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हनुमानगढ़ और आसपास के क्षेत्र में ‘सेठजी’ के नाम से विख्यात राधेश्याम हिसारिया भामाशाह के रूप में चर्चित थे। जब हनुमानगढ़ जिला नहीं बना था। सरकारी स्तर पर शिक्षा के लिए समुचित इंतजामात नहीं थे। उस वक्त कुछ व्यापारियों ने मिलकर जन कल्याण समिति का गठन किया। मकसद यह कि आपस में धन एकत्रित कर स्कूल और कॉलेज खोलें ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए शिक्षा को लेकर अच्छा माहौल बने। परिणाम सामने हैं। नेशनल पब्लिक स्कूल यानी एनपीएस और सरस्वती गर्ल्स स्कूल और कॉलेज। जन कल्याण समिति के गठन में सेठ राधेश्याम हिसारिया ने अग्रणी भूमिका निभाई। वे किसी भी सामाजिक और नेक कार्यों में कभी पीछे नहीं रहते। एक ही बात कहते कि इस काम में धन की कमी नहीं आने दी जाएगी।
आज उनके सद्प्रयासों का परिणाम है कि जिला बनने के बाद भले शिक्षण संस्थाओं की संख्या बढ़ी लेकिन एनपीएस और सरस्वती गर्ल्स स्कूल और कॉलेज का अपना महत्व है। आखिर शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर सेठ राधेश्याम हिसारिया की इतनी दिलचस्पी क्यों रही ? हिसारिया के बचपन के मित्र और जाने-माने अधिवक्ता विनोद ऐरन के पास इसका पुख्ता जवाब है। एडवोकेट विनोद ऐरन और सेठ राधेश्याम हिसारिया बचपन के मित्र रहे हैं। एडवोकेट विनोद ऐरन खुद कहते हैं, ‘राधेश्याम हिसारिया और मेरा नाता उस वक्त से है जब हम दोनों तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। वह साथ ताउम्र रहा। टाउन की पुरानी तहसील के सामने था सरकारी स्कूल। हम दोनों साथ पढ़ते, खेलते। साल 1958 में दसवीं पास कर हम दोनों चूरू चले गए इंटरमीटिएट की डिगी हासिल करने। फिर बीए में एडमिशन के लिए बीकानेर चले गए। दोनों साथ रहे। जब बीए थर्ड ईयर में थे राधेश्याम हिसारिया के पिता सीताराम हिसारिया का निधन हो गया। राधेश्याम पढ़ाई छोड़कर हनुमानगढ़ आ गए। वे पढ़ाई छोड़ने का गम महसूस करते थे। इसलिए हमेशा शिक्षा पर जोर देते थे।’
एडवोकेट ऐरन के मुताबिक, पिता की मृत्यु के बाद राधेश्याम हिसारिया ने एक प्रण किया था। वह प्रण था कि रोजाना दुकान पर बैठूंगा। बुरी आदतों को पास नहीं फटकने दूंगा। व्यापार में ईमानदारी के साथ काम करूंगा। हिसारिया ने जीवन भर इस संकल्प को निभाया।
ऐरन उस वक्त को याद करते हैं जब राधेश्याम हिसारिया टाउन में रहते और टैम्पो से जंक्शन स्थित अपनी दुकान आते-जाते। ऐरन कहते हैं, ‘हमने राधेश्याम का वह दौर भी देखा है। साधारण परिवार था। बड़े भाई शांति स्वरूप हिसारिया सिविल के नामी वकील थे। उनका व्यापार से कोई लगाव नहीं था। वे वकालत पेश में व्यस्त थे। कारोबार संभालने का जिम्मा राधेश्याम पर था। वे टैम्पो पर जंक्शन जाता। कई दफा दोपहर का खाना वह शिव कुमार हिसारिया के घर करता। बाद में एक पुराना स्कूटर खरीदा लेकिन खुद नहीं चलाता। कर्मचारी चलाता और खुद पीछे बैठता। कुछ समय बाद 14 हजार रुपए में एक पुरानी कार भी खरीदी। अपनी ईमानदारी के कारण व्यापार में खूब नाम कमाया लेकिन कभी किसी ऐब को फटकने नहीं दिया। साधारण जीवन शैली रही।’
दिवंगत सेठ राधेश्याम हिसारिया के दो पुत्र हैं। अरविंद हिसारिया और राजेश हिसारिया। दोनों ही काबिल हैं। पिता की विरासत को संभाले हुए हैं। हनुमानगढ में वैसे भी हिसारिया परिवार का अपना नाम है, रुतबा है। साख है।