भगवान शिव के साले सारंगनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां शिव सावन में एक माह विराजमान रहते हैं। बता रहे हैं राज कुमार सोनी…..
काशी विश्वनाथ की यात्रा के दौरान जब भगवान बुद्ध की नगरी सारनाथ गया तो मुझे जानकारी मिली कि यहां से थोड़ी ही दूर भगवान शिव के साले सारंगनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। मैं परिवार सहित उस मंदिर में गया और वहां भगवान शिव के साले सारंगनाथ के दर्शन कर जलाभिषेक एवं पूजा-अर्चना की। वैसे काशी में भगवान शिव के कई रूप मौजूद है और यहां के कण-कण में भगवान शिव विराजमान है। काशी को भगवान शिव की निवासस्थली भी कहा जाता है।
लेकिन सबसे खास बात यह है कि काशी में महादेव का ससुराल भी है। पूरे सावन महीने में भगवान शिव खुद यहां शिवलिंग के स्वरूप में निवास करते हैं। भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली, जहां उन्होंने पहला धर्म उपदेश दिया था के करीब स्थित भगवान शिव के साले सारंगनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। कहा जाता है कि सावन में एक बार सारंगनाथ जी के दर्शन हो जाए तो काशी विश्वनाथ के दर्शन के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
कहते हैं कि सारंगनाथ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम सारनाथ पड़ा है। पहले इस क्षेत्र को ऋषिपत्तन मृगदाव कहते थे। इस सारंगनाथ मंदिर में एक साथ दो, एक छोटा और एक बड़ा शिवलिंग मौजूद है। मान्यता है कि शिवलिंग पर गोंद चढ़ाने वाला व्यक्ति चर्म रोग से मुक्त हो जाता है। गर्भ गृह में स्थित दो शिवलिंग में एक शिवलिंग आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया है और दूसरा शिवलिंग भगवान महादेव के साले सारंगदेव महाराज का है।
कौन हैं सारंग और क्या है कथा ?
सारंग ऋषि दक्ष प्रजापति के पुत्र थे। शिव विवाह के वक्त वे तप में लीन थे। दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री सती का विवाह शिव से किया तो उनके भाई सारंग उस समय उपस्थित नहीं थे। वे तपस्या के लिए कहीं अन्यत्र गए हुए थे। तपस्या के बाद जब सारंग ऋषि अपने घर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनके पिता ने सती का विवाह कैलाश पर रहने वाले एक औघड़ से कर दिया है।
ओघड़ से विवाह की बात सुनकर सारंग ऋषि बहुत दुःखी हुए। उन्होंने पता किया कि विलुप्त नगरी काशी में उनकी बहन सती और उनके पति विचरण कर रहे हैं। तब सारंग ऋषि बहुत ज्यादा धन लेकर अपनी बहन से मिलने पहुंचे। रास्ते में जहां आज सारंगनाथ का मंदिर स्थित है, वहीं थकान की वजह से उन्हें नींद आ गई। उन्होंने देखा कि काशी नगरी एक स्वर्ण नगरी है। नींद खुलने के बाद उन्हें अपनी सोच पर बहुत ग्लानि हुई कि उन्होंने अपने बहनोई के लिए पता नहीं क्या-क्या सोच लिया। उसके बाद उन्होंने प्रण लिया कि वह यहीं काशी विश्वनाथ बाबा के रहकर तपस्या करेंगे और फिर सती बहन से मिलेंगे। कहा जाता है कि उन्होंने इसी स्थान पर तपस्या की। तपस्या करते-करते उनके शरीर में लावे की तरह गोंद निकलने लगा। लेकिन फिर भी उन्होंने तपस्या जारी रखी। तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव शिव ने सती के साथ उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहा तो उनके साले सारंगनाथ ने कहा कि अब हम और कहीं नहीं जाएंगे। यह संसार में सबसे अच्छी जगह है। तब भगवान भोले शंकर ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया कि भविष्य में तुम सारंगनाथ के नाम से जाने जाओगे और कलियुग में तुम्हें गोंद चढ़ाने की परंपरा रहेगी। सारंगदेव मंदिर में महादेव शिव का ससुराल है। भगवान शिव पूरे सावन महीने यहां विराजमान रहते हैं। मान्यता है कि यहां जल चढ़ाने से काशी विश्वनाथ जल चढ़ाने जैसा पुण्य मिलता है और जलाभिषेक करने से सभी मुराद पूरी होती है।
-लेखक भाजपा ओबीसी मोर्चा श्रीगंगानगर के जिलाध्यक्ष रहे हैं।