सूरतगढ़: गेदर की उम्मीदवारी ने बढ़ाई बीजेपी की बेचैनी!

भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क. 

श्रीगंगानगर जिले की सूरतगढ़ सीट पर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेल दिया है। बसपा छोड़कर आए डूंगरराम गेदर को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है। गेदर दो बार बसपा प्रत्याशी रहे हैं। पहली बार उन्हें करीब 40 हजार वोट मिले जबकि दूसरी बार यानी साल 2018 में उन्होंने वोटों की बढ़त बढ़ाई और 55 हजार 543 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे। काबिलेगौर है, 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी रहे हनुमान मील को 58 हजार 797 वोट मिले थे जो बतौर बसपा प्रत्याशी डूंगरराम गेदर से 3 हजार 254 वोट ज्यादा थे। लगता है, कांग्रेस ने इस आंकड़े की गंभीरता को समझा और डूंगरराम गेदर को चुनावी मैदान में उतार दिया। इसमें दो राय नहीं कि क्षेत्र की अधिकांश जनता जातीय समीकरण में बदलाव की मांग कर रही थी।

सूरतगढ़ क्षेत्र में मील परिवार का दबदबा रहा है। जीत-हार की राजनीति से परे सच्चाई यही है कि चौधरी गंगाजल मील और उनके अग्रज राजाराम मील चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में महत्ती भूमिका निभाते रहे हैं। मील परिवार से कांग्रेस टिकट छिटकना चर्चा का विषय है। बताया जा रहा है कि राजाराम मील ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज होकर महासचिव केसी वेणुगोपाल सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं से गुपचुप मुलाकात की थी। गहलोत भला इसे कैसे बर्दाश्त करते?

डूंगरराम गेदर की उम्मीदवारी मात्र से मूल ओबीसी वर्ग में खासा उत्साह देखा जा रहा है। आलम यह है कि अबोहर, फाजिल्का, नागौर सहित अन्य क्षेत्रों से कुम्हार समाज के जनप्रतिनिधि सूरतगढ़ पहुंचे और उन्होंने मोर्चा संभाल लिया। बताया जा रहा है कि गेदर के पास फंड की भी कोई कमी नहीं। जानकारों का कहना है कि गेदर मजबूत प्रत्याशी हैं। वे राजनीति के हर पैंतरे को जानते हैं। उनके पास समर्पित टीम है। लेकिन इसके बावजूद उन पर कई तरह के आरोप भी हैं। वक्त आने पर जनता उनसे जवाब मांग सकती है। मसलन, जिला परिषद चुनाव में उन पर ‘वोटों की बोली’ लगाने का आरोप लगा। कांग्रेस जॉइन करने पर जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया तो सूरतगढ़ की जनता प्रफुल्लित हुई। बावजूद इसके गेदर के हिस्से सूरतगढ़ को लेकर कोई उपलबिध नहीं। यहां तक सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग को लेकर भी उन्होंने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई।

बस स्टैंड के पास व्यवसाय करने वाले रामस्वरूप पूनिया कहते हैं, ‘बसपा ने गेदर को पहचान दिलाई लेकिन अब वे गहलोत की गोद में जाकर बैठ गए। राज्यमंत्री के तौर पर वे अपनी उपलब्धि तो बताएं।’
बीजेपी में बेचैनी
कांग्रेस ने गैर जाट को टिकट देकर बीजेपी की बेचैनी बढ़ाई है। इस वक्त भाजपा टिकट के प्रबल दावेदारों में तीन नाम है। विधायक रामप्रताप कासनियां, पूर्व विधायक राजेंद्र भादू और अशोक नागपाल। कासनियां और भादू जाट समाज से हैं और नागपाल अरोड़ा बिरादरी से। जातीय समीकरणों के लिहाज से देखें तो जाट और कुम्हार जाति के वोटों में ज्यादा अंतर नहीं है। दोनों ही तकरीबन 30-32 हजार वोटर्स हैं। ऐसे में भाजपा के लिए उम्मीदवार का चयन थोड़ा कठिन हो गया है। उधर, चौटाला की जजपा से पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वी मील का चुनाव लड़ना तय है। ऐसे में सूरतगढ़ का यह चुनाव तिकोने संघर्ष में फंसेगा, इसमें दो राय नहीं।

वरिष्ठ पत्रकार व जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’ कहते हैं, ‘पिछले तीन दशक से क्षेत्र की राजनीति में जाट, बिश्नोई और अरोड़ा बिरादरी का बोलबाला रहा है। अमरचंद मिढा, विजयलक्ष्मी बिश्नोई, अशोक नागपाल, गंगाजल मील, राजेंद्र सिंह भादू और रामप्रताप कासनियां जीतते रहे हैं। इस बार की राजनीति किस करवट बैठेगी, इस सवाल का जवाब पाने के लिए बीजेपी टिकट फाइनल होने तक इंतजार करना होगा। बीजेपी टिकट वितरण में जातीय समीकरण का किस तरह ध्यान रखती है, उसी हिसाब से यहां की राजनीतिक हवा को भांपना संभव हो सकेगा।’

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