीं दे रहा है। राष्ट्र के लिए ऐसी घटनाएं विश्व पटल पर देश की छवि धूमिल करने वाली ही है।