भटनेर पोस्ट न्यूज. हनुमानगढ़.
वैश्य समाज अब विस्तार चाहता है। इसके लिए समकक्ष दूसरी जातियों को वैश्य समाज से जोड़ने की कवायद जारी है। हनुमानगढ़ में यह बीड़ा उठाया है पेशे से अधिवक्ता अमित महेश्वरी व व्यापारी नेता बालकिशन गोल्याण ने। लिहाजा, हनुमानगढ़ में अब वैश्य समाज से अरोड़ा, खत्री व सिंधी समाज को भी जोड़ने की तैयारी चल रही है। यह दीगर बात है कि कुछ लोग इसे अव्यावहारिक व सियासी फायदे के लिए किया जाने वाला ‘अप्राकृतिक गठजोड़’ बता रहे हैं। अग्रवाल समाज में भी अंदरखाने इस बदलाव पर सहमति नहीं बन पा रही है।
अन्तरराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन यानी आईवीएफ के कार्यकारी अध्यक्ष धु्रवदास अग्रवाल कहते हैं, ‘वैश्य समाज की एकजुटता वर्तमान समय की जरूरत है। जिस प्रकार समाज में वातावरण बन रहा है। वैश्य समाज के सभी घटकों को एकजुट हो कर रहना होगा। समाज के हर संकट में वैश्य समाज के घटकों ने बढ़ चढ़ कर सहयोग किया है। वैश्य समाज के देश भर में लगभग साढ़े तीन सौ घटक हैं और समाज की आबादी देश भर में 25 करोड़ से भी ज्यादा है।’ अग्रवाल के मुताबिक, बीकानेर संभाग में वैश्य समाज के मुख्य घटकों में अग्रवाल, जैन, माहेश्वरी, अरोड़वंश और सिंधी समाज मुख्यतया है। राजस्थान में वैश्य समाज के लगभग एक दर्जन मुख्य घटक हैं। वैश्य समाज की राजनैतिक क्षेत्र में घटती संख्या पर चिंता जताते हुए अग्रवाल कहते हैं, ‘संसद और राज्य विधानसभाओं में 1970 के दशक में बड़ी अच्छी संख्या थी और राजनीति में भागीदारी बहुत ज्यादा थी लेकिन हाल के वर्षों में वैश्य समाज की संसद और विधानसभा में संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक रह गई है। यह क्रम बरकरार रहा तो हम लुप्त हो जाएंगे।’
संभाग प्रभारी संजय महिपाल संगठन का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि अब एकजुट न हुए तो हालात और बिगड़ जाएंगे। छोटे-छोटे व्यापार बंद होते जा रहे। सरकारी नौकरियों में हमारे बच्चों को अलग परेशानी है। राजनीति में हमारी हैसियत ना के बराबर है। ऐसे में वैश्य समाज करेगा क्या ?’
पेशे से वकील अमित महेश्वरी कहते हैं, क्षेत्र में मूल ओबीसी के बाद वैश्य समाज की संख्या सर्वाधिक है। बावजूद इसके यहां पर वैश्य समाज की उपेक्षा समझ से परे है। उपेक्षा की इसी सच्चाई को समझने की जरूरत है।
पूर्व पार्षद प्रेम बंसल कहते हैं कि हनुमानगढ़ की राजनीति के हिसाब से इस आंकड़े का बड़ा महत्व है। सबकी आंखें खोलने वाला है। हमारा किसी जाति व वर्ग से मतभेद नहीं है। हम सब साथ रहने वाले हैं। लेकिन सच्चाई को स्वीकार करने की जरूरत है। तभी आगे बढ़ा जा सकता है। वे संगठन की मजबूती पर बल देते हैं।
अमित महेश्वरी कहते हैं, ‘राजनीति में जब तक पैठ नहीं होगी, समाज तरक्की नहीं कर सकता। यह बात अब समझ में आ रही है। इसलिए समाज के लोग एकजुटता के लिए प्रयास करने लगे हैं। वैश्य समाज हर जाति को साथ लेकर चलने वाला है। इसमें नेतृत्व क्षमता है। हम इसी बात का अहसास करवा रहे। आने वाले समय में आपको अपेक्षित परिणाम देखने को मिलेंगे।’
व्यापारी नेता बालकिशन गोल्याण कहते हैं, ‘संगठन को ग्रामीण स्तर पर गठित करने की तैयारी है। इसमें यूथ व महिला विंग को अलग से सक्रिय किया जाएगा। समाज में कमजोर लोगों की मदद व शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार व राजनीति में अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाएंगे। जिस तरह महिलाओं का उत्साह देखा जा रहा है, व्यापक परिवर्तन संभव है।’
अग्रवाल समाज की उपेक्षा से आहत पूर्व पार्षद देवेंद्र अग्रवाल व पूर्व पालिकाध्यक्ष पवन अग्रवाल के मुताबिक, अग्रवाल समाज हर क्षेत्र में अग्रणी है। फिर भी उपेक्षा हो रही। राजनीतिक दलों को वैश्य समाज हर तरह से मदद करता है। फिर भी उनकी कहीं पर सुनवाई नहीं। ऐसे में एकजुटता जरूरी है। हम सब एक जाजम पर बैठकर उचित माहौल तैयार कर रहे हैं। पूर्व पार्षद गौरव जैन के मुताबिक, अग्रवाल, जैन, सिंधी व अरोड़ा एकजुट हो गए तो बहुत कुछ बदल सकता है। खास बात है कि इन जातियों से ताल्लुक रखने वाले कुछ पत्रकार भी वैश्य समाज के विस्तार व एकजुटता को लेकर प्रयास कर रहे हैं। वे यदा-कदा इस तरह की बैठकों में न सिर्फ लगातार भाग ले रहे बल्कि मुखर होकर अपनी बात भी रखते हैं।
पत्रकार मनोज गोयल व बालकृष्ण थरेजा कहते हैं, ‘हम सब एकजुट हो रहे हैं। यह वैश्य समाज के लिए सुखद पहलू है।’ दूसरी तरफ, वैश्य समाज में अरोड़ा व सिंधी समाज को शामिल करने पर शहर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सुनने को मिल रही हैं। पूर्व पीएममओ डॉ. एमपी शर्मा इससे सहमत नहीं हैं। कहते हैं,‘ यह अप्राकृतिक व सियासी गठजोड़ है। इससे तत्कालिक सियासी फायदे तो लिए जा सकते हैं लेकिन सामाजिक ताना-बाना व संस्कृति की एकरूपता को बनाए रखना संभव नहीं।’
कुल मिलाकर, वैश्य समाज के विस्तार संबंधी प्रयासों से क्षेत्र की सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। जानकारों का कहना है कि इसके परिणामों को लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इतना तय है कि अगर यह प्रयास सफल होता है तो इसके स्थानीय राजनीति में दूरगामी असर देखने को मिलेंगे।