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राजस्थान में संधारा पर्व का अपना महत्व रहा है। गांव में एक बेटी सबकी मानी जाती थी। उसे गांव की इज्जत का दर्जा हासिल था। शहरीकरण और भौतिकवाद ने भारत की संस्कृति को पीछे धकेल दिया। लेकिन शहर में रहने के बावजूद एक पीढ़ी ऐसी है जो येन-केन प्रकारेण अपनी माटी के महत्व को बताने का अवसर नहीं छोड़ती। भले वह पीढ़ी किसी पेशे में हो। बहरहाल, कानून के जानकार शंकर सोनी को ही लीजिए। नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक होने के नाते वे हर जगह जाने जाते हैं। प्रतिष्ठित अधिवक्ता के तौर पर इनकी शिनाख्त होती है। लेकिन भारत की संस्कृति के संरक्षण को लेकर भी वे सतत प्रयासरत हैं। इसकी एक बानगी एक सितंबर को नजर आई। हनुमानगढ़ जंक्शन के न्यायालय परिसर स्थित महिला अभिभाषक विश्रामगृह में उन्होंने महिला वकीलों के साथ संधारा पर्व मनाया। एडवोकेट शंकर सोनी कहते हैं, ‘गांव में इस दिन बेटियों को मिठाई खिलाने और उपहार देने की परंपरा रही है। हनुमानगढ़ बार में भी अब धीरे-धीरे महिलाओं की तादाद बढ़ रही है। हमने 2005 में इसकी शुरुआत की थी।’
इसके तहत एडवोकेट शंकर सोनी ने महिला अधिवक्ताओं और महिला न्यायिक स्टाफ को परंपरागत मिठाई सत्तू खिलाकर मनाया। इन पवित्र पर्वों से सामाजिक रिश्तों के बंधन मजबूत होते है। वरिष्ठ अधिवक्ता शकुंतला भाटीवाल, हेमलता जोशी व रेशमीदेवी सियाग आदि ने शंकर सोनी की पहल का स्वागत किया और कहाकि इससे संस्कृति और गौरवशाली परंपरा को कायम रखना हमारे लिए बेहद जरूरी है।
इसके तहत एडवोकेट शंकर सोनी ने महिला अधिवक्ताओं और महिला न्यायिक स्टाफ को परंपरागत मिठाई सत्तू खिलाकर मनाया। इन पवित्र पर्वों से सामाजिक रिश्तों के बंधन मजबूत होते है। वरिष्ठ अधिवक्ता शकुंतला भाटीवाल, हेमलता जोशी व रेशमीदेवी सियाग आदि ने शंकर सोनी की पहल का स्वागत किया और कहाकि इससे संस्कृति और गौरवशाली परंपरा को कायम रखना हमारे लिए बेहद जरूरी है।