धर्म और संस्कृति। दोनों का मूल दायित्व है मानव के लिए प्रभावी जीवनशैली विकसित करना। महापुरुषों ने संस्कृति में धार्मिक पुट देकर इसे अमर कर दिया। हां, समय के साथ हमारे पूर्वज उन रीतियों को समझाने में जरूर विफल साबित हुए। ऐसे में नई पीढ़ी इनसे कटने लगी। इस तरह संस्कृति पर खतरा मंडराने लगा। अब मिथिला के लोकपर्व ‘जूड़ शीतल’ को ही लीजिए। विशुद्ध रूप से यह प्रकृति से जुड़ा पर्व है। इसमें जल का महत्व दर्शाया गया है। आज यानी 15 अप्रैल को मिथिला में दो दिवसीय जूड़ शीतल का पर्व मनाया जा रहा है। गर्मी का मौसम शुरू होने पर इसे मनाने की परंपरा है। इसके तहत परिवार के बुजुर्ग प्रातःकाल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप बासी पानी डालते हैं। दरअसल, इसका महत्व है। उस वक्त ग्रामीण जीवनशैली थी। गर्मी से बचने के लिए बाकी साधन नहीं थे। मसलन, लोग ताप से बचने के लिए सिर ठंडा रखते। यही संदेश था कि गर्मी में किसी तरह सिर को ठण्डा रखना है। इस दिन बुजुर्ग यह संदेश देते और बाकी दिन लोग उसका अनुसरण करते।
जूड़ शीतल पर पेड़-पौधों में पानी देने की भी परंपरा है। मिथिलांचल के गांवों में आज भी हरियाली देखने को मिल जाती है। इसका बड़ा कारण है, वहां के लोगों का पेड़-पौधों से लगाव। पूर्वजों ने जूड़ शीतल पर्व के बहाने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था। इस दिन लोग अपने बाग-बगीचे पर खास ध्यान देते हैं। जाहिर है, इसी बहाने गर्मी में पेड़-पौधों को प्रचण्ड गर्मी से बचाए रखने का मैसेज मिल जाता है।
जूड़ शीतल पर मौसम के हिसाब से खान-पान भी निर्धारित है। मसलन, एक दिन पहले ‘सतुआइन’ मनाने की परंपरा है। इसके तहत सत्तू व बेसन से जुड़े पकवान खाए जाते हैं। सत्तू मिथिलांचल ही नहीं बल्कि समूचे बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में लोकप्रिय पेय है। जूड़ शीतल पर बासी भोजन की भी परंपरा है। इसी बहाने बुजुर्ग महिलाएं नई नवेली बहू अथवा बेटी को संदेश देती हैं कि गर्मी में वही व्यंजन बनाएं जो न खराब हो और सेहत के लिए भी ठीक हो।
एक महत्वपूर्ण संदेश और है जूड़ शीतल के बहाने। वो है तालाब की सफाई। मिथिलांचल के अमूमन हर गांव में आपको चार-पांच तालाब मिल जाएंगे। मोहल्ले के हिसाब से एक तालाब लाजिमी है। जूड़ शीतल पर ‘धुरखेल’ के तहत गांव में हर उम्र के पुरूष तालाब व कुआं आदि की सफाई करते हैं। मिट्टी हटाते हैं और इस दौरान वे एक-दूसरे पर माटी डालकर हास्य परिहास भी करते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, शरीर पर मिट्टी का लेप लगाना हितकर होता है। शायद, इसी सोच के साथ यह पर्व मुकम्मल होता है। आज जब महानगरीय शैली के तहत बच्चे अपार्टमेंट में कैद होकर रहने के लिए मजबूर हो रहे हों और मिट्टी आदि से एलर्जी महसूस करने लगे हों तो इस तरह के पर्व बहुत कुछ संदेश देते हैं। बेहतर होगा, हम इन पर्वों की सार्थकता को समझें।
जूड़ शीतल पर पेड़-पौधों में पानी देने की भी परंपरा है। मिथिलांचल के गांवों में आज भी हरियाली देखने को मिल जाती है। इसका बड़ा कारण है, वहां के लोगों का पेड़-पौधों से लगाव। पूर्वजों ने जूड़ शीतल पर्व के बहाने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था। इस दिन लोग अपने बाग-बगीचे पर खास ध्यान देते हैं। जाहिर है, इसी बहाने गर्मी में पेड़-पौधों को प्रचण्ड गर्मी से बचाए रखने का मैसेज मिल जाता है।
जूड़ शीतल पर मौसम के हिसाब से खान-पान भी निर्धारित है। मसलन, एक दिन पहले ‘सतुआइन’ मनाने की परंपरा है। इसके तहत सत्तू व बेसन से जुड़े पकवान खाए जाते हैं। सत्तू मिथिलांचल ही नहीं बल्कि समूचे बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में लोकप्रिय पेय है। जूड़ शीतल पर बासी भोजन की भी परंपरा है। इसी बहाने बुजुर्ग महिलाएं नई नवेली बहू अथवा बेटी को संदेश देती हैं कि गर्मी में वही व्यंजन बनाएं जो न खराब हो और सेहत के लिए भी ठीक हो।
एक महत्वपूर्ण संदेश और है जूड़ शीतल के बहाने। वो है तालाब की सफाई। मिथिलांचल के अमूमन हर गांव में आपको चार-पांच तालाब मिल जाएंगे। मोहल्ले के हिसाब से एक तालाब लाजिमी है। जूड़ शीतल पर ‘धुरखेल’ के तहत गांव में हर उम्र के पुरूष तालाब व कुआं आदि की सफाई करते हैं। मिट्टी हटाते हैं और इस दौरान वे एक-दूसरे पर माटी डालकर हास्य परिहास भी करते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, शरीर पर मिट्टी का लेप लगाना हितकर होता है। शायद, इसी सोच के साथ यह पर्व मुकम्मल होता है। आज जब महानगरीय शैली के तहत बच्चे अपार्टमेंट में कैद होकर रहने के लिए मजबूर हो रहे हों और मिट्टी आदि से एलर्जी महसूस करने लगे हों तो इस तरह के पर्व बहुत कुछ संदेश देते हैं। बेहतर होगा, हम इन पर्वों की सार्थकता को समझें।